दुनिया के महानतम नेताओं में से एक महात्मा गांधी एक राजनीतिक विचारक, सामाजिक तथा राजनीतिक सुधारक, मानवतावादी, दूरदर्शी और आध्यात्मिक नेता थे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। महात्मा के रूप में जाने-जाने वाले गांधी ने न केवल भारत में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, बल्कि दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के प्रति भारतीयों के संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वो वैचारिक अवधारणाएं जिनका इस्तेमाल कर गांधी जी ने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में क्रांति का सूत्रपात किया, वो काफी हद तक दक्षिण अफ्रीका में विकसित हुई थीं। सत्याग्रह जैसी प्रसिद्ध धारणा उनपर कार्य करने वाले विभिन्न प्रभावों के परिणामस्वरूप ही उभरी थी। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हिन्दू धर्म से संबंधित भागवत गीता और ईसाई धर्मो के ग्रंथो का अध्ययन किया।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी
महात्मा गांधी पर हेनरी डेविड थोरो, लियो टॉल्स्टॉय, जॉन रस्किन और राल्फ वाल्डो की रचनाओं का भी महत्वपूर्ण प्रभाव था। सरकारी अत्याचार से लड़ने हेतु नागरिक हथियार के रूप में असहयोग आंदोलन की धारणा पर इन सभी लेखकों द्वारा चर्चा की गई थी, लेकिन गांधी ने ही इस अवधारणा को व्यावहारिक रूप दिया।
दक्षिण अफ्रीका में जीवन
महात्मा गांधी की कहानी 1893 में शुरू हुई जब 25 वर्षीय बैरिस्टर के रुप में उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ भारतीयों का संघर्ष शुरू किया।
1890 एक ऐसा समय था जब दक्षिण अफ्रीका में भारतीय श्रम की शुरुआत हुई थी। मजदूरों को चीनी के फर्मों में काम करने के लिए बुलाया जाता था, उनके साथ भारतीय व्यापारी भी थे। एक तीसरा समूह भी था जो पूर्व में मजदूर थे, जिनका अनुबंध समाप्त हो गया था और वे अपने बच्चों के साथ वहां रहते थे। उन सभी के पास शिक्षा का कोई साधन नहीं था।
यह वह समय था जब महात्मा गांधी एक अंग्रेजी शिक्षित बैरिस्टर के रूप में दक्षिण अफ्रीका आए थे। युवा गांधी को अपने जीवन में भारत या इंग्लैंड में अभी तक नस्लवाद का सामना नहीं करना पड़ा था। परन्तु जब वह दक्षिण अफ्रीका में थे, तो उन्हें होटल मालिकों, रेलवे और यहां तक कि अन्य दक्षिण अफ्रीकियों से भी नस्लवाद को सहन करना पड़ा।
दक्षिण अफ्रीका में घटनाओं का समयक्रम:
- गुजरात के व्यापारी दादू अब्दुल्ला की कानूनी समस्याओं को दूर करने हेतु 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए थे।
- जिस मुद्दे पर उनका दक्षिण अफ्रीकी संघर्ष शुरू हुआ, वह नेटाल में नटाल सरकार द्वारा भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने के लिए प्रस्तावित बिल था।
- उनके संघर्ष का पहला चरण संवैधानिक तरीकों के साथ 1894-1906 के दौरान शुरु हुआ था। उनके संघर्ष का दूसरा चरण 1906-1914 के दौरान सत्याग्रह मुख्य विधि के रूप में था।
- 1893 में भारतीय नटाल संगठन नटाल इंडियन कांग्रेस का गठन किया।
- उन्होंने 1899 में बोअर युद्ध के दौरान अंग्रेजों