सल्फर चक्र अवसादों पर आधारित एक अवसादी चक्र है। यह गैसीय चक्र के समान वायुमंडल में परिसंचरण में भाग नहीं लेता है। इसमें वो सभी प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं जिनमें सल्फर चट्टानों से होकर जैवमंडल में पहुंचता है और वापस जैवमंडल से चट्टानों में मिल जाता है।
विषय ‘सल्फर चक्र’ ‘जैवरासायनिक चक्र’ का एक भाग है, जोकि यूपीएससी, स्टेट पीएससी, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
सल्फर चक्र
सल्फर का प्रयोग प्रोटीन और विटामिन निर्माण की प्रक्रिया में होता है। प्रोटीन में अमीनो अम्ल पाया जाता है जिसमें सल्फर परमाणु जैसे थायोपीन होता है। जल सल्फर को पानी में घोला जाता है, तो पौधे उन्हें अवशोषित कर लेते हैं। जंतु इन पौधों को खाकर अपनी सेहत के लिए जरूरी पर्याप्त सल्फर की मात्रा प्राप्त करते हैं।
- पृथ्वी का अधिकांश सल्फर चट्टानों और नमक तथा महासागरों में महासागरीय अवसादों में गहराई पर दबा हुआ है।
- सल्फर को वायुमंडल में भी पाया जा सकता है। यह प्राकृतिक और मानवीय दोनों स्रोतों से वायुमंडल में प्रवेश करता है।
- प्राकृतिक स्रोतों में ज्वालामुखी विस्फोट, जीवाणु क्रियाएं, जल का वाष्पीकरण और मृत जीव शामिल हैं।
- मानवीय गतिविधियों में औद्योगिक क्रियाकलाप शामिल हैं जहाँ बड़े स्तर पर सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसें उत्सर्जित होती हैं।
- वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड गैस के प्रवेश करने पर यह ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके सल्फर ट्राइऑक्साइड गैस और दूसरे रसायनों के साथ मिलकर सल्फर लवण बनाती है। सल्फर डाइऑक्साइड गैस जलवाष्प के साथ अभिक्रिया करके सल्फोनिक अम्ल भी बनाती है। ये सभी कण वर्षा के जल में घुलकर वापस पृथ्वी पर अम्लीय वर्षा के रूप में गिरते हैं।
- बाद में ये कण पौधों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं और वापस वायुमंडल में छोड़ दिए जाते हैं, जिससे सल्फर चक्र दुबारा शुरु हो जाता है।
समस्त पृथ्वी पर जैवमंडल एक बंद तंत्र हैं, जहाँ पोषक तत्त्व जैवमंडल में न तो बाहर से आते हैं और न ही बाहर जाते हैं। जैव-भू-रसायन चक्र को प्राकृतिक चक्र भी कहा जाता है क्योंकि ये सभी सजीव और निर्जीव घटकों को आपस में जोड़ते हैं।
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