Day 13: Study Notes पाश्चात्य काव्यशास्त्र (बिम्ब, प्रतीक)

By Mohit Choudhary|Updated : June 13th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र'। इस विषय की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए पाश्चात्य काव्यशास्त्र के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इस लेख में पाश्चात्य काव्यशास्त्र, पाश्चात्य काव्यशास्त्र (बिम्ब, प्रतीक) के नोट्स साझा किये जा रहे हैं।  जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे। 

प्रतीक :

कवि गागर में सागर भरने का प्रयास करते हैं। थोड़े शब्दों में अधिक बात कहने के लिए कवि अनायास प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। प्रतीक द्वारा अनेक भावों की व्यंजना स्वतः हो जाती है। आधुनिक छायावादी काव्य तो प्रतीक शैली का काव्य है। प्रतीकों के प्रचुर प्रयोग ने तो अब 'वाद' का रूप ही धारण कर लिया है। यद्यपि वैदिक तथा उसके पश्चात् के संस्कृत साहित्य में प्रतीक शब्द का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में हुआ है तथापि आधुनिक हिन्दी साहित्य में इस शब्द का प्रयोग फ्रांस में उत्पन्न एक आन्दोलन के रूप में उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में हुआ। यह अंग्रेजी के सिम्बोलिज्म का पर्यायवाची है। ऐतिहासिक दृष्टि से प्रतीकवाद फ्रांसीसी काव्य जगत् के पारनेसियनिज्म के बाद का आन्दोलन है।

प्रतीक की परिभाषाएँ :

विभिन्न विद्वानों ने प्रतीक की व्युत्पत्ति, व्याख्या और परिभाषा विविध प्रकार से की हैं, जो इस प्रकार हैं -

  • हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार,प्रतीक शब्द का प्रयोग उस दृश्य (अथवा गोचर) वस्तु के लिए किया जाता है, जो किसी अदृश्य अगोचर या अप्रस्तुत विषय का प्रतिविधान उसके साथ अपने साहचर्य के कारण करती है अथवा कहा जा सकता है कि किसी अन्य स्तर के समान रूप वस्तु द्वारा किसी अन्य स्तर के विषय का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तु प्रतीक है। अमूर्त, अदृश्य, अप्रस्तुत विषय का प्रतीक प्रतिविधान मूर्त, दृश्य, श्रव्य, प्रस्तुत विषय द्वारा करता है; जैसे- अदृश्य या अश्रव्य ईश्वर, देवता अथवा व्यक्ति का प्रतिनिधित्व उसकी प्रतिमा या अन्य कोई वस्तु कर सकती है। 
  • डॉ. प्रेमनारायण शुक्ल के अनुसार,प्रतीक का शाब्दिक अर्थ है-चिह्न। प्रकृति के विभिन्न उपादानों, स्वरूपों के साथ नैत्यिक परिचय के कारण हमारा रागात्मक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। यह सम्बन्ध जब तक हृदयस्थ रहता है तब तक इसकी अमूर्तावस्था रहती है, किन्तु जब हम प्रकृति के पदार्थों का प्रयोग अपनी भावाभिव्यक्ति के साथ करते हैं तब उस रागात्मक सम्बन्ध का मानो मूर्तिकरण कर देते हैं। यथा-सुमनों का सौरभदान देखकर हमारे हृदय में एक प्रकार का विशिष्ट आनन्दोल्लास उत्पन्न होता है। संस्कारवशात् इस क्रिया के प्रति हमारा हृदयस्थ राग तन्मयता प्राप्त कर लेता है। यह तन्मयता उस समय विशेष सजग हो उठती है जब हम किसी उदारवृत्ति का चित्रण करते हैं और उदारता, त्याग आदि सप्रवृत्तियों का प्रभावोत्पादक चित्रण करने के लिए सौरभदान में लीन सुमनों को प्रतीक रूप में उपस्थित करते हैं। शब्दों में इसी प्रकार के प्रयोग का नाम 'प्रतीक स्थापन' है।"
  • एनसाइक्लोपीडिया पॉइंट्री एण्ड पोइटिक्स के अनुसार, प्रतीकवादी काव्य वक्रता प्रधान काव्य है, जिसमें विषय अथवा वस्तुओं का वर्ण अभिधात्मक व व्यंजनात्मक होता है अथवा इसमें वस्तुओं का प्रयोग चित्तवृत्ति अथवा भावावस्था के उद्बोधन के लिए होता है। विचार महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं। विचारों को विशेषतया विभिन्न तरीकों के माध्यम से वक्रोक्ति के सहारे प्रस्तुत किया जाता है और विचारों का बोध विशद् रूप से स्वानुभूति तथा संवेदना के द्वारा होता है। 
  • प्रतीकवाद को स्पष्ट करने के लिए डॉ. सत्यदेव मिश्रा ने कबीरदास का एक दोहा उद्धृत किया है

                    "माली आवत देखि कै कलियन करि पुकारि |

                     फूलि-फूलि  चुन लिए काल्हि हमारी बारि ||

यहाँ माली, कलियाँ, फूल आदि शब्दों का प्रयोग लक्षणार्थ प्रतीकात्मक रूप में किया है। इसमें कवि मृत्यु भय जनित विषाद की व्यंजना कर रहा है।

        प्रतीकवाद एक प्रकार का काव्यात्मक रहस्यवाद भी है। 

  • इस विषय के अंग्रेजी कवि  W.B. Yeats द्वारा कवि बर्नस की पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं  “The white moon is setting behind the white wave and the time setting with me oh!" अर्थात् यहाँ पर सहरों और चन्द्रमा की उज्ज्वलता समय की श्वेतता की ओर संकेत करती है। इस प्रकार श्वेतता विषाद का प्रतीक बनकर एक प्रकार के रहस्यमय वातावरण का सृजन करती है। 
  • आचार्य शुक्ल भी इस विषय पर अपना मत प्रकट करते हैं "रहस्यवाद को लेकर जो प्रतीकवादी सम्प्रदाय यूरोप में खड़ा हुआ उसने परोक्षवाद का सहारा लिया।"

वास्तविकता यह है कि प्रतीकवादियों द्वारा बुद्धि का तिरस्कार ही उन्हें रहस्योन्मुख उन्हें वैशि बनाता है; क्योंकि रहस्यवाद का सम्बन्ध पारलौकिक चिन्तन से होने के कारण उसमें विवेक का स्थान गौण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वे बौद्धिकता के स्थान ) पर आध्यात्मिकता की संकल्पनाओं को महत्त्व देने लगते हैं।

बिम्ब :

बिम्ब अंग्रेजी के 'इमेज' शब्द का हिन्दी पर्याय है, जिसका अर्थ होता है किसी पदार्थ को मूर्त रूप प्रदान करना, चित्रबद्ध करना अथवा मानसिक प्रतिकृति उतारना। बिम्ब एक भावगर्भित शब्द-चित्र है।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, "इमेज से अभिप्राय है ऐसी सचेत स्मृति जो मूल उद्दीपन की अनुपस्थिति में किसी अतीत अनुभव का समग्र अथवा अंश रूप में पुनरुत्पादन करती है।"

डॉ. नगेन्द्र ने काव्य विम्ब विषयक धारणाओं का विश्लेषण करते हुए लिखा है।

  •  बिम्ब पदार्थ नहीं है वरन् उसकी प्रतिकृति या प्रतिछवि है। मूल सृष्टि न होकर पुनः सृष्टि है। 
  • बिम्ब एक प्रकार का चित्र है, जो किसी पदार्थ के साथ भन्न इन्द्रियों के सन्निकर्ष से प्रमाता के चित्र में उदबद्ध होता है।
  • अमूर्त बिम्ब नहीं होता जिन को अमूर्त माना जाता है अ होते हैं; अगोचर नहीं। सामान्य बिम्ब से काव्य विम्ब में यह भेद है कि -
  1. इसका निर्माण सक्रिय या सृजनात्मक कल्पना से है और
  2. इसके मूल में राग की प्रेरणा अनिवार्यतः रहती है।

 इस प्रकार काव्य बिम्ब शब्दार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानव छवि है, जिसके मूल में भाव की प्रेरणा होती है। 

बिम्ब में इन्द्रिय आधार प्रमुख रहता है। इस आधार पर बिम्ब के पाँच भेद किए जा सकते हैं :

  1. दृश्य     2.  स्पृश्य    3. श्रव्य   4. घृतव्य   5.  आस्वाद 

बिम्ब के कार्य :

बिम्ब के कार्य निम्नलिखित हैं -

  • अर्थव्यक्ति काव्यार्थ को पूर्णतया स्पष्ट करना।
  •  भाव-सम्प्रेषण भाव को सम्प्रेषित एवं उत्तेजित करना।
  • प्रत्यक्षीकरण वस्तु या घटना को प्रत्यक्ष करना।
  • सौन्दर्यात्मक अनुभूति रूप, सौन्दर्य या गुण को हृदयंगम करना।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, पाश्चात्य काव्यशास्त्र (बिम्ब, प्रतीक) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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