Political Philosophies: Capitalism, Socialism and Communism

By Abhishek Jain |Updated : March 24th, 2022

In this article, we will cover the syllabus of  Political Philosophies:  Capitalism, Socialism and Communism: Their benefits, criticism, effects on society. These notes are available to download in PDF form in Hindi as well as English.

 

राजनीतिक दर्शनशास्‍त्र: साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद

 राजनीतिक दर्शनशास्‍त्र (राजनीतिक सिद्धांत) को किसी विशेष समय में लोगों द्वारा किए गए कार्यों के कारणों को समझने में सहायक आदर्शों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, ये वे कार्य हैं जो पूरे राजनीतिक ढांचे को प्रभावित करते हैं। कार्ल मार्क्स, हॉब्स और लॉक आदि कुछ महान राजनीतिक विचारकों ने विभिन्न राजनीतिक सिद्धांतों/दर्शनशास्‍त्र प्रतिपादित किए हैं, जिनमें से कुछ पर नीचे चर्चा की गई है:

पूंजीवाद

उपन्यासकार विलियम मेकपीस थैकरे (1854) के अनुसार, पूंजीवाद को पूंजी के स्वामित्व के रूप में परिभाषित किया गया है। यह वह शासन प्रणाली है, जहां सरकार को प्रशासनिक कार्यों सहित विभिन्न भूमिकाएं निभानी पड़ती है, और पूंजीवाद के समन्‍वयक और गैर सरकारी लोग देश के कानूनों के आधार पर निजी लाभ के लिए संपत्‍ति का स्‍वामित्‍व रखते हैं और इसे नियंत्रित करते हैं। यह मजदूरों के साथ मानव पूंजी के रूप में व्‍यवहार करता है जो आय के लिए काम करने हेतु स्वतंत्र है और अधिक पूंजी उत्पन्न करने के लिए अपने पैसे का निवेश कर सकता है।

सिद्धांत की उत्पत्‍ति 14वीं शताब्दी में जमींदारों और कृषि मजदूरों के बीच संघर्ष के फलस्वरूप हुई थी। जमींदारों ने मजदूरों को बाजार के बजाय अपनी जरूरतों के लिए पर्याप्‍त उत्पादन करने को मजबूर किया। इस प्रकार, उन्होंने वास्तव में प्रौद्योगिकी की शुरूआत के माध्यम से उत्पादन क्षमता बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली, लेकिन सैन्य साधनों के माध्यम से अपनी शक्‍ति का विस्तार किया।

पूंजीवाद के लाभ

  • यह मुक्‍त प्रतिस्पर्धी बाजार के माध्यम से आर्थिक विकास सुनिश्‍चित करता है जो प्रत्येक व्‍यक्‍ति को अपना लाभ अधिकतम करने का समान अवसर प्रदान करता है।
  • उपलब्ध संसाधनों की दक्षता और सर्वोत्‍कृष्‍ट उपयोग को बढ़ाने, अपव्यय की जांच करने और लागत में कटौती करने के लिए तकनीकी विकास का समर्थन करता है।
  • यह एक उपभोक्‍ता-केंद्रित प्रणाली है जो उपभोक्‍ता को उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के बीच चयन करने में समर्थ बनाता है, और इससे उत्पादकों के बीच प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होती है और बेहतर उत्पाद एवं सेवाएं प्राप्‍त होती हैं।
  • यह उपभोक्‍ता के लिए सभी उपज की सर्वोत्‍तम मूल्यों पर उपलब्धता सुनिश्‍चित करता है, जो आगे उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  • यह आगे निर्माताओं और उपभोक्‍ताओं दोनों के लिए लाभदायक होता है, और इससे बाजार में धन का चलन बना रहता है।

पूंजीवाद की आलोचना

  • पूंजीवाद कुछ लोगों के लिए ही आर्थिक लाभ का संचयन सिद्ध होता है, और यह बदले में, श्रमिक वर्ग के शोषण का कारण बनता है।
  • बाजार में एक कंपनी के एकाधिकार से उपभोक्‍ताओं का शोषण होता है।
  • मुक्‍त बाजार एक जटिल घटना है और कभी-कभी अन्यायपूर्ण और अनुचित होती है।

