रक्त और लौह की नीति
गुलाम वंश के दिल्ली के सुल्तान बलबन ने 'खून और लोहे' की नीति अपनाई, जिसने दुश्मनों को हर तरह की कठोरता, सख्ती, तलवार के इस्तेमाल और खून बहाने की नीति का पालन करने की अनुमति दी। सल्तनत की सुरक्षा और दुश्मनों पर नजर रखने के लिए ये उपाय अपनाए गए थे।
'रक्त और लौह' की नीति में शत्रुओं के प्रति निर्ममता, तलवार का प्रयोग, कठोरता और कठोरता तथा रक्तपात की नीति निहित थी। नीति ने दुश्मनों के खिलाफ हिंसक आतंकवाद का तरीका अपनाया। उसने कई आंतरिक विद्रोहों को दबा दिया और बाहरी आक्रमणों से सल्तनत की रक्षा की।
सुल्तान बलबन कौन था?
गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउदी बहाउद्दीन था। वह दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का शासक था। 1265 से 1287 तक उसने शासन किया। वह एक ऐसा शासक था जो व्यवस्था और न्याय को महत्व देता था। बलबन ने उच्च जाति के लोगों को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया और निम्न जाति के लोगों को कभी नहीं छुआ; उन्होंने शराब पीना छोड़ दिया और पदाधिकारियों के लिए शराबबंदी की घोषणा कर दी। वह अत्यंत अनुशासित और न्यायप्रिय शासक था।
Summary:
रक्त और लौह की नीति किसने अपनाई थी?
सन् 1862 में जर्मन नेता बिस्मार्क के एक भाषण का शीर्षक रक्त और लोहा था जो आगे चलकर एक नीति बन गया। मामलुक वंश के 9वें सुल्तान गयासुद्दीन बलबन ने सबसे पहले भारत में रक्त और लोहा निति को अपनाया था। दिल्ली के गुलाम वंश के सुल्तान बलबन ने "रक्त और लौह" नीति का पालन किया, जिसने विभिन्न प्रकार की गंभीरता, कठोरता, तलवार के उपयोग और रक्तपात के माध्यम से विरोधियों के निर्मम उपचार की अनुमति दी।
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