नाथ साहित्य
गोरखनाथ का ‘नाथपंथ' बौद्धों की वज्रयान शाखा से निकला हुआ माना जाता है। गोरखनाथ ने पतंजलि के उच्च लक्ष्य, ईश्वर प्राप्ति को लेकर हठयोग का प्रवर्तन किया। राहुल सांकृत्यायन नाथपंथ को सिद्धों की परंपरा का ही भाग मानते हैं। इस पंडत को चलने वाले गोरखनाथ मने जाते हैं। डॉ रामकुमार वर्मा ने इसका चरमोत्कर्ष का समय १२वीं शताब्दी से लेकर १४वीं शताब्दी के अंत तक माना है।
- सिद्धों की वाममार्गी भोग प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथ पंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-"नाथ पंथ या नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध मत, सिद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग सम्प्रदाय, अवधूत-मत एवं अवधूत सम्प्रदाय नाम भी प्रसिद्ध हैं।"
- हठयोगियों के सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति' ग्रन्थ के अनुसार 'ह' का अर्थ है सूर्य तथा 'उ' का अर्थ है चन्द्र इन दोनों के योग को ही 'हठयोग' कहते हैं।
- हिन्दी साहित्य में षट्चक्रों वाला योग-मार्ग गोरखनाथ ने चलाया। गोरखनाथ को नाथ-साहित्य का आरम्भकर्ता माना जाता है।
- गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येन्द्रनाथ था।
- मत्स्येन्द्रनाथ को मीनानाथ और मछन्दरनाथ भी कहा गया है। मत्स्येन्द्रनाथ चौथे बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध हुए हैं।
- मित्र बन्धुओं ने गोरखनाथ को हिन्दी का प्रथम गद्य लेखक माना है।
- राहुल सांकृत्यायन ने गोरखनाथ का समय 845 ई० माना है, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी उन्हें नौवीं शती का मानते हैं, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और डॉ० रामकुमार वर्मा 13वीं शती का बताते हैं तथा डॉ० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल उन्हें ग्यारहवीं शती का मानते हैं।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है, "शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।”
- डॉ० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ के १४ ग्रंथों को प्रामाणिक मानकर उनका संपादन ‘गोरखबानी’ नाम से किया।
- 'गोरखबानी' में संकलित गोरखनाथ के प्रामाणिक ग्रन्थ निम्नलिखित हैं (1) शब्द, (2) पद, (3) शिष्या दर्शन (4) प्राणसंकली, (5) नरवैबोध (6) आत्मबोध, (7) अभयमात्रा योग (8) पंद्रहतिथि, (9) सप्तवार, (10) मछिन्द्र गोरखबोध, (11) रोमावली, (12) ज्ञान तिलक, (13) प्यान चौतीसा (14) पंचमात्रा।
- 10वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कश्मीरी आचार्य अभिनव गुप्त ने अपने तंत्रालोक में मच्छंदर विभु या मत्स्येन्द्रनाथ की वन्दना की है।
- नाथों की संख्या नौ मानी गई है। 'गोरक्ष सिद्धान्त संग्रह' में नव प्रवर्तकों के निम्नलिखित नाम गिनाए गये हैं-
(1) नागार्जुन
(2) जड़भरत
(3) हरिश्चन्द्र
(4) सत्यनाथ
(5) भीमनाथ
(6) गोरक्षना
(7) चर्पट
(8) जलन्धर
(9)मलयार्जुन।
- आदिनाथ को परवर्ती संतों ने 'शिव' माना है।
- चर्पटनाथ का पूर्व नाम 'चरकानन्द' था।
- चौरंगीनाथ गोरक्षनाथ के शिष्य थे और ये 'पूरनभगत' नाम से प्रसिद्ध हुए।
- नाथ सम्प्रदाय में जलन्धर को 'बालनाथ' कहा जाता है।
- 'नागार्जुन', 'गोरखनाथ', 'चर्पट' तथा 'जलंधर' का नाम नाथ और सिद्ध दोनों मे गिना जाता है।
- नाथों में 'रसायनी' नागार्जुन को माना जाता है।
- नाथ पंथ के जोगियों को कनफटा भी कहा जाता है।
- नाथपंथियों की भाषा 'सधुक्कड़ी' भाषा थी, जिसका ढाँचा कुछ कड़ी बोली लिए हुए राजस्थान थी।
- गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु महिमा, इंद्रिय-निग्रह, प्राण-साधना, वैराग्य मन:साधना, कुण्डलिनी जागरण, शून्य-समाधि आदि का वर्णन किया है।
- मस्येन्द्रनाथ का वास्तविक नाम विष्णु शर्मा माना जाता है। इनकी संस्कृत रचना 'काल ज्ञान निर्णय' का सम्पादन प्रबोधचन्द्र बागची ने किया है
रासो साहित्य
