राजनीति नोट्स: भारतीय संसद

By Shantanu Sanwal|Updated : May 5th, 2019

Today we will be covering a very important topic from the general knowledge section i.e Parliament and its roles which will be helpful for your upcoming Railways Exam. These notes will be helpful for you to get to know about basics of parliament of India.

 

आज हम सामान्‍य ज्ञान भाग से एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण विषय को कवर करेंगे जो है – संसद तथा उसकी भूमिकाएं क्‍या हैं यह आपकी आगामी रेलवे परीक्षा हेतु उपयोगी साबित होगी। ये नोट्स आपके लिए भारत की संसद के मूल के बारे में जानने के लिए सहायक होंगे।

संसद (अनुच्छेद 79-122)

संसद का गठन

  1. संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल है।
  2. लोकसभा निम्न सदन (प्रथम चेम्‍बर या प्रसिद्ध सदन) है तथा राज्यसभा उच्च सदन (द्वि़तीय चेम्‍बर अथवा बुजुर्गों का सदन) है।

राज्यसभा का संयोजन

  1. राज्यसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और संघ शासित प्रदेशों (अप्रत्यक्ष रूप से चयनित) के प्रतिनिधि होते हैं और शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
  2. वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं। इनमें से 229 सदस्य राज्यों का , 4 सदस्य संघशासित प्रदेशों का प्रति‍निधित्‍व करते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
  3. संविधान की चौथी अनुसूची राज्यसभा में राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के मध्य सीटों के बंटवारे से संबंधित है।
  4. राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधि का चयन राज्य विधानमंडल के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। राज्यसभा में राज्यों के लिए सीटों का आवंटन उनकी जनसंख्या के अनुपात में किया जाता है।

लोकसभा का संयोजन

  1. लोकसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित है। इनमें से, 530 सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं, 20 सदस्य संघ शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं और शेष 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा एंग्‍लो-भारतीय समुदाय से चुने जाते हैं।
  2. वर्तमान में, लोकसभा के सदस्‍यों की संख्‍या 545 है।
  3. लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधियों का चुनाव संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाता है।
  4. संविधान के 61वें संशोधन अधिनियम 1988 द्वारा मतदान की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है।

संसद के दोनों सदनों की अवधि

  1. राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता है। हांलाकि इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष में सेवामुक्त होते हैं। सेवामुक्त होने वाले सदस्य कितनी ही बार पुर्ननिर्वाचन और पुर्ननामांकन के लिये पात्र होते हैं।
  2. राज्यसभा के विपरीत, लोकसभा एक स्थायी सदन नहीं है। इसका सामान्य कार्यकाल, आम चुनाव के बाद प्रथम बैठक से पांच वर्ष की अवधि के लिए होता है, जिसके उपरांत वह स्वत: भंग हो जाती है।

सांसद बनने के लिए पात्रता और गैर-पात्रता 

  1. पात्रता

      (a) भारत का नागरिक हो
      (b) राज्‍यसभा के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष और लोकसभा के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए। 
      (c) वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य पात्रता रखता हो। (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार)

  1. सांसद चुने जाने के लिए अपात्र होने के लिए

      (a)यदि वह संघ अथवा राज्य सरकार के अंतर्गत किसी लाभ के पद हो। 
      (b)यदि वह पागल हो गया हो अथवा न्यायालय द्वारा पागल करार दे दिया गया हो।   
      (c)यदि वह दिवालिया हो गया हो।
      (d)यदि वह भारत का नागरिक न हो अथवा उसने स्वैच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ली हो अथवा किसी विदेशी राज्य के प्रति उसकी निष्ठा का संज्ञान होता हो।
      (e)यदि वह संसद द्वारा बनाए किसी कानून (आर.पी.ए 1951) के तहत अयोग्य करार दे दिया गया हो।

