प्रसंग:
यह लेख इस विचार पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे और क्यों भारत ने वर्तमान चल रही महामारी के दौरान अपनी कूटनीति को बदल दिया है और भारत को बदलती वैश्विक गतिशीलता को पहचानने की जल्द आवश्यकता है। गुटनिरपेक्षता में वापस जाने की भारत की कोशिश बदलती परिस्थितियों में होने वाले बदलाब के साथ दृष्टिकोण में बदलाब कितना आवश्यक होता है।
गुटनिरपेक्षता का उद्भव और गुटनिरपेक्षता में जुड़ाव से भारत की समस्याएं :
- गुट निरपेक्ष आंदोलन 120 विकासशील देशों का एक मंच है यह ऐसे देशों का मंच है जो औपचारिक रूप से किसी भी महाशक्ति साथ गठबंधन नहीं कर सकते हैं दुनिया में तमाम शक्ति गुट सक्रिय है।जैसा कि हम जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर के देशों का सबसे बड़ा शक्तिशाली ब्लॉक है।
- स्वतंत्रता भारत ने भी गुटनिरपेक्षता के मार्ग का अनुसरण किया था, यह वास्तव में इस ब्लॉक के संस्थापक सदस्यों में से एक है, क्योंकि नेहरू का झुकाव USSR की तरफ था इसी वजह से उन्होंने गुटनिरपेक्षता के मार्ग का अनुसरण किया।
- हालांकि वास्तव में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के कई सदस्य वास्तव में एक या दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ गए थे जो कि बाद में अपने अपने हितों के कारण किसी न किसी महाशक्ति से जुड़ गए ।
- नेहरू के बाद के वर्षों में भी भारत ने काफी हद तक गुटनिरपेक्षता के रास्ते का अनुसरण, लेकिन कालांतर में यह अधिक प्रासंगिक नहीं रह गया, और बदलते भूराजनीति के कारण भारत ने भी वैश्वीकरण के मार्ग का अनुसरण किया और समय-समय पर महाशक्तियों के साथ सहयोग किया।
- भारत का यह दृष्टिकोण न केवल देश के लिए बल्कि गुटनिरपेक्षता के प्रति लापरवाही का प्रतीत हुआ है, बल्कि कालांतर में, भारत के लिए इस ब्लॉक का महत्व कम हो जाता है।
गुटनिरपेक्षता में पुन: जुड़ाव का कारण:
- हाल ही में प्रधान मंत्री मोदी ने गुटनिरपेक्ष देशों के एक आभासी शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, जिसने गुटनिरपेक्षता में भारत की भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए वैश्विक कयासों को एक नयी संज्ञा दे दी है।
- यह तथाकथित "ग्लोबल साउथ" में भारत की उम्मीदवारी को भी दर्शाता है और यह भी बताता है कि गुटनिरपेक्षता को भारत के द्वारा वर्तमान परिपेक्ष्य में अधिक उचाईयों तक पहुंचने में इस्तेमाल कर सकता है। इस तरह, गुटनिरपेक्षता भारत के अंतर्राष्ट्रीय हितों की खोज में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण राजनयिक मंच बना हुआ है।
- यह हमेशा माना जाता है कि गुटनिरपेक्षता शीत युद्ध के समय बना एक संगठन है और इसने उस समय की जरूरतों के अनुसार भी काम किया है, अब दुनिया यह भी महसूस कर रही है कि अमेरिका और चीन के बीच एक नया शीत युद्ध शुरू होने वाला है। इस स्थिति में, भारत के पास दोनों के बीच कुछ की भूराजनीति को समझते हुए नयी दिशा में बढ़ने की आवश्यकता है।
- पिछले कुछ वर्षों में, भारत ब्रिक्स जैसे कई भूराजनैतिक मंचों के लिए समय समर्पित कर रहा है। इन मंचों ने केवल रूसी और चीनी नेतृत्व के लिए ही लाभ प्रदान किया है, इसलिए भारत को अपने के हितों के मुद्दों पर समर्थन जुटाने के लिए गुटनिरपेक्षता की आवश्यकता है।
वैश्विक महामारी संकट और इसके बाद गुटनिरपेक्षता की नेतृत्वकारी भूमिका?
