Day 29: हिंदी साहित्य : सामान्य जानकारी / विविध

By Mohit Choudhary|Updated : September 20th, 2022

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हिन्दी साहित्य की शुरुआत :

  • हिन्दी साहित्य की शुरुआत को लेकर आरंभ से ही विवाद रहा है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन और डॉक्टर की शुरुआत रामकुमार वर्मा के अनुसार हिन्दी साहित्य की सातवीं सदी से होती है। जहाँ गुलेरी जी अपभ्रंश को 'पुरानी हिन्दी' की संज्ञा देते हैं, वहीं डॉक्टर रामकुमार वर्मा 'स्वयंभू' को हिन्दी का पहला कवि और पउमचरिउ को हिन्दी की पहली रचना मानते हैं।
  •  इसी आधार पर डॉक्टर रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य की शुरुआत 693 ईसवी से मानी है। स्पष्ट है कि इस मत के अनुसार अपभ्रंश और हिन्दी पृथक-पृथक भाषा न होकर एक ही भाषा के पूर्ववर्ती और परवर्ती रूप हैं। लेकिन, भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा मानना उचित नहीं है। 
  • अब स्पष्ट हो चुका है कि अपभ्रंश और हिन्दी दो पृथक भाषा हैं जिनकी अपनी-अपनी विशेषताएँ है। 
  • दूसरी बात यह है कि स्वयं डॉक्टर रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य के आरंभिक काल को दो चरणों में विभाजित किया है: संधि काल (7वीं से 10वीं सदी तक) और चारण काल ( 10वीं से 12वीं सदी तक)। यहां पर सातवीं से दसवीं सदी तक के कालखंड को संधि काल की संज्ञा दिया जाना कहीं-न-कहीं भाषाई संक्रमण का संकेत देता है। निश्चय ही इसका संकेत अपभ्रंश से हिन्दी की ओर संक्रमण से है, इसलिए सातवीं सदी से हिन्दी साहित्य की शुरुआत मानना उचित नहीं है।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मुंज और भोज के समय (संवत् 1050 ) से हिन्दी साहित्य की शुरुआत मानी है। आचार्य शुक्ल के इस मत से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी सहमत हैं। 
  • ये दोनों इतिहासकार अपभ्रंश को हिन्दी से भिन्न मानते हुए उसकी पृथक भाषाई पहचान को स्वीकार करते हैं; लेकिन कालानुक्रम के मद्देनजर भाषाई विकास पर नजर डालें, तो हम पाते हैं कि 10वीं से 14वीं सदी के दौरान एक ओर अवहट्ट (जिसे कई लोग अपभ्रंश का परवर्ती रूप मानते हैं, तो कई लोग अपभ्रंश से पृथक भाषा) में साहित्य की रचना हो रही थी, तो दूसरी ओर प्रारंभिक हिंदी में। ऐसी स्थिति में यह निर्धारित कर पाना मुश्किल हो जाता है कि एक ही दौर की किस रचना को हम हिन्दी साहित्य की श्रेणी में रखें और किस रचना को अवहट्ट या अपभ्रंश की श्रेणी में।
  • इस संदर्भ में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संकेत देते हुए कहा है कि तत्सम शब्दों का बढ़ता हुआ प्रयोग हिन्दी को अपभ्रंश से अलगाता है। कारण यह है कि अपभ्रंश में तदभव शब्दों के प्रयोग पर जोर था। आगे चलकर रामस्वरूप चतुर्वेदी ने सहायक क्रिया और परसर्गों के बढ़ते हुए प्रयोग को हिन्दी की विशिष्ट पहचान के रूप में स्वीकार किया है। यही वह दौर है जब हिन्दी की आधुनिक बोलियों के पूर्व रूप की झलक मिलने लगती है। इसीलिए हिन्दी साहित्य की शुरूआत 10वीं सदी से मानना उचित होगा।

कालविभाजन और नामकरण :

आरंभिक प्रयास : 

यद्यपि हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा की शुरुआत गार्सा द तासी से होती है, लेकिन काल विभाजन और नामकरण का पहला प्रयास हमें जार्ज ग्रियर्सन के यहां मिलता है। 

जार्ज ग्रियर्सन ने 1888 में "द मॉडर्न वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ नादर्न हिन्दुस्तान" के नाम से अंग्रेजी भाषा में हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा। इसमें उन्होंने किसी एक काल की खास प्रवृत्ति से संबंधित रचनाकारों और रचनाओं का कालक्रमानुसार विवेचन किया है। 

उस काल के गौण कवियों को उन्होंने अध्याय के अंत में फुटकल खातों में डाल दिया। इस क्रम में ग्रियर्सन ने उस कालखण्ड विशेष की प्रवृत्ति के प्रेरणास्रोत के रूप में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक परिस्थितियों को माना है। ऐसी ही कोशिश मिश्रबंधु की रचना में देखने को मिलती है, लेकिन अब तक काल विभाजन का व्यवस्थित ढाँचा और वैज्ञानिक समझ विकसित नहीं हो पायी थी। ऐसा प्रयास पहली बार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा किया गया है।

आचार्य शुक्ल द्वारा कालविभाजन और नामकरण :

कालखंड 

कालक्रम के आधार पर नामकरण 

युगीन प्रवृत्तियों के आधार पर नामकरण 

संवत् (1050-1375)

आदिकाल

वीरगाथा काल

संवत् (1375-1700)

पूर्वमध्यकाल

भक्ति काल

संवत् (1700-1900)

उत्तरमध्यकाल

रीतिकाल

संवत् (1900 से आगे)

आधुनिक काल

गद्यकाल

आचार्य द्विवेदी द्वारा काल विभाजन :

आगे चलकर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी “हिन्दी साहित्य की भूमिका" और "हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास" लेकर उपस्थित होते हैं। आचार्य द्विवेदी ने काल विभाजन और नामकरण के आचार्य शुक्ल के हो ढाँचे को किंचित परिवर्तित रूप में स्वीकार किया। वे विक्रम संवत् की बजाय ईस्वी करन के आधार पर पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास को विभिन्न काल खण्डों में विभाजित करते हैं और फिर आचार्य शुक्ल को काल-सीमा में थोड़ा-बहुत हेर-फेर करते हैं।

कालखंड 

नामकरण 

(१०-१४) वीं सदी 

आदिकाल 

(१५-१६) वीं सदी 

भक्तिकाल 

सत्रहवीं सदी से उन्नीसवीं सदी के मध्य तक 

रीतिकाल 

उन्नीसवीं सदी के मध्य के बाद से अब तक 

आधुनिक काल 

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हमें आशा है कि आप सभी 'हिंदी साहित्य : सामान्य जानकारी / विविध' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। अगली Mini Series के लिए आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।  

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