छायावाद के प्रमुख चार कवि है- जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला', सुमित्रानंदन पंत तथा महादेवी वर्मा इन्हें छायावाद के मुख्य स्तंभ माना जाता है।
जयशंकर प्रसाद (1889-1937 ई.)
- छायावाद के प्रवर्तक एवं श्रेष्ठ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में काशी के एक सम्पन्न वैश्य परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनकी कविता के प्रति रुचि जागृत हो गई थी। उन्हें अनेक कवियों का भी सानिध्य मिला।
- पहले ये ब्रजभाषा में कविताएँ लिखते थे, किन्तु बाद में उन्होंने खड़ी बोली में कविताएं लिखनी शुरू कीं। प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न तथा शिव के उपासक थे।
- अपने जीवन संघर्षों, आत्मीयजनों से बिछड़ना, अर्थाभाव तथा पत्नी वियोग आदि कष्टपूर्ण जीवन को झेलते हुए भी हिन्दी काव्य जगत को इन्होंने काव्यरूपी बहुमूल्य रत्न दिए हैं। अत्यधिक श्रम और क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रहने के कारण 15 नवम्बर, 1937 को मात्र 48 वर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया।
- जयशंकर प्रसाद 'छायावादी युग के प्रवर्तक' के नाम से जाने जाते हैं। उनके साहित्य में भारतीय संस्कृति का प्रखर चित्रण हुआ है। इनके द्वारा रचित काव्य कृति 'कामायनी' एक अमर कृति है।
- इस कृति पर इन्हें 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' प्राप्त हुआ था। 'कामायनी' में छायावादी प्रवृत्तियों और विशेषताओं के दर्शन होते हैं। इनके काव्य का मुख्य आधार प्रेम और सौन्दर्य रहा है।
प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ (काव्य-संग्रह) निम्नलिखित है-
- महाकाव्य 'कामायनी' प्रसाद के दार्शनिक विचारों पर सर्वाधिक प्रभाव 'शैव 'दर्शन' के अन्तर्गत आने वाले 'प्रत्यभिज्ञा दर्शन' का पड़ा है। कामायनी में प्रयुक्त अनेक पारिभाषिक शब्द प्रत्यभिज्ञा दर्शन के शब्द हैं। कामायनी के दार्शनिक
- आँसू- यह विशुद्ध विरह काव्य है। इसमें अनुभूति और कल्पना प्रधान है। कवि को भावुकता इस काव्य में मुख्य रूप से दृष्टिगत हुई है।
- झरना इसमें प्रेम, सौंदर्य तथा प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया गया है, जो छायावादी कविताओं का संग्रह है।
- लहर इस कृति में भावगत मानसिक स्थितियों का मार्मिक चित्रण किया गया है तथा यह एक मुक्तक रचना है।
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (1899-1969)
- इनका जन्म 1899 ई. में बंगाल राज्य में हुआ। निराला जी का जीवन बड़ा ही दुःखद रहा है।
- ये काव्य के क्षेत्र में आए इन्होंने 'समन्वय' व 'मतवाला' का सम्पादन कार्य भी किया। निराला 1916 से 1958 ई. तक काव्य साधना करते रहे।
- मानव की पीड़ा परतंत्रता के तीव्र आक्रोश उनकी कविताओं में दृष्टिगत होता है तथा अन्याय एवं असमानता है प्रति विद्रोह की भावना उनमे सर्वत्र व्याप्त है।
- हिन्दी कविता में स्वच्छंद छंद का सूत्रपात निराला ने किया था। उनके काव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है जिसमे स्वर-लय की प्रधानता है तथा ओजपूर्णता का गुण विद्यमान है।
'निराला' की प्रमुख रचनाएँ
निराला की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- 'बादल राग' कविता में निराला जी ने बादल से प्रार्थना की है कि वह भारत के दीनहीन गरीब किसानों की पुकार सुनकर विप्लव मचाने के लिए वहाँ अवस्थ पहुंचे।
- 'वनवेला', 'तोड़ती पत्थर', 'भिक्षुक' व 'बादलराग' जैसी कविताओं में निराला ने निम्न जन अथवा सर्वहारा की शक्ति को पहचानने का कार्य किया। निराला जी की 'विधवा', 'भिक्षुक', 'दीन', 'बहू' जैसी कविताएं समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति सच्ची सहानुभूति प्रकट करती हैं।
- यदि विभिन्न वादों की दृष्टि से देखा जाए, तो छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद आदि सभी की उपलब्धि उनके काव्य में हो आएगी। निराला जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं- अनामिका (1923 ई.), परिमल (1929 ई.), अणिमा (1943 ई.), गीतिका (1936 ई.), तुलसीदास (1938 ई.), राम की शक्ति पूजा (1938 ई.), बेला (1946 ई.), नए पत्ते (1942 ई.), अर्चना (1950 ई.), आराधना (1953 ई.) आदि।
सुमित्रानन्दन पन्त (1900-1977 ई.)
