हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। इसकी समयावधि संवत् 1375 से संवत् 1700 तक मानी जाती है। साहित्य के श्रेष्ठ कवि तथा श्रेष्ठ रचनाएँ इसी काल में मिलती हैं। यह हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है।
पूर्वपीठिका
- मोनियर विलियम्स के अनुसार 'भक्ति' शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है।
- 'भक्ति' शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख श्वेताश्वेतर उपनिषद में मिलता है।
- भक्ति आन्दोलन के उदय के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का अभिमत निम्नलिखित है :
विद्वान / प्रस्तोता | अभिमत |
ग्रियर्सन | ईसाइयत की देन |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | इस्लामी आक्रमण की प्रतिक्रिया |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | भारतीय चिन्तनधारा का स्वाभाविक विकास |
गजानन माधव मुक्तिबोध | ऐतिहासिक सामाजिक शक्तियों के रूप में जनता के दुःख व कष्टों से हुआ |
रामविलास शर्मा | भक्ति आंदोलन एक जातीय और जनवादी आंदोलन है |
भक्ति आन्दोलन के उद्गम स्थल के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के मत निम्न है :
- "भक्ति का जो सोता दक्षिण की ओर से धीरे-धीरे उत्तर भारत की ओर पहले से ही आ रहा था उसे राजनीतिक परिवर्तन के कारण शून्य पड़ते हुए जनता के हृदय क्षेत्र में फैलने के लिए पूरा स्थान मिला।" - रामचन्द्र शुक्ल
- आचार्य शुक्ल ने दक्षिण में भक्ति का उद्भव स्वीकार किया है।
भक्ति द्राविड उपजी, लाये रामानन्द ।
परगट किया कबीर ने, सात दीप नौ खण्ड ॥" - कबीरदास
" उत्पन्ना द्राविड़े साहं वृद्धि कर्णाटके गता।
क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ॥" - श्रीमद्भागवत
भक्ति आन्दोलन के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के कथन निम्नलिखित है—
- "बिजली की चमक के समान अचानक समस्त पुराने धार्मिक मतों के अन्धकार के ऊपर एक नयी बात दिखायी दी। कोई हिन्दू यह नहीं जानता कि यह बात कहाँ से आयी और कोई भी इसके प्रादुर्भाव का कारण निश्चित नहीं कर सकता।" -जार्ज ग्रियर्सन
- " देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश न रह गया। उसके सामने ही उसके देव मन्दिर गिराए जाते थे, देव मूर्तियाँ तोड़ी जाती थी और पूज्य पुरुषों का अपमान होता था और वे कुछ भी न कर सकते थे। ऐसी दशा में अपनी वीरता के गीत न तो वे गा ही सकते थे और न बिना लज्जित हुए सुन ही सकते थे। आगे चलकर जब मुस्लिम साम्राज्य दूर तक स्थापित हो गया तब परस्पर लड़ने वाले स्वतंत्र राज्य भी नहीं रह गए। इतने भारी राजनीति उलटफेर के पीछे हिन्दू जन समुदाय पर बहुत दिनों तक उदासी सी छाई रही। अपने पौरुष से हताशा जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था ?” - रामचंद्र शुक्ल
- लेकिन जोर देकर कहना चाहता हूँ कि अगर इस्लाम नहीं आया होता तो भी इस साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज है।" - हजारी प्रसाद द्विवेदी
"म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु, पापैकनिलयेषु च ।
सत्पीड़ाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥" – वल्लभाचार्य ( कृष्णनामाश्रयस्त्रोत से )
- जार्ज ग्रियर्सन ने भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का 'स्वर्ण युग' कहा था।
- डॉ० रामविलास शर्मा ने भक्तिकाल को 'लोक जागरण काल' नाम से पुकारा हैं।
- आचार्य हजारी प्रसाद ने भक्ति आन्दोलन को 'लोक जागरण' की संज्ञा दी है।
भक्तिकाल का परिचय :
