महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Theory of Continental Drift in Hindi)

By Brajendra|Updated : November 16th, 2022

महाद्वीपों के विस्थापित होने की संभावना का सुझाव सर्वप्रथम फ्राँसीसी विद्वान एन्टोनियो स्नाइडर ने 1858 ई. में दिया किन्तु वैज्ञानिकता के अभाव में इस संभावना को नकार दिया गया था। 1910 ई. में टेलर ने स्थल भाग के क्षैतिज स्थानान्तरण को मोड़दार पर्वतों की व्याख्या के क्रम में प्रस्तुत किया किन्तु कई कारणों से इनकी संकल्पना को भी नकार दिया गया। इसके बाद अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया तथा 1915 में इसकी विस्तृत व्याख्या की।
वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत अनुसार सभी महाद्वीप एक बड़े भूखंड से जुड़े हुए थे। यह भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया और बड़े महासागर को पैंथालसा नाम दिया गया था। लगभग 20 करोड़ वर्षों पहले पैंजिया लारेशिया और गोंडवाना लैंड नामक दो बड़े भूखंडों में विभाजित हुआ, और बाद में ये खंड टूटकर महाद्वीपों के रूप में परिवर्तित हो गए।

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महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Theory of Continental Drift)

महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था।वेगनर के अनुसार कार्बोनीफेरस युग में संसार के सभी महादेश एक साथ एकत्रित थे और एक स्थलखण्ड के रूप में विद्यमान थे। वेगनर ने इसे पैंजिया कहा। पैंजिया में विभाजन कार्बोनीफेरस युग में प्रारंम्भ हुआ और महाद्वीपों का वर्तमान स्वरूप पैन्जिया के विखण्डन तथा इन विखण्डित हुए स्थलखण्डों के प्रवाहित होकर अलग होने के फलस्वरूप हुआ। वेगनर के अनुसार पैंजिया चारों तरफ से जल से घिरा हुआ था जिसे उसने पैंथालासा कहा। उनके अनुसार महाद्वीपीय ठोस भाग सियाल तथा महासागरीय भू भाग सीमा का बना हुआ है तािा सियाल सीमा पर तैर रहा है। सीमा के ऊपर तैरते हुए पैन्जिया का विखण्डन और प्रवाह मुख्यतः गुरुत्वाकर्षण शक्तियों की असमानता के कारण हुआ। वेगनर के अनुसार जब पैंजिया में विभाजन हुआ तब दो दिशाओं में प्रवाह हुआ-उत्तर या विषुवत रेखा की ओर तथा पश्चिम की ओर।
महाद्वीप विस्थापन के लिए दो बल माने गए हैं-
1.पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल
2.सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ज्वरीय बल
पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है और ज्वारीय बल पृथ्वी के भ्रमण पर ब्रेक लगाते हैं इस कारण महाद्वीपीय भाग पीछे छूट जाते हैं तथा स्थल भाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं तथा स्थल भाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं। पैंजिया का गुरुत्व बल व प्लवनशीलता के बल के कारण दो भागों में विखण्डन हुआ। उत्तरी भाग लाॅरेंशिया या अंगारालैण्ड तथा दक्षिणी भाग गोंडवानालैण्ड कहलाया। बीच का भाग टेथिज सागर के रूप में बदल गया। जुरैसिक काल में गोण्डवानालैड का विभाजन हुआ तथा ज्वारीय बल के कारण प्रायद्वीपीय भारत, मेंडागास्कर, आॅस्ट्रेलिया तथा अण्टार्कटिका गोंडवाना लैंड से अलग होकर प्रवाहित हो गये। इसी समय उत्तरी व दक्षिण अमेरिका ज्वारीय बल के कारण पश्चिम की ओर प्रवाहित हो गये। पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने के क्रम में सीमा का रुकावट के कारण प0 भाग में राॅकी तथा एंडीज पर्वतों का निर्माण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर प्रवाहित होने के कारण हिन्द महासागर तथा दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के पश्चिम की ओर प्रवाहित होने के कारण अटलांटिक महासागर का निर्माण हुआ। आर्कटिक सागर तथा उत्तरी ध्रुव सागर का निर्माण महाद्वीपों के उत्तरी ध्रुवों से हटने के फलस्वरूप हुआ। कई दिशाओं से महाद्वीपों के, अतिक्रमण के कारण पेंथालासा का आकार संकुचित हो गया।

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महाद्वीप विस्थापन सिद्धांत (Theory of Continental Drift) के साक्ष्य 

  • वेगनर के अनुसार आरंभ में सभी स्थलीय भाग पैंजिया के रूप में थे। इसके लिए उन्होंने कई प्रमाण प्रस्तुत किये। वेगनर के अनुसार अटलांटिक महासागर के दोनों तटों में भौगोलिक एकरूपता पायी जाती है। इस एकरूपता के कारण उन्हें आसानी से जोड़ा जा सकता है। दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है और इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से जोड़ा जा सकता है। इस स्थिति को Jig saw Fit कहते हैं।
  • भूगर्भिक प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटों के कैलिडोनियन तथा हर्सीनियन पर्वत क्रमों में समानता पायी जाती है। दक्षिणी अटलांटिक महासागरों के तटों पर स्थित अफ्रीका व ब्राजील की संरचना और चट्टानों में भी समानता है।
  • दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तथा अफ्रीका के पश्चिमी तटों का गहन अध्ययन यह प्रमाणित करता है कि दोनों तटों की संरचना में पर्याप्त साम्यता है। इसके अलावा भारत, दक्षिण अफ्रीका, फाॅकलैण्ड, आॅस्ट्रेलिया तथा अण्टार्कटिका में ग्लोसाॅप्टेरिस वनस्पति का पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि कभी ये स्थल भाग एक साथ जुड़े हुए थे।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Theory of Continental Drift) की आलोचना

इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी आलोचना प्रवाह की शक्तियों के सन्दर्भ में की गयी है। वेगनर ने जिन बलों को महाद्वीपों के प्रवाह के लिए उत्तरदायी बताया है, वह उपयुक्त नहीं है। इसके अलावा वेगनर के सिद्धांत में परस्पर विरोधी बातें भी दिखाई देती हैं। पहले उन्होंने कहा कि सियाल, सीमा पर बिना रूकावट के तैर रहा है और फिर कहा कि सीमा से सियाल पर रुकावट आयी। वेगनर ने उस बल के बारे में भी नही बताया, जिससे कार्बोनिफेरस युग से पहले पैंजिया स्थिरावस्था में था।

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महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत FAQs

  • जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर (Alfred Wegener) ने “महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत" सन् 1912 में प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के विस्थापन से संबंधित था।

  • महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर द्वारा दिया गया था। इसके अनुसार सभी महाद्वीप एक बड़े भूखंड से जुड़े हुए थे। यह भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया और बड़े महासागर को पैंथालसा नाम दिया गया।

  • पैंजिया लगभग 240 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में था। लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले , यह सुपरकॉन्टिनेंट टूटने लगा। लाखों वर्षों में, पैंजिया टुकड़ों में बंट गया जो एक दूसरे से दूर चला गया। इन टुकड़ों ने धीरे-धीरे अपना स्थान उस महाद्वीप के रूप में ग्रहण कर लिया। 

  • लगभग 300-200 मिलियन वर्ष पहले (देर से पैलियोज़ोइक युग से लेकर बहुत देर से ट्राइसिक तक), जिस महाद्वीप को अब हम उत्तरी अमेरिका के रूप में जानते हैं, वह अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप से सटा हुआ था। वे सभी पैंजिया नामक एक ही महाद्वीप के रूप में अस्तित्व में थे।

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