भारत में प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) प्रौद्योगिकी
इतिहास
- भारत में मिसाइल के प्रयोग की शुरूआत प्राचीन काल में हुई थी, उस समय मिसाइलों को अस्त्र कहते थे।
- शास्त्रों एवं रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में मिसाइलों का वर्णन मिलता है, जिन्हें मंत्रों द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जिन्हें आज के मिसाइल मिशन कंट्रोल सॉफ्टवेयर के समान समझा जा सकता है।
- विश्व में सबसे पहले रॉकेट का प्रयोग टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी (सन् 1792) में ब्रिटिश के खिलाफ आंग्ल-मैसूर युद्ध में किया था।
- टीपू सुल्तान द्वारा प्रयोग किए गए रॉकेट बांस और स्टील के भाले से बने थे, प्रपोलक के रूप में कच्चा लोहा कक्ष और बारूद के रूप में गन पाउडर का इस्तेमाल किया गया था।
- ब्रिटिश शासन के दौरान मिसाइल विकास तकनीक उपनिवेशवाद, संसाधनों की कमी, अनुसंधान क्षमताओं में कमी आदि कईं कारणों के कारण पीछे रह गई।
स्वतंत्रता के बाद
- स्वतंत्रता पश्चात हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (R.D.L.) में 1960 में टैंक भेदी मिसाइलों और साउंडिंग रॉकेट के विकास का कार्य शुरू हुआ था।
- इस प्रयोगशाला द्वारा निर्मित एंटी-टैंक मिसाइल प्रोटोटाइप का थल सेना द्वारा प्रक्षेपण किया गया, जिसकी पाकिस्तानी सेना को अमेरिका द्वारा दी गई कोबरा मिसाइलों से टक्कर थी, जिसने 1965 के युद्ध में भारी संख्या में भारतीय टैंकों को खत्म किया था।
- वर्ष 1969 में भारतीय वायु सेना ने सोवियत संघ के एस.ए.-75 एस.ए.एम. को रिवर्स इंजीनियर करने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया था, क्योंकि सोवियत संघ पर्याप्त मात्रा में कल-पुर्जों की आपूर्ति नहीं कर रहा था। इस उद्यम को ‘प्रोजेक्ट डेविल’ कहा गया, जिसका कभी उत्पादन नहीं हुआ, लेकिन इससे डी.आर.डी.एल. को तकनीकी ज्ञान प्राप्त हुआ जिसके फलस्वरूप आकाश मिसाइल का जन्म हुआ।
- स्वतंत्रता के बाद स्वदेशी मिसाइल विकास की शुरूआत एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme (IGMDP)) के साथ हुई थी। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य स्वदेशी क्षमतायुक्त बैलिस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण वाहन तकनीक का निर्माण करना था।
- एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत सबसे पहले वर्ष 1988 में पृथ्वी और वर्ष 1989 में अग्नि मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया था।
- देश को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में तकनीक, सामग्रियां, उपतंत्र, प्रेक्षण केन्द्र विकसित करने के लिए देश भर में स्वतंत्र अनुसंधान प्रयोगशालाओं के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां स्थापित की गईं।
- सन् 1983 में, चंडीगढ़ में इसकी अनुसंधान प्रयोगशाला के साथ सेमीकंडक्टर कॉम्पलेक्स लिमिटेड (एस.सी.एल.) स्थापित किया गया था। इससे मिसाइल तकनीक विकास में प्रयोग होने वाली गाइडेड चिप के आयात में कमी आई।
- आई.जी.एम.डी.पी. के अंतर्गत दोनों सामरिक और रणनीतिक क्षेत्र की मिसाइलें विकसित की जा चुकी हैं और भारतीय थल सेना में शामिल हो गईं हैं।
- बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास की शुरूआत पृथ्वी, अग्नि और धनुष के साथ हुई थी और यह अग्नि श्रेणी (अग्नि V और अग्नि VI) में अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम.) तक जारी है।
- अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम.) की मारक क्षमता 5000 कि.मी. से अधिक है, और यह अपने साथ तीन टन भारी पेलोड ले जाने में सक्षम है।
- इसमें कईं बहु-स्वतंत्र लक्ष्य री-एंट्री व्हीकल (एम.आई.आर.वी.) होंगे, जिसमें प्रत्येक विभिन्न लक्ष्यों पर निशाना बनाने में सक्षम हैं।
- प्रत्येक वारहेड – जिसे मैनुवरेबल री-एंट्री व्हीकल (एम.आई.आर.वी.) कहते हैं, व्यापक कलाबाजियों का प्रदर्शन करेगा, क्योंकि अपने लक्ष्य की तरफ जाते समय, दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम के लिए इसे गिराना मुश्किल हो जाता है।
- सामरिक नाभिकीय हथियारों (टी.एन.डब्ल्यू.) के साथ ही सहायक मिसाइल विकास भी के-श्रेणी मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ शुरू हुआ था जिससे सबमरीन लांच बैलिस्टिक मिसाइलें (एस.एल.बी.एम.) सुपुर्द की गईं।
- इस कार्यक्रम के तहत विकसित की गई मिसाइलें सागरिका (के-15), के-4 और के-5 थीं। शौर्य मिसाइल एक संकरित मिसाइल है अर्थात यह बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइल दोनों है।
- एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल के विकास की शुरूआत भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल विकास कार्यक्रम (आई.बी.एम.डी.पी.) के साथ हुई थी, जिससे पृथ्वी एयर डिफेंस (पी.ए.डी.) और एडवांस एयर डिफेंस (ए.ए.डी.) जैसी मिसाइलों की श्रेणी विकसित हुई।
- क्रूज़ मिसाइल के विकास की शुरुआत ब्रह्मोस के साथ हुई थी जो कि रूस के साथ एक सहयोगात्मक परियोजना है।
भारतीय मिसाइलों का वर्गीकरण
प्रकार के आधार पर
- क्रूज़ मिसाइल
- बैलिस्टिक मिसाइल
- अर्द्ध-बैलिस्टिक मिसाइल
(a) क्रूज़ मिसाइल
- क्रूज़ मिसाइलें निर्देशित मानव रहित मिसाइलें होती हैं और ये वायुमंडल अर्थात् स्थलीय लक्ष्यों को निशाना बनाने हेतु प्रयोग की जाती हैं।
- ये निम्न स्तर की उड़ान भरती हैं जिसे स्थल, जल और वायु से प्रक्षेपित किया जा सकता है।
- गति के आधार पर क्रूज़ मिसाइलों को सबसोनिक, सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक में वर्गीकृत किया जाता है।
- उदाहरण: ब्रह्मोस, निर्भय
- सबसोनिक:
- ये मिसाइलें ध्वनि की गति (1 मैक संख्या) से कम गति पर चलती हैं।
- उदाहरण: निर्भय
- सुपरसोनिक
- ये मिसाइलें 2-3 मैक संख्या की गति के बीच चलती हैं।
- उदाहरण: ब्रह्मोस
- हाइपरसोनिक:
- ये मिसाइलें 5 मैक संख्या से अधिक गति पर चलती हैं। ये ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक गति से चलती हैं।
नोट:-
मैक संख्या: यह आस-पास के माध्यम में वस्तु की गति का ध्वनि की गति से अनुपात होता है।
(b) बैलिस्टिक मिसाइल
- बैलिस्टिक मिसाइल का प्रक्षेप्य पथ बैलिस्टिक प्रक्षेप वक्र द्वारा निर्धारित होता है।
- बैलिस्टिक मिसाइलों को स्थल और जल आधारित तंत्र से छोड़ा जा सकता है।
- अपनी प्रारंभिक उड़ान में यह ऊंचे आर्क प्रक्षेपवक्र पर जाती है और नीचे आते समय मुक्त रूप से गिरती है।