  1. संविधान यह भी निर्धारित करता है कि यदि कोई व्यक्ति दसवीं अनुसूची के तहत प्रावधानों के अंर्तगत दल-बदल के आधार पर अयोग्य करार दिया जाता है तो उसे संसद की सदस्यता से निष्कासित कर दिया जाएगा।
  2. दोहरी सदस्यता: कोई व्यक्ति एक समय में संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है।
  3. कोई सदन किसी सदस्य की सीट को तब रिक्त घोषित कर सकता है जब वह सदस्य सभापति की मंजूरी लिए बिना सदन की बैठकों से लगातार 60 दिनों के लिए अनुपस्थित रहे।

लोकसभा अध्यक्ष –

  1. अध्यक्ष का चयन लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से (प्रथम बैठक के पश्चात शीघ्र अति शीघ्र) किया जाता है। अध्यक्ष के निर्वाचन की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
  2. अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को सौंपता है और उसे लोकसभा सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प (रेजोलूशन) द्वारा हटाया जा सकता है, हांलाकि इसके लिए उसे 14 दिन पूर्व सूचित करना आवश्यक है।
  3. वह संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र की अध्यक्षता करता है जिसका आवाहन राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों के मध्य अंतर को दूर करने के लिए किया जाता है।
  4. वह किसी विधेयक के धन विधेयक होने अथवा न होने का निर्णय करता है और उसका निर्णय अंतिम होता है।
  5. उसे सामान्य मतदान करने का अधिकार नहीं है परंतु मतों में समानता होने पर उसे निर्णायक मत देने का अधिकार है। जब अध्यक्ष को हटाये जाने का प्रस्ताव विचाराधीन होता है, तो वह लोकसभा की कार्यवाही में शामिल हो सकता है तथा बोल सकता है उसे मत देने का भी अधिकार होता है लेकिन निर्णायक मत देने का नहीं। ऐसी स्थिति में वह अध्यक्षता नहीं कर सकता है, उसे हटाने के प्रस्ताव को केवल पूर्ण बहुमत से ही पारित किया जा सकता है और प्रस्‍ताव पर केवल तभी विचार किया जायेगा जब उस प्रस्ताव को कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो।
  6. जी. वी. मावलंकर भारत के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष थे।
  7. लोकसभा में अध्यक्ष के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल बलराम जाखड़ का था।
  8. ध्यान दें: इसमें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होने वाले स्पीकर प्रो टेम का भी एक पद होता है। वह प्राय: अंतिम लोकसभा का सबसे बुजुर्ग सदस्य होता है और वह आगामी लोकसभा के पहले सत्र की अध्यक्षता करता है। राष्ट्रपति द्वारा उसे शपथ दिलाई जाती है।

लोकसभा उपाध्यक्ष

  1. अध्यक्ष के समान, लोकसभा उपाध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा द्वारा इसके सदस्यों के मध्य किया जाता है।
  2. उपाध्यक्ष के निर्वाचन की तिथि अध्यक्ष द्वारा निर्धारित की जाती है। पद से हटाने की प्रक्रिया अध्यक्ष को हटाने की प्रक्रिया के समान है और वह लोकसभा अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र सौंपता है।
  3. मदाभुषी अनंतशयनम आयंगर लोकसभा के प्रथम उपाध्यक्ष थे।
  4. वह अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सभा की अध्यक्षता करता है।

संसद सत्र

  1. संसद का एक ‘सत्र’ किसी सदन की प्रथम बैठक और उसके अवसान (लोकसभा के संदर्भ में भंग करने) के मध्य की समयावधि है। किसी सदन के अवसान और उसके पुर्नगठन के मध्य की अवधि को सत्र अवकाश कहते हैं। प्राय: एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं। बजट सत्र सबसे लंबा और शीतकालीन सत्र सबसे छोटा होता है।

      (1) बजट सत्र (फरवरी से मई)
      (2) मानसून सत्र (जुलाई से सितम्बर) और
      (3) शीतकालीन सत्र (नवम्बर से दिसम्बर) 