हिन्दी साहित्य के इतिहास के विकासात्मक वर्गीकरण में द्वितीय चरण को 'मध्यकाल' कहते हैं। मध्यकाल को दो को रीतिकाल कहते है। डॉ. ग्रियर्सन महोदय भक्तिकाल को 15वीं शती का 'धार्मिक पुनर्जागरण' कहते हैं। इस काल में भक्ति की प्रधानता थी, जिस कारण इसे 'भक्तिकाल' की संज्ञा दी गई। भक्तिकाल का समय 1300 ई. से 1700 ई. तक माना जाता है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा भक्तिकाल का काल विभाजन निम्न रूपों में किया गया है:
मिश्रबन्धु | संवत् 1444-1560 विक्रम (पूर्व माध्यमिक काल) संवत् 1561-1680 विक्रम (प्रौढ़ माध्यमिक काल) |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | संवत् 1375-1700 विक्रम |
डॉ. नगेन्द्र | संवत् 1350-1650 ई. |
डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त | संवत् 1350-1500 ई. |
डॉ. रामकुमार वर्मा | संवत् 1375-1700 विक्रम |
भक्ति आन्दोलन के उदय के सामाजिक-सांस्कृतिक कारण :
भक्तिकाल के विषय में जानने से पूर्व हमें भक्ति भावना की परम्परा और परिवेश की जानकारी होना आवश्यक है कि भक्ति का आरम्भ कहाँ से हुआ।
- भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख उपनिषद् में मिलता है। पूजा को भक्ति का साधन माना गया है। पाञ्चरात्र (परमतत्त्व, मुक्ति, युक्ति, योग, विषय) का भक्ति भावना के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है।
- भक्ति भावना मूलतः दक्षिण भारत से उत्पन्न हुई है। रामानुजाचार्य ने शास्त्रीय पद्धति से सगुण भक्ति का निरूपण किया, जिससे जनता भक्तिमार्ग पर चलने लगी।
- भक्ति आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने में कुछ आचार्यों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है, जिनमें मुख्यतः मध्वाचार्य, रामानन्द, वल्लभाचार्य, नामदेव, जयदेव आदि रहे हैं।
- मध्वाचार्य ने गुजरात में द्वैतवादी वैष्णव सम्प्रदाय तथा रामानन्द ने रामानन्दी सम्प्रदाय का शुभारम्भ किया। इन्होंने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया।
- वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैतवाद के कृष्ण भक्त आचार्य हुए। इन्होंने कृष्ण की उपासना पर बल दिया।
- नामदेव ने भक्तिमार्ग को महत्व दिया। जयदेव ने पूर्वी भारत में कृष्ण के प्रेम गीत गाए, जिसका विद्यापति ने अनुसरण किया।
भक्ति आन्दोलन के उदय सम्बन्धी विद्वानों के मत व कारण क्रमश: इस प्रकार हैं :
- आचार्य शुक्ल “भक्ति आन्दोलन के लिए तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों को जिम्मेदार मानते हैं। उनके अनुसार देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह स्थान न रह गया। अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था।”
- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी “भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ हिन्दुओं को पराजित मनोवृत्ति को नहीं मानते। वे कहते हैं कि “मुसलमानों के अत्याचार से यदि भक्ति की भावधारा को उमड़ना था, तो पहले उसे सिन्ध में और फिर उसे उत्तर भारत में प्रकट होना चाहिए था, पर हुई दक्षिण में।”
- जॉर्ज ग्रियर्सन “भक्ति आन्दोलन को ईसाईयत की देन मानते हैं, परन्तु द्विवेदी इनके मत को स्वीकार नहीं करते। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी भक्ति का सूत्रपात करने का श्रेय आलवार भक्तों को देते हैं। कारण जो भी हो, निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि भक्ति का सूत्रपात दक्षिण भारत से हुआ तथा दक्षिण भारत से ही इसका प्रचार-प्रसार उत्तर भारत में हुआ।”
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, भक्तिकाल (परिचय) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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