- निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा को विद्वानों ने कई नाम दिए :
प्रस्तोता | नामकरण |
रामचन्द्र शुक्ल | ज्ञानाश्रयी शाखा |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | निर्गुण धारा |
रामकुमार वर्मा | संत काव्य |
परशुराम चतुर्वेदी | संत काव्य |
गणपतिचन्द्र गुप्त | संत काव्य |
- संत काव्य धारा के प्रथम कवि और प्रस्तोता निम्नलिखित हैं :
प्रस्तोता | प्रथम कवि |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | कबीरदास |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | कबीरदास |
गणपतिचन्द्र गुप्त | नामदेव |
रामकुमार वर्मा | नामदेव |
रामस्वरूप चतुर्वेदी | कबीर |
- रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा, "निर्गुण मार्ग के निर्दिष्ट प्रवर्तक कबीरदास ही थे।"हिन्दी में भक्ति साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नामदेव ने किया।
- महाराष्ट्र के संत परम्परा के आदि कवि मुकुंद राज को माना जाता है। इन्होंने 1190 ई० में मराठी का पहला काव्य ग्रन्थ 'विवेक सिन्धु' लिखा।
- महाराष्ट्र में 'महानुभाव' और 'बारकरी' नामक दो सम्प्रदाय प्रचलित है।
- 'महानुभाव' सम्प्रदाय के प्रवर्तक चक्रधर और 'बारकरी' सम्प्रदाय के मूल संत पुंडलिक माने जाते हैं। किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से बारकरी सम्प्रदाय के प्रथम उन्नायक संत ज्ञानेश्वर हैं।
- महाराष्ट्र के भक्त संत नामदेव का संक्षिप्त परिचय निम्न है :
१. सम्प्रदाय - बारकरी
२. जन्म-मृत्यु - 1135-1215 ई०
३. गुरु का नाम - विसोबा खेचर
- नामदेव की हिन्दी रचनाओं की भाषा निम्नलिखित है :
१. सगुण भक्ति के पदों की भाषा ब्रज है।
२. निर्गुण पदों की भाषा नाथ पंथियों द्वारा गृहीत खड़ी बोली या सधुक्कड़ी भाषा।
- प्रमुख संत कवियों का संक्षिप्त जीवन-वृत्त निम्न है :
संत कवि | जन्म-मृत्यु | जन्मस्थल | गुरु का नाम |
रैदास | 1388-1518 | काशी | रामानन्द |
कबीरदास | 1398-1518 | काशी | रामानन्द |
जम्भनाथ | 1451-1523 | नागौर | बाबा गोरखनाथ |
हरिदास निरंजनी | 1455-1543 | डीडवाण | प्रागदास |
गुरुनानक | 1469-1538 | ननकाना | |
सींगा | 1519- 1659 | खजूर (म. प्र.) | मनरंगीर |
लालदास | 1544- 1648 | अलवर | गदन चिश्ती |
दादू दयाल | 1544- 1603 | अहमदाबाद | वृद्ध भगवान |
मलूकदास | 1574-1682 | इलाहाबाद | पुरुषोत्तम |
सुन्दरदास | 1596- 1689 | जयपुर | दादू दयाल |
- डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है, "हिन्दी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता कबीर है।"
- मुसलमानों के अनुसार कबीर के गुरु का नाम सूफी फकोर शेख तकी था। ये सिकन्दर लोदी के पीर (गुरु) थे।
- कबीर की वाणियों का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने 'बीजक' नाम से सन् 1464 ई० में किया।
- बीजक के तीन भाग किए गए हैं- (1) रमैनी, (2) सबद और (3) साखी
- कबीर की रचनाओं में प्रयुक्त छंद एवं भाषा निम्न है :
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
रमैनी | रामायण | चौपाई गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
सबद | शब्द | दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी, पंजाबी मिली खड़ी बोली |
- कबीरदास की भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी', सधुक्कड़ी आदि नाम से अभिहित किया जाता है।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को 'भाषा का डिक्टेटर' कहा है।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, "कबीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति सन् 1512 ई० की लिखी है।"