- गुटनिरपेक्षता NAM में वर्तमान 120 स्थायी सदस्यों के साथ भारत पूरी तरह से उस अवस्था में है जिससे वह अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सम्मान और अपने जनसमुच्या और अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी मंच का बखूबी इस्तेमाल कर सकताहै।
- इसके अलावा, भारत की शक्ति और अधिक बढ़ी हुई मालूम होती है क्योंकि भारत NAM के तीन संस्थापक देशों में से एक है, मिस्र और तत्कालीन यूगोस्लाविया के साथ, जो कि मूलरूप इसके पक्ष में काम करते हैं।
NAMनेतृत्व करने के लिए भारत के लिए विशेष फायदे
- अगर अंतर्राष्ट्रीय से दृष्टिकोण से देखा जाए तो मोदी के लिए अपनी सत्तावादी और राष्ट्रवादी छवि की सुधरने के लिए यह एक महत्वपूर्ण मंच हो सकता है। अगर वह दुनिया के सबसे बड़े बहुध्रुवीय संगठन में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है तो वह उसे ट्रम्प और अन्य ऐसे नेताओं कुछ अलग करना होगा, जिन्होंने बहुपक्षवाद बढ़ावा देते हुए पीछे धकेल दिया है।
- इसके अलावा, NAM ने विदेश नीति के नेहरूवादी खाके को भी पुनर्परिभाषित किया, जिसे पश्चिम और मध्य पूर्व, दो क्षेत्रों में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था, जहां से मोदी लगभग एक साल से अधिकतम समर्थन प्राप्त कर रहे हैं।
- दुनिया को उम्मीद है कि COVID-19 के बाद एक नए वैश्विक शक्ति केंद्र का निर्माण हो सकता, भारत जैसी शक्तियों को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका दौरान मिल सकता है।
- NAM, में आज जो भी ढांचा नजर आता है, उसके बारे स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है इस के वर्तमान ढांचे में काफी खामियां है "वैश्वीकरण के जो भी उद्देश्य है निष्पक्षता, समानता, और मानवता उन्हें इस मंच से थोड़ा बदलाब करके हासिल किया जा सकता है "
- यह भी कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ" मानव कल्याण को बढ़ावा देने के लिए "अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की आवश्यकता है, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, के माध्यम से इस तरह की पहल की भारत की" भागीदारी"पर प्रकाश डाला गया।" और आपदा प्रतिरोधक संरचना के लिए गठबंधन सराहा गया है।
इसके मूल उद्देश्यों को पूरा करना:
- गुटनिरपेक्ष देशों के मूल उद्देश्य वे आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन पर केंद्रित हैं।
- यह रंगभेद के विरोध पर भी केंद्रित है; बहुपक्षीय सैन्य संधि के गैर-पालन, और महान शक्ति या ब्लॉक प्रभावों और प्रतिद्वंद्विता से गुट-निरपेक्ष देशों की स्वतंत्रता आदि इसके लक्ष्यों में शामिल है
- इसके अलावा उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष, इसके अलावा यह निओकोलिज़्मवाद, नस्लवाद, विदेशी प्रभुत्व वर्चस्व को भी निशाना बनाता है; निरस्त्रीकरण; राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और शांतिपूर्ण सभी देशों के बीचसह-अस्तित्व को भी यह ध्यान रखता है|
- यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बल के उपयोग के खतरे या उपयोग की अस्वीकृति को बढ़ावा देता है; संयुक्त राष्ट्र की मजबूती; अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का लोकतंत्रीकरण; सामाजिक आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली का पुनर्गठन; यह समान स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी विकसित करता है।
- यदि NAM देशों के उद्देश्य अपने पूर्ण स्तर पर प्राप्त होते हैं, तो सद्भाव और शांति बनाए रखने के लिए वैश्विक संतुलन के लिए हमेशा अच्छा है।
निष्कर्ष:
- पिछले कुछ वर्षों में भारत की कूटनीति प्रमुख रूप से चीन और उसके प्रभाव का मुकाबला करने के मार्ग पर चल रही है।
- भारत कई देशों में अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और भारत-प्रशांत में एक प्रतियोगी के रूप में चीन का सामना कर रहा है। भारत-अमेरिका संबंध पूरक हैं, और एक औपचारिक गठबंधन इन संबंधों की पूरी क्षमता का एहसास करने में मदद करेगा।
- हालांकि अमेरिका के साथ भारत का गठबंधन चीन के साथ व्यापार संबंधों को तोड़ने वाला नहीं है। शीत युद्ध के दौरान भी सोवियत संघ की ओर झुकाव के बावजूद भारत केअमेरिका के साथ अच्छा व्यापार संबंध थे।
- गुटनिरपेक्षता या एक स्विंग स्टेट होने के नाते यह सब समझ में आता है अगर दोनों ओर से प्राप्त होने वाले लाभ संतुलित हो तो चीन कभी भी भारत बनने की कोशिश नहीं करेगा, जैसा कि कभी सोवियत संघ था। COVID-19 के बाद की दुनिया में, भारत को निश्चित रूप गुटनिरपेक्षता का में एकमहत्वपूर्ण योगदान स्थापित करना होगा।
To boost the preparation of all our users, we have come up with some free video (Live Class) series.
Here are the links:
IAS Prelims 2021: A series of important topics
IAS Prelims 2020: A series of important topics
More from us
Get Unlimited access to Structured Live Courses and Mock Tests- Gradeup Super
Comments
write a comment