महत्वपूर्ण संसदीय शब्दावली (terms), बिंदु, प्रस्ताव, विधेयक, प्रश्न और समितियाँ

  1. संसद के दो सत्रों के मध्य छह माह से अधिक का अंतर नहीं हो सकता है।
  2. राष्ट्रपति संसद के दोनों सत्रों का आवाहन और विघटन कर सकता है।
  3. गणपूर्ती (कोरम) वह न्यूनतम संख्या है जो कि संसद की कार्यवाही होने के लिए आवश्यक है। यह क्रमश: सभापति को मिलाकर प्रत्‍येक सदन में सदस्‍यों की कुल संख्या का 1/10वां भाग होता है। इसका अर्थ है कि इसके लिए लोकसभा में न्यूनतम 55 सदस्य तथा राज्यसभा में न्यूनतम 25 सदस्‍य होने चाहिए।
  4. प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को संसद के किसी भी एक सदन में, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में और संसद की किसी भी समिति जिसका वह सदस्य हो में बिना मतदान की शक्ति केकार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार है।
  5. लेम-डार्क सत्र वर्तमान लोकसभा के अंतिम सत्र और नईं लोकसभा के गठन के प्रथम सत्र को इंगित करता है।
  6. प्रश्न काल प्रत्येक संसदीय बैठक का प्रथम घंटा होता है।
  7. तारांकित प्रश्न (एस्ट्रिक चिह्न द्वारा रेखांकित) एक मौखिक उत्तर वाले प्रश्न होते हैं और अत: इनमें पूरक प्रश्न पूछे जाते हैं।
  8. गैर-तारांकित प्रश्न में दूसरी ओर लिखित उत्तर की मांग की जाती है और इसमें पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं।
  9. अल्प सूचना प्रश्न वह प्रश्न होते हैं जो दस दिनों से कम अवधि का नोटिस देकर पूछे जाते हैं। इनका उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है।
  10. शून्य काल प्रश्न काल के तुरंत बाद शुरू होता है और उस दिन के एजेंडा पूरा होने तक चलता है (इसमें सदन के नियमित कार्य होते हैं)। दूसरे शब्दों में, प्रश्नकाल और एजेंडा के मध्य समय को शून्य काल के नाम से भी जाना जाता है। यह संसदीय प्रक्रिया में एक भारतीय नवाचार है और यह 1962 से मौजूद है।
  11. स्थगन प्रस्ताव – यह संसद में तत्काल लोकमहत्व के किसी विशेष विषय पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए लाया जाता है और इसके अनुमोदन के लिए कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्‍यकता होती है। राज्यसभा इस प्रकार की युक्ति के प्रयोग की मंजूरी नहीं देती है और चर्चा 2 घण्टे और 30 मिनट से कम समय में नहीं होनी चाहिए।
  12. अविश्वास प्रस्ताव – संविधान का अनुच्छेद 75 कहता है कि मंत्रियों की परिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका अर्थ यह है कि मंत्रीपरिषद सत्ता में केवल तभी तक बनी रहेगी जब तक उसे सदन का बहुमत प्राप्त होगा। दूसरे शब्दों में, लोकसभा मंत्रिपरिषद को सत्ता से अविश्वास प्रस्ताव पारित करके सत्ता से बेदखल कर सकती है। प्रस्ताव की स्वीकृति के लिए कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  13. एक विधेयक विधि निर्माण के लिए एक प्रस्ताव होता है और यह पारित होने के बाद ही अधिनियम का स्वरूप ले पाता है। इसे निजी सदस्य विधेयक और सार्वजनिक विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। सार्वजनिक विधेयक को किसी मंत्री द्वारा लाया जाता है और बाकि लाए गए अन्य विधेयक निजी विधेयक होते हैं।
  14. विधेयक सामान्य, धन अथवा वित्त और संविधान संशोधन विधेयक हो सकता है। धन विधेयक वे विधेयक होते हैं जिनमें कराधान, धन संबंधी मामले जो कि संविधान के अनुच्छेद 110 में विशेष रूप से वर्णित किए गए हैं, शामिल होते हैं। वित्तीय विधेयक कुछ अंतरों के साथ ऐसे ही विषयों से संबंधित होते हैं और संविधान के अनुच्छेद 117(1) और 117(3) में उल्लेखित हैं। संविधान संशोधन विधेयक, वे होते हैं जो कि संविधान के प्रावधानों के संशोधन से संबंधित होते हैं।