- उदाहरण: अग्नि, पृथ्वी आदि
प्रक्षेपण माध्यम पर आधारित
- सतह से सतह
- सतह से वायु
- वायु से वायु
- वायु से सतह
- सतह से समुद्र
- एंटी-टैंक मिसाइल
मारक क्षमता पर आधारित
- छोटी दूरी की मिसाइलें
- मध्यम दूरी की मिसाइलें
- इंटरमीडिएट दूरी की मिसाइलें
- अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें
प्रणोदक के आधार पर
- ठोस प्रणोदक
- तरल प्रणोदक
- संकरित प्रणोदक
- रामजेट
- स्क्रैमजेट
- क्रॉयोजेनिक
वारहेड के आधार पर
- पारंपरिक
- सामरिक
निर्देशित प्रणाली (गाइडेड सिस्टम) के आधार पर
- वायर गाइडेंस
- कमांड गाइडेंस
- इनर्शियल गाइडेंस
- स्थलीय गाइडेंस
- लेज़र गाइडेंस
- आर.एफ. और जी.पी.एस. गाइडेंस
भारत की प्रमुख मिसाइलें
मिसाइल | कार्यक्रम | प्रकार | लांच माध्यम | मारक क्षमता (कि.मी.) | प्रणोदक | निर्देशित प्रणाली (गाइडेड सिस्टम) | वारहेड |
अग्नि I | एकीकृत गाइडेड मिसाइल कार्यक्रम (IGMDP) | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह मिसाइल | मध्यम दूरी (700 – 1250) कि.मी. | 1 चरण – ठोस प्रणोदक | रिंग लेज़र गायरो- इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | पारंपरिक और नाभिकीय वारहेड |
अग्नि II | एकीकृत गाइडेड मिसाइल कार्यक्रम (IGMDP) | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | अंतर-माध्यमिक दूरी (2000 – 2500) कि.मी. | 2 चरण – ठोस प्रणोदक | रिंग लेज़र गायरो- इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | पारंपरिक और नाभिकीय |
अग्नि III | एकीकृत गाइडेड मिसाइल कार्यक्रम (IGMDP) | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | अंतर-माध्यमिक दूरी (3000 – 5000) कि.मी. | 2 चरण – ठोस प्रणोदक | रिंग लेज़र गायरो- इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | पारंपरिक, थर्मोबेरिक और नाभिकीय |
अग्नि IV | IGMDP | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | अंतर-माध्यमिक दूरी (4000) कि.मी. | 2 चरण – ठोस प्रणोदक | रिंग लेज़र गायरो- इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | पारंपरिक, थर्मोबेरिक और नाभिकीय |
अग्नि V | IGMDP | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | अंतर-महाद्वीपीय (5000 – 8000) कि.मी. | 3 चरण – सभी ठोस प्रणोदक | रिंग लेज़र गायरो- इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | नाभिकीय |
पृथ्वी I | IGMDP | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | छोटी दूरी – 150 कि.मी. | 1 चरण – तरल प्रणोदक | स्ट्रैप डाउन – इनर्शियल गाइडेंस | रसायनिक, नाभिकीय (परिवर्तनीय वारहेड) |
पृथ्वी II | IGMDP | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | छोटी दूरी (150 – 350) कि.मी. | 1 चरण – तरल प्रणोदक | स्ट्रैप डाउन – इनर्शियल गाइडेंस | रसायनिक, नाभिकीय (परिवर्तनीय वारहेड) |
पृथ्वी III | IGMDP | बैलिस्टिक मिसाइल | सतह से सतह | छोटी दूरी (350 – 650) कि.मी. | 1 चरण – ठोस प्रणोदक | स्ट्रैप डाउन – इनर्शियल गाइडेंस | रासायनिक, नाभिकीय (परिवर्तनीय वारहेड) |
आकाश | IGMDP | बैलिस्टिक | सतह से वायु (गतिक) | छोटी दूरी – 30 कि.मी. | इंटीग्रल रॉकेट मोटर | कमांड गाइडेंस | विस्फोटक |
