- भिखारीदास का रचनाकाल 1728-1750 ई० तक माना जाता है।
- भिखारीदास की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
ग्रन्थ | वर्ष ई० | विषय निरूपण |
नाम कोश | 1738 | कोश ग्रन्थ |
रस सारांश | 1742 | रस के भेदोपभेदों का वर्णन |
छंदार्णव पिंगल | 1742 | छंदों का विस्तृत वर्णन |
काव्य निर्णय | 1746 | काव्य के भेदोपभेदों का वर्णन |
श्रृंगार निर्णय | 1750 | नायक नायिका भेद वर्णन |
विष्णु पुराण भाषा | विष्णु पुराण का दोहा-चौपाई शैली में अनुवाद | |
शतरंजशतिका | शतरंज खेलने के तौर तरीकों का वर्णन | |
अमर कोश | संस्कृत के अमरकोश का पद्यानुवाद |
- जयपुर नरेश प्रताप सिंह ने पद्माकर भट्ट को 'कविराज शिरोमणि' की उपाधि दी।
- पद्माकर भट्ट की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं —
ग्रन्थ | विषय निरूपण |
हिम्मत बहादुर विरुदावली | 211 छंदों में हिम्मत बहादुर का शौर्य वर्णन (प्रबन्ध काव्य) |
पद्माभरण | अलंकारों का वर्णन |
जगद् विनोद | छह प्रकाश एवं 731 छंदों में नव रसों का विवेचन |
प्रबोध पचासा | भक्ति निरूपण |
गंगालहरी | संस्कृत कवि जगन्नाथ कृत 'गंगा लहरी' का पद्यानुवाद |
प्रताप सिंह विरुदावली | 117 छन्दों में प्रताप सिंह का शौर्य वर्णन (प्रबन्ध काव्य) |
कलिपच्चीसी | |
राम रसायन | वाल्मीकि के 'रामायण' का छायानुवाद |
अलीजाह प्रकाश | महाराज ग्वालियर के नाम लिखा गया है। |
- पद्माकर भट्ट ने होली, फाग और त्योहारों का वर्णन पूरी तल्लीनता के साथ किया है।
- भिखारीदास ने सर्वप्रथम हिन्दी काव्य-परम्परा, भाषा, छंद, तुक आदि पर विचार
- माखन ने हिन्दी में सर्वप्रथम कुम्भक, हरिमालिका, मदनमोहन, सुरस, तरलगति, सदागति, सुबल, प्रवाह और गन्धार नामक मात्रिक छन्दों का निरूपण किया।
- हिन्दी में रीति का अर्थ 'काव्यरचना पद्धति' है किन्तु कहीं-कहीं इसे 'पंथ' से भी अभिहित किया गया है।
- कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- केशवदास- समुझेवाला बालकन वर्णन पंथ अगाध
- चिन्तामणि- रीति सु भाषा कवित की बरनत बुध अनुसार।
- मतिराम- सो विश्रब्ध नवोढ़ यो बरनत कवि रसरीति ।
- भूषण- सुकविन हूँ कछु कृपा, समुझि कविन को पंथ।
- देव- अपनी अपनी रीति के काव्य और कवि रीति ।
- सुरति मिश्र- वरनन मनरंजन जहाँ रीति अलौकिक होइ।
- निपुन कर्म कवि कौ जु तिहि काव्य कहत सब कोई ॥
- सोमनाथ- छंद रीति समुझे नहीं बिन पिंगल के ज्ञान।
- भिखारीदास- (क) काव्य की रीति सिखी सुकवीन्ह सों ॥ (ख) अरु कछु मुक्तक रीति लखि, कहत एक उल्लास।
- पद्माकर- ताही को रति कहत हैं, रस ग्रंथन की रीति ॥
- वेनी प्रवीन- या रस अरु नव तरंग में, नव रस रीतहिं देखि, अति प्रसन्न है ललनजी, कीन्हीं प्रीति विसेखि ।
- प्रताप साहि- कवित रीति कछु कहत है व्यंग्य अर्थ चित लाये ॥
- डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है कि रीतिकालीन कवि 'कविता के सौदागर' थे।
- देव ने सुकवि को कविता का सौदागर कहा है।
- रीति काव्य को 'यौवन की रमणीयता का काव्य' भी कहा जाता है।
- नलिन विलोचन शर्मा ने रीतिकालीन काव्य की आलोचना-पद्धति को "भारतीय मनीषा का ह्रास कालीन वर्गीकरण प्रेम" कहा है।
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, रीतिकाल (रीतिबद्ध कवि) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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