जैन रासो काव्य धार्मिक प्रधान थे, परन्तु रासो ग्रन्थ वीरगाथापरक थे। रासो ग्रन्थ की विषय-वस्तु का मूल सम्बन्ध राजाओं के चरित तथा प्रशंसा से है। रासो काव्यों के रचयिता राजाओं के चरित्र का वर्णन करने थे। रासो काव्य वीर रस प्रधान है। रासो ग्रंथों के विषय में जानने के लिए रासो शब्द की उत्पत्ति के बारे में आवश्यक है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रासो साहित्य का विवरण ‘वीरगाथा काल’ के अंतर्गत दिया है।
- शुक्ल जी के अनुसार वीरगीत परंपरा का प्राचीनतम ग्रन्थ ‘बीसलदेव रासो’ है।
- विभिन्न विद्वानों के अनुसार रासो शब्द की उत्पत्ति :
विद्वान/प्रस्तोता | मूल शब्द |
गार्सा द तासी | राजसूय |
नरोत्तम स्वामी | रासक |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल | रसायन - रास या रासो |
नन्द दुलारे वाजपेयी | रास |
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी | रासक (उपरूपक) |
रामस्वरूप चतुर्वेदी | राउस या रस |
गणपतिचंद्र गुप्त | रासक-रास-रासा-रासु-रासो |
- रासो साहित्य के प्रमुख रचनाकार व् रचना आचार्य शुक्ल के अनुसार निम्न हैं :
कवि | रचना | समय | रस | भाषा | काव्यरूप |
दलपति विजय | खुमाण रासो | ९वीं सदी | वीर | राजस्थानी | प्रबंध |
नरपति नाल्ह | बीसलदेव रासो | १२१२ ई. | श्रृंगार | वीरगीत | |
केदार भट्ट | जयचंद प्रकाश | ११२४ ई. | वीर | प्रबंध | |
जगनिक | परमाल रासो | १२३० ई. | वीर | वीरगीत | |
मधुकर कवि | जयमयंक जसचन्द्रिका | १२४३ ई. | प्रबंध | ||
श्रीधर | रणमल्ल छंद | १४५४ ई. | वीर | डिंगल | वीरगीत |
चंदबरदाई | पृथ्वीराज रासो | वीर, श्रृंगार | डिंगल | प्रबंध | |
शारंगधर | हम्मीर रासो | ||||
नल्ह सिंह | विजयपाल रासो | वीर | वीरगीत |
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, "चन्दबरदाई हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं और इनका 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है।"
- मिश्र बन्धुओं ने लिखा है, "हिन्दी का वास्तविक प्रथम महाकवि चन्द्रवरदाई को ही कहा जा सकता है।"
- 'पृथ्वीराज रासो' की प्रामाणिकता-अप्रामाणिकता में विद्वानों के बीच मतभेद है जो निम्नलिखित है :
प्रामाणिक | अप्रमाणिक | अर्ध प्रामाणिक |
श्यामसुंदर दास | आचार्य रामचंद्र शुक्ल | मुनिजन विजय |
मिश्रबन्धु | गौरीशंकर हीराचंद ओझा | आचर्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी |
कर्नल टाड | बुल्हर | सुनीति कुमार चटर्जी |
मोहनलाल विष्णु लाल पंड्या | देवी प्रसाद | दशरथ ओझा |
- 'पृथ्वीराज रासो' में 68 छन्दों का प्रयोग किया गया है। मुख्य छंद निम्न है- कविन, अप्पय दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। चन्दबरदाई को 'छप्पय छंद' का विशेषज्ञ माना जाता है।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'पृथ्वीराज राशि' को शुक-शुकी संवाद के रूप में रचित माना है।डॉ० बुल्हर ने सर्वप्रथम कश्मीरी कवि जयानक कृत 'पृथ्वीराज विजय' के आधार पर सन् 1875 में पृथ्वीराज रासो' को अप्रमाणिक घोषित किया।
- 'पृथ्वीराज रासो' को चंदबरदाई के पुत्र जल्हन ने पूर्ण किया।
- डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है, "यह (पृथ्वीराज रासो) एक राजनीतिक महाकाव्य है, दूसरे शब्दों में राजनीति की महाकाव्यात्मक त्रासदी है।"
- हिन्दी में सर्वप्रथम बारहमासा का वर्णन नरपति नाल्ह कृत 'बीसलदेव रासो' में मिलता है।
- 'कयमास वध" पृथ्वीराज रासो' का एक महत्वपूर्ण समय (सर्ग) है।
- आचार्य शुक्ल ने वीर काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ 'बीसलदेव रासो' को स्वीकार किया है।
- 'परमाल रासो' में आल्हा-ऊदल नामक दो सरदारों की वीरता का वर्णन है।
- 'आल्हखण्ड' को सर्वप्रथम सन् 1865 ई० में फर्रुखाबाद के तत्कालीन जिलाधीश 'चार्ल्स इलियट' ने प्रकाशित करवाया था।
- आल्ह खण्ड बरसात ऋतु में उत्तर प्रदेश के बैसवाड़ा, पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र में गाया जाता है।
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, नाथ साहित्य एवं रासो से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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