त्रिशूल | IGMDP | बैलिस्टिक | सतह से आकाश | छोटी दूरी – 10 कि.मी. | 1 चरण – ठोस |
| विस्फोटक |
नाग | IGMDP | एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल |
| 500 मीटर से 4 कि.मी. (वायु प्रक्षेपित) | टेंडम ठोस प्रणोदक | एक्टिव इमेजिंग इन्फ्रारेड सीकर | टेंडम वारहेड |
अमोघ |
| एंटी-टैंक मिसाइल |
| कम दूरी |
|
| टेंडम वारहेड |
प्रहार |
| बैलिस्टिक | सतह से सतह | कम दूरी – 150 कि.मी. | ठोस प्रणोदक | इनर्शियल नेविगेशन | पारंपरिक और नाभिकीय |
धनुष | पृथ्वी का नौसेना संस्करण | बैलिस्टिक | सतह से सतह | 350 कि.मी. | 1 चरण – तरल प्रणोदक | स्ट्रैप डाउन – इनर्शियल गाइडेंस | रसायनिक, नाभिकीय (परिवर्तनीय वारहेड) |
सूर्य | हाइब्रिड मिसाइल डेवलपमेंट | बैलिस्टिकऔर क्रूज़ | सतह से आकाश | कम दूरी (25 – 30) कि.मी. | थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल | टर्मिनल गाइडेंस | पारंपरिक और नाभिकीय |
सागरिका (के-15) | के – श्रेणी | सबमरीन लांच बैलिस्टिक मिसाइल (एस.एल.बी.एम.) | पनडुब्बी प्रक्षेपित | कम दूरी 700 – 1000 कि.मी. | 2 – चरण ठोस प्रणोदक | आई.आर.एन. एस.एस. |
|
के -4 | के – श्रेणी | एस.एल.बी.एम. | पनडुब्बी प्रक्षेपित | इंटरमीडीऐट रेंज – 3500c कि.मी. | ठोस ईंधन | रिंग लेजर गायरो इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | नाभिकीय वारहेड |
के- 5 | के – श्रेणी | एस.एल.बी.एम. | पनडुब्बी प्रक्षेपित | 5000 कि.मी. | ठोस ईंधन |
| नाभिकीय |
बराक – 8 | भारत – इज़रायल | बैलिस्टिक | सतह से वायु | लंबी दूरी | 2 चरण – पल्स रॉकेट मोटर | आर.एफ./आई.आई.आर. | पारंपरिक और नाभिकीय |
अस्त्र | डी.आर.डी.ओ. | दृश्य परास के बाहर मिसाइल | वायु से वायु | कम दूरी – 80 कि.मी. | ठोस ईंधन रॉकेट | इनर्शियल गाइडेंस सिस्टम | निर्देशित (खंडित) वारहेड |
पृथ्वी एयर डिफेंस | भारतीय बैलिस्टिक रक्षा कार्यक्रम (IBMDP) | एंटी-बैलिस्टिक | बाह्य वायुमंडलीय | 2000 कि.मी. | 2 चरण; 1 – तरल; 2 – ठोस | इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम |
|
एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) | IBMDP | एंटी-बैलिस्टिक | अंत: वायुमंडलीय | ऊंचाई – 120 कि.मी. | 1 चरण – ठोस | इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम | विस्फोटक |
पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (PDV) | IBMDP | एंटी-बैलिस्टिक | बाह्य वायुमंडलीय | ऊंचाई – 30 कि.मी. | 2 चरण – ठोस | इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम |
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ब्रह्मोस | भारत – रूस | क्रूज़ मिसाइल | सतह से सतह | सुपरसोनिक – 290 कि.मी. | 2 चरण; 1 – ठोस; 2 – द्रव; | आई.एन.एस. टर्मिनल गाइडेंस | पारंपरिक और नाभिकीय |
ब्रह्मोस – II | भारत – रूस | क्रूज़ मिसाइल | सतह से सतह | 400 – 650 कि.मी. | स्क्रैमजेट | आई.एन.एस. टर्मिनल गाइडेंस | पारंपरिक और नाभिकीय |
निर्भय |
| क्रूज़ |
| सबसोनिक – 1000 कि.मी. | रॉकेट बूस्टर | आई.एन.एस. आई.आर.एन. एस.एस. | पारंपरिक और नाभिकीय |
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