- कबीरदास के भाषा के सम्बन्ध में विद्वानों ने निम्नलिखित मत प्रस्तुत किये :
विद्वान | कबीर की भाषा |
श्याम सुन्दर दास | पंचमेल खिचड़ी |
रामचन्द्र शुक्ल | सधुक्कड़ी |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | भाषा के डिक्टेटर |
- कबीर की वाणियों का सबसे पुराना नमूना 'गुरु ग्रन्थ साहिब' में मिलता है।
- कबीर के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कथन अग्रांकित हैं—
- "इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सँभाला जो नाथ पंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्ति रस से शून्य शुष्क पड़ता जा रहा था। " - रामचन्द्र शुक्ल
- "उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया।" - रामचन्द्र शुक्ल
- "भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी इसमें सन्देह नहीं है।" – रामचन्द्र शुक्ल
- कबीरदास की मृत्यु मगहर में हुई थी।
- कबीर की पत्नी का नाम लोई था तथा पुत्र-पुत्री का नाम कमाल तथा कमाली था।
- संत रैदास (रविदास) मीराबाई और उदय के गुरु माने जाते हैं। रैदास के 40 पद 'गुरु ग्रन्थ साहब' में संकलित हैं।
- गुरुनानक देव सिख सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक एवं आदि गुरु थे।
- गुरुनानक देव की प्रमुख रचनाएँ–'जपुजी', 'आसदीबार', 'रहिरास' और 'सोहिला'– गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित हैं।
- 'जपुजी' नानक दर्शन का सार तत्त्व है। 'नसीहतनामा' नानकदेव की महत्वपूर्ण रचना है।
- संत कवियों द्वारा प्रवर्तित सम्प्रदाय और उनके प्रमुख शिष्य इस प्रकार हैं :
सम्प्रदाय | प्रवर्तक | प्रमुख शिष्य |
कबीर पंथ | कबीर | धर्मदास |
सिख | गुरुनानक | |
उदासी | श्रीचन्द | |
विश्नुई | जंभनाथ | (1) हावली पावजी, (2) लोहा पागल (3) दत्तनाथ, (4) मालदेव |
निरंजनी | हरिदास निरंजनी | (1) नारायणदास, (2) रूपदास |
लालपंथ | लालदास | |
दादू पंथ | दादू दयाल | (1) रज्जब, (2) सुन्दरदास, प्रागदास, (4) जनगोपाल |
बाबा लाली | बाबा लाल | |
बावरी | बावरी साहिबा | |
सत्यनामी | जगजीवनदास | (1) गोविन्द साहब, (2) भीखा साहब |
साधो | वीर भानु |
- दादू दयाल के सम्प्रदाय की 'ब्रह्म सम्प्रदाय' या 'परब्रह्म सम्प्रदाय नाम से भी जाना। जाता है।
- 'निरंजनी सम्प्रदाय' उड़ीसा में प्रचलित है।
- दादू पंथ के उत्तराधिकारी दाद के पुत्र 'गरीबदास' तथा 'मिसकीनदास' थे।
- कबीरदास के उत्तराधिकारी 'कमाल' व 'धर्मदास' थे।
- दादू दयाल की वाणियों का सर्वप्रथम सम्पादन उनके दो शिष्य संतदास और जगन्नदास ने 'हरड़े बानी' शीर्षक से किया था पुन: रज्जब ने 'अंगबंधू' शीर्षक से इसका सम्पादन किया।
- बाबालाल कृत 'असरारे-मार्फत' में उनका और दाराशिकोह का वार्तालाप संग्रहीत है।
- संत कवियों में बावरी साहिबा महिला संत साधिका थी।
- अक्षर अनन्य प्रसिद्ध छत्रसाल के गुरु थे। संत रज्जब का पूरा नाम 'रज्जब अली खाँ' था
- संत शेख फरीद का दूसरा नाम 'शाह ब्रह्म' या 'इब्राहीम शाह' या ' शंकरगंज' था।
- हिन्दी के अन्य प्रमुख संत कवि निम्नलिखित हैं :
संत कवि | जन्म-मृत्यु | गुरु का नाम |
धर्मदास | कबीरदास | |
धन्ना | 1415 | रामानन्द |
पीपा | 1425 | रामानन्द |
सेन | रामानन्द | |
शेख फरीद | ||
वीरभान | 1543 | उदयदास |
बावरी साहिबा | 1542-1605 | मायानंद |
रज्जब | 1567-1689 | दादूदयाल |
निपट निरंजन | 1531 | |
अक्षर अनन्य |
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, भक्तिकाल (निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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