  15. राज्यसभा धन विधेयक को नकार अथवा उसमें संशोधन नहीं कर सकती है। वह केवल सिफारिशें कर सकती है। इसे धन विधेयक को 14 दिनों के भीतर वापस करना होता है, चाहे सिफारिशें दे अथवा नहीं। किसी विधेयक को धन विधेयक घोषित करने में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है तथा इस प्रकार के सभी विधेयक सार्वजनिक विधेयक माने जाते हैं।
  16. संयुक्त बैठक का प्रावधान आम विधेयक और वित्त विधेयक के लिए लागू है न कि धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक के लिए। धन विधेयक के मामले में, लोकसभा के पास अध्यारोही शक्ति है, जबकि संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों में अलग-अलग पारित होना चाहिए।
  17. संविधान में कहीं भी ‘बजट’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। यह वार्षिक वित्तीय विवरण का लोकप्रिय नाम है और जो संविधान के अनुच्छेद 112 से संबंधित है।
  18. 1921 में एकवर्थ समिति की सिफारिशों पर रेलवे बजट को आम बजट से अलग किया गया था। वर्ष 2017 से, रेलवे बजट और मुख्य वित्तीय बजट को पुन: मिलाया गया है।
  19. भारत की संचित निधि – यह वह निधि है जिससे सभी प्राप्तियां जमा होती हैं और सभी भुगतान काटे जाते हैं। दूसरे शब्दों में, (a) भारत सरकार द्वारा एकत्र की गई सभी आय, (b) भारत सरकार द्वारा ट्रेजरी बिलों को जारी करके बनाए गए ऋण और (c) ऋणों के पुर्नभुगतान में भारत सरकार द्वारा अर्जित सभी धन भारत की संचित निधि का निर्माण करते हैं। इसका उल्लेख अनुच्छेद 266 में किया गया है।
  20. भारत का सार्वजनिक खाता – भारत सरकार की ओर से या उसके द्वारा प्राप्‍त अन्‍य सभी सार्वजनिक धन (उनके अलावा कोई ओर जिसे भारत की समेकित निधि में जमा किया जाता है) भारत के सार्वजनिक खाते में जमा किया जाता है।
  21. भारत की आकस्मिक निधि – संविधान संसद को भारत की एक आकस्मिक निधि स्थापित करने की मंजूरी देता है जिसमें समय-समय पर विधि के अनुसार धनराशि का भुगतान किया जाता है। तदनुसार संसद ने 1950 में भारत की आकस्मिक निधि अधिनियम को पारित किया। इस निधि को राष्ट्रपति के निपटान में रखा गया है और वह किसी लंबित अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए संसद द्वारा अपनी स्वीकृति प्राप्त होने पर भुगतान कर सकता है।
  22. लोक लेखा समिति (पब्लिक अकाउंट कमेटी)– इसमें 22 सदस्य (15 लोकसभा से और 7 राज्यसभा से) शामिल होते हैं। सदस्यों का कार्यकाल – 1 वर्ष होता है। किसी भी मंत्री को समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचित नहीं किया जा सकता है। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपने सदस्यों में से की जाती है। 1966-67 तक समिति का अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल से संबंधित होता था। हांलाकि, 1967 के बाद एक परंपरा विकसित हुई जिसमें समिति के अध्यक्ष को लोकसभा में विपक्षी दल में से किसी एक सदस्य को निष्पक्ष रूप से चुना जाता है। समिति का कार्य भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की वार्षिक लेखा रिपोर्ट की जांच करना है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष रखा जाता है।
  23. प्राक्कलन समिति (अस्‍टीमेट कमेटी) – संसद की सबसे बड़ी समिति होती है। समिति का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है। किसी भी मंत्री को समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचित नहीं किया जा सकता है। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपने सदस्यों में से की जाती है और वह सत्तारूढ़ दल से कोई भी हो सकता है।
  24. सार्वजनिक उपक्रमों (पब्लिक अंडरटेकिंग) पर समिति – समिति के सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष के लिए होता है। किसी भी मंत्री को समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचित नहीं किया जा सकता है। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपने सदस्यों में से की जाती है जिसे केवल लोकसभा से ही चुना जाता है।

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