- छायावाद की वृहद त्रयी में प्रसाद, निराला के साथ पन्त जी की गणना भी की जाती है। इनका जन्म कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, 1900 को हुआ। ये प्रकृति चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं।
- प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं।
- उनका पहला काव्य संग्रह 'वीणा' (1927 ई.) है। 'युगान्त' की रचना वर्ष 1936 में हुई तथा इसी के साथ पन्त जी के काव्य-विकास का एक कालखंड समाप्त हो जाता है।
- युगान्त छायावादी युग के अंत की घोषणा है। उनकी कविता का स्वरूप एवं स्वर समय के साथ बदलता रहा है।
उनके काव्य को आलोचकों ने निम्नलिखित चरणों में बाँटा है-
- छायावादी काव्य- उच्छवास (1920 ई.) ग्रंथि (1920 ई.) वीणा (1927 ई.), पल्लव (1926 ई.), गुंजन (1982 ई.)
- प्रगतिवादी काव्य- युगान्त (1936 ई.) युगवाणी (1939 ई.) तथा ग्राम्या (1940 ई.)
- अन्तश्चेतनावादी काव्य (अरविन्द दर्शन का प्रभाव)- स्वर्ण किरण तथा स्वर्ण धूलि
- नवमानवतावादी काव्य- उत्तरा (1949 ई.), कला और बूढ़ा चाँद (1959 ई.), अतिमा (1955) ई.), लोकायतन (1964 ई.), चिदम्बरा, अभिषेकिता, समाधिका
पन्त जी की प्रथम रचना 'गिरजे का घण्टा' वर्ष 1916 में प्रकाशित हुई। उनकी काव्य यात्रा की शुरुआत इसी रचना से ही हुई। इनके काव्य का प्रथम चरण छायावादी रचनाओं का है।
महादेवी वर्मा (1907-1987 ई.)
- महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई. में फर्रुखाबाद के एक कायस्थ परिवार में इनकी माता का नाम श्रीमती हेमरानी व पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा था। माँ की भक्तिभावना का इनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। हुआ था।
- आरम्भ में इन्होंने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखी है। बाद में खड़ी बोली में भी कविताएँ लिखने लगी। ये कुशल चित्रकार भी थी, इसलिए इनकी कविताओं में चित्रों जैसी संरचना का आभास मिलता है। इनकी कविताओं में आरम्भ से ही विस्मय, जिज्ञासा, व्यथा और आध्यात्मिकता के भाव मिलते हैं।
महादेवी वर्मा का काव्य
महादेवी की काव्य-यात्रा को पाँच खण्डों में विभाजित करके देखा जा सकता है। उनके संग्रहों के नाम उनकी काव्य-यात्रा को संकेतित करते हैं।
- पहली रचना नीहार में जीवन के प्रति एक रहस्यमय व्याकुल भाव दृष्टिगत होता है।
- रश्मि की कविताओं में उस रहस्यमयता का स्पष्टीकरण है।
- नीरजा अभिव्यक्ति की दृष्टि से उनका सुन्दर काव्य संग्रह है। अभिव्यक्ति का जो स्तर आरम्भ में मिलता है, वह आगे चलकर और अधिक संवेदनीय बन गया है।
- सान्ध्यगीत में एक समापन का आग्रह-सा लगता है। इस प्रकार इन चारों पुस्तकों को उन्होंने यामा शीर्षक से प्रकाशित किया है। 'यामा' के लिए महादेवी वर्मा को हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- दीपशिखा में कवयित्री ने स्वयं को जीवन के प्रति सम्पूर्ण भाव से समर्पित कर दिया। सारी ललक संवेदना की आकुल विस्मयानुभूति और किसी चिरन्तन के प्रति समर्पण की उत्सुकता अपनी पूर्णता को प्राप्त कर निरपेक्ष-सी हो गई है।
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, आधुनिक काल (छायावाद के प्रमुख कवि) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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