समाज पर पूंजीवाद का प्रभाव

  • पूंजीवाद आर्थिक विकास सुनिश्‍चित करता है क्योंकि यह निर्माताओं और उपभोक्‍ताओं दोनों को सशक्‍त बनाता है और मुद्रा चलन बनाए रखता है।
  • यह प्रतिस्पर्धी मूल्य पर वस्तुओं और सेवाओं की पहुंच सुनिश्‍चित करता है और देश में जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  • पूंजीवाद ने विश्‍व में LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्‍वीकरण) सुधारों का मार्ग प्रशस्‍त किया है और श्रम बल को वैश्‍विक रोजगार के अवसरों को चुनने के अवसर प्रदान किए हैं, जिसने वैश्‍विक सीमाओं को और संकुचित किया है।

समाजवाद

समाजवाद एक राजनीतिक-आर्थिक विचारधारा है, यह विचारधारा जाति, पंथ, लिंग और आयु की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के लिए वित्‍त और निधि आवंटन, आय की समानता और अवसर का विनियमन करने वाले किसी केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा तैयार की गई योजना के आधार पर उत्पादन और वितरण के साधनों के सार्वजनिक स्वामित्व में विश्‍वास करती है। सरकार अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का स्‍वामित्‍व रखती है और अधिकतम सार्वजनिक हित में उनका उपयोग करती है।

18वीं शताब्दी के अंत समय में समाजवाद की जड़ें उत्‍पन्‍न हुई थीं, जब एक सुशिक्षित और श्रमिक वर्ग के राजनीतिक आंदोलन ने सभ्यता पर अत्यधिक औद्योगीकरण और निजी स्वामित्व के प्रभावों को अस्वीकार कर दिया था। तब से विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं।

समाजवाद के लाभ

  • समानतावादी समाज को वास्तविक बनाने में मदद करता है।
  • सस्ती कीमत पर सामान और सेवाएं प्रदान करता है।
  • समाज में निर्माताओं के बीच निजी एकाधिकार के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा भी समाप्‍त करता है।
  • राष्‍ट्र नियंत्रित उत्पादन और वितरण किसी भी व्यावसायिक उतार-चढ़ाव से समाज की रक्षा करते हैं क्योंकि यह मुक्‍त बाजार के साधनों पर निर्भर नहीं करता है।
  • जैसा कि उत्पादन और वितरण दोनों केंद्र नियोजित होते हैं, समाज में न तो अतिउत्पादन होता है और न ही रोजगारहीनता उत्‍पन्‍न होती है।

समाजवाद की आलोचना

  • बाजार में प्रतिस्पर्धा के अभाव में उपभोक्‍ताओं के लिए विकल्पों की कमी हो जाती है, और उन्हें केवल उन वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करना पड़ता है जो राष्‍ट्र द्वारा तय की जाती हैं। इस प्रकार, समाजवाद उपभोक्‍ता के अधिकारों को दबा देता है या उनका अतिक्रमण करता है।
  • प्रणाली में निजी कंपनियों की कमी के कारण, यहां तक ​​कि रोजगार भी राष्‍ट्र द्वारा प्रदान किया जाता है। इस प्रकार, काम और काम के स्थान का चयन करने की कर्मचारी की स्वतंत्रता प्रतिबंधित हो जाती है।
  • जैसा कि समाजवादी विचारधारा काम में समानता को बढ़ावा देती है, अर्थात समान काम के लिए समान वेतन, यह मेहनती कर्मचारियों का उत्‍साह समाप्‍त करती है।
  • काम करने का नौकरशाही तरीका संसाधनों के लिए एक लंबी और अधिक समय वाली प्रक्रिया निर्धारित करता है; जिससे, देश के वास्तविक आर्थिक विकास में देरी होती है।

समाज पर समाजवाद का प्रभाव

  • एक कल्याणकारी समाज के निर्माण में मदद करता है, जहां लोगों की सभी बुनियादी जरूरतें (भोजन, कपड़ा और मकान) राष्‍ट्र द्वारा बहुत सस्ती कीमतों पर पूरी की जाती हैं।
  • रोजगार प्रदान करना राष्‍ट्र की जिम्मेदारी है। इस प्रकार, हर किसी को उसकी क्षमताओं, शिक्षा और कौशल के आधार पर नौकरी मिलती है।
  • संपूर्ण लाभ राष्‍ट्र को प्राप्‍त होता है, जो समाज को मुफ्त शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, सामाजिक सुरक्षा प्रदान करके आदि के द्वारा समाज की भलाई के लिए इस लाभ का उपयोग करते हैं।
  • राष्‍ट्र की सर्वोच्चता स्थापित हो रही है, जो उन्हें मनमाना बना रहा है।
  • नौकरशाही की जांच और संतुलन की कमी से समाज में भ्रष्‍टाचार बढ़ता है।
  • लोगों के अपने उपभोग की वस्‍तु का चयन और वे क्‍या और कहां कार्य करना चाहते हैं जैसे स्‍वतंत्रता के मौलिक अधिकार कम हो जाते हैं। समाजवाद उनके करियर में आर्थिक रूप से बढ़ने की उनकी क्षमता को कम करता है। इस प्रकार, लोग अपने व्यक्‍ति‍गत विकास के लिए नहीं बल्कि राष्‍ट्र के भय के तहत काम करते हैं।

साम्यवाद

साम्यवाद को उस विचारधारा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो लोगों के वर्ग (श्रम या पूंजीपति), उत्पादन के साधनों की परवाह किए बिना सभी के समान अधिकारों के आधार पर एक वर्गहीन समाज की ओर ले जाती है। यह विचारधारा एक ऐसे लोकतांत्रिक मुक्‍त समाज की स्थापना के लिए धनी शासक वर्ग के अतिवादी निर्मूलन में विश्वास करती है जहां वर्ग भेद नहीं होता है।

साम्यवाद के सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादकों में 19वीं शताब्दी में कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स शामिल हैं। उन्होंने सन् 1848 के कम्युनिस्ट घोषणापत्र में गहराई से इस विचार को संबोधित किया, जो 19वीं शताब्दी के यूरोप के समाजवादी आंदोलनों और औद्योगिक विद्रोह के दौरान प्रासंगिक दस्तावेज बन गया।

साम्यवाद के लाभ

  • किसी अन्‍य की तुलना में सामाजिक कल्याण को अधिक सुनिश्‍चित करता है।
  • मजबूत सामाजिक समुदायों के साथ एक समान समाज के निर्माण में मदद करता है।
  • समाज में सार्वभौमिक शिक्षा को सभी तक पहुंचने को बढ़ावा देता है।
  • महिला सशक्‍तिकरण का समर्थन करता है।

साम्यवाद की आलोचना

  • एक अत्‍यंत आदर्शवादी समाज, जो फलस्‍वरूप अतीत और वर्तमान का अवमूल्यन करता है।
  • दर्शनशास्‍त्र साम्‍यवादी अर्थव्यवस्था को चलाने का उचित तरीका नहीं प्रतिपादित करता है।
  • मानवता और मनुष्यों के जीवन और अधिकारों के महत्व को क्षीण करता है।
  • साम्यवाद को प्राय: सत्‍तारूढ़ दल द्वारा तानाशाही और उत्पीड़न के लिए बाड़ के रूप में देखा जाता है।

समाज पर साम्यवाद का प्रभाव

  • साम्यवाद की विचारधारा बिना शासक के समाज का समर्थन करती है, लेकिन जब तक यह हासिल नहीं हो जाता, तब तक संपूर्ण सत्‍ता तानाशाह सरकार के पास बनी रहेगी, जो आगे चलकर उनके द्वारा उत्पीड़न का कारण बनती है। उदाहरण के लिए, हिटलर का शासन और यहूदी नरसंहार की घटना।
  • साम्यवादी राष्‍ट्रों में, आधिकारिक दावों और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच का अंतर बहुत अधिक है। तानाशाह सरकार सूचना के प्रवाह और सभी प्रकार के संचार माध्‍यम को नियंत्रित करती है जो समाज को बाहरी दुनिया से पृथक करता है।

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