Study Notesआदिकाल, अपभ्रंश साहित्य

By Mohit Choudhary|Updated : August 24th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी साहित्य का आदिकाल। इस विषय की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए  हिंदी साहित्य का आदिकाल के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इस लेख में  अपभ्रंश साहित्य के नोट्स साझा किये जा रहे हैं।  जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे। 

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प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव माना जाता है।  हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत १०५० से लेकर १३७५ तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जाता है।  अपभ्रंश नाम सर्वप्रथम बलभी के राजा धारसेन द्वितीय के शिलालेख में मिलता है। 

  •  ड्रॉ० रामकुमार वर्मा ने अपभ्रंश भाषा के प्रथम कवि स्वयंभू को हिन्दी का प्रथम कवि माना है ।
  •  स्वयंभू आठवीं शती (783 ई०) के आसपास विद्यमान थे। उन्हें ही जैन परम्परा का भी प्रथम कवि माना जाता है।
  •  स्वयंभू के तीन ग्रन्थ बताये जाते हैं - (1) पउम चरिउ, (2) रिट्ठणेमि चरिउ तथा (3) स्वयंभू छंद
  • स्वयंभू को अपभ्रंश भाषा का वाल्मीकि तथा व्यास कहा जाता है। स्वयंभू ने अपनी भाषा को 'देशी भाषा' कहा है। 
  •  'पउमचरिड' में राम का चरित्र विस्तार से वर्णित है।
  •  शिवसिंह सेंगर ने अपने ग्रन्थ 'शिवसिंह सरोज' में किसी पुरानी अनुश्रुति के पर सातवीं शताब्दी के पुष्य या पुंड कवि को हिन्दी का प्रथम कवि माना है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-" यह पुष्य सम्भवतः अपभ्रंश का कवि पुष्पदंत है जिसका आविर्भाव 9वीं शती में हुआ।"  सर्वमान्य धारणा है कि पुष्यदंत का आविर्भाव 972 ई० (10वीं शत) में हुआ। 
  •  पुष्यदंत की रचनाएँ हैं-(1) तिरसठी महापुरिस गुणालंकार (2) णयकुमारचरिठ तथा (3) जसहर चरिउ
  • पुष्यदंत के 'तिरसठी  महापुरिस गुणालंकार' को ही महापुराण नाम से जाना जाता है जिसमें 63 महापुरुषों का जीवन चरित वर्णित है।  पुष्यदंत को हिन्दी का भवभूति कहा जाता है।
  •  शिवसिंह सेंगर ने पुष्य कवि को 'भाखा की जड़' कहा है।
  • अपभ्रंश के तीसरे प्रमुख कवि धनपाल ने दसवीं शती में 'भविसयतकहा' की रचना की।
  • 12वीं शताब्दी में जिनदत्त सूरी द्वारा लिखित ग्रन्थ 'उपदेश रसायन रास' (१११४ ई०) को जैन रास काव्य परम्परा का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
  • 'उपदेश रसायन रास' अपभ्रंश भाषा का प्रथम रास काव्य है। 'उपदेश रसायन रास' 80 पद्यों का नृत्य गोत रासलीला काव्य है।
  •  रास काव्य परम्परा का हिन्दी में प्रवर्तन करने का श्रेय भरतेश्वर बाहुबली (1184 ई०) के रचयिता श्री शालिभद्र सूरी को है।
  • अब्दुल रहमान द्वारा लिखित 'संदेश रासक' पहला धर्मेतर रास ग्रन्थ है। देसी भाषा में किसी मुसलमान द्वारा लिखित प्रथम काव्य ग्रन्थ 'संदेशरासक' है। संदेशरासक एक खण्ड काव्य है जिसमें विक्रमपुर की एक वियोगिनी के विरह की कथा वर्णित है। 
  • मुनिराम सिंह ने 'पाहुड दोहा' की रचना की 
  • जार्ज ग्रियर्सन ने आदिकाल के अन्तर्गत नौ कवियों को शामिल किया-पुष्य कवि, खुमान सिंह, केदार, कुमार पाल, अनन्यदास, चन्द्र, जगनिक, शार्ङ्गधर एवं जोधराज।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने इतिहास में आदिकालीन  रचनाओं को दो वर्गों में बांटा है - अपभ्रंश और देशभाषा (बोलचाल) की रचनाऐं। 

                        (क) अपभ्रंश की रचनाएँ - विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका। 

                        (ख) देशभाषा की रचनाएँ - खुमान रासो,  ,पृथ्वीराज रासो, जयचंद्र प्रकाश, जयमयंक जस चन्द्रिका, परमाल रासो, खुसरो की पहेलियाँ, विद्यापति पदावली।  

  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल के अन्तर्गत नौ कवियों को शामिल है।
  • हेमचन्द्र गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह और उनके भतीजे कुमार के राजदरबार में रहते थे। आचार्य के व्याकरण का नाम 'सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन’ था।  हेमचन्द्र का व्याकरण 'सिद्ध हेम' नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  •  'सिद्ध हेम' में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों का समावेश किया गया है।  हेमचन्द्र प्रसिद्ध जैन आचार्य थे और इनका जन्म 1088 ई० में हुआ।
  •  हेमचन्द्र के अन्य पुस्तकों का नाम निम्न है-'कुमार पाल चरित्र', 'योगशास्त्र' 'प्राकृत व्याकरण', 'छन्दोनुशासन' और 'देशी नाममाला कोष'।
  •  हेमचन्द्र को प्राकृत का पाणिनी माना जाता है।
  • जैनाचार्य मेरुतुंग ने संवत् 1361 में 'प्रबन्धचिन्तामणि' नामक एक ग्रन्थ की रचना संस्कृत भाषा में की।
  •  'प्रबन्ध चिन्तामणि' में कुछ दोहे मालवा नरेश राजा भोज के चाचा मुंज के कहे हुए हैं।  
  •  'प्रबन्ध चिन्तामणि' में 'दूहा विद्या' में विवाद करने वाले दो चारणों की कथा आई है इसीलिए अपभ्रंश काव्य को 'दूहा विद्या' भी कहा जाने लगा।अपभ्रंश से पूर्व दोहा का प्रयोग नहीं होता था।
  •  लक्ष्मीधर ने 14वीं शताब्दी के अन्त में 'प्राकृत पैंगलम' नामक एक ग्रन्थ का संग्रह किया। 'प्राकृत पैंगलम' में विद्याधर, शारगंधर, जज्जल, बब्बर आदि कवियों की रचनाओं को संकलित किया गया है। 
  • 'प्राकृत पैंगलम्' को 'प्राकृत पिंगल सूत्र' भी कहा जाता है।
  • आचार्य शुक्ल ने 'प्राकृत पैंगलम' के कुछ छंद के आधार पर 'हम्मीररासो' ग्रन्थ के अस्तित्व की कल्पना की जिसका रचनाकार शार्ङ्गधर को बताया। राहुल सांकृत्यायन ने जज्जल नामक किसी कवि को इसका रचयिता घोषित किया
  •  डॉ० बच्चन सिंह ने अनुमान व्यक्त किया है कि शार्ङ्गधर कुंडलिया छंद के प्रथम प्रयोक्ता हैं। 

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, अपभ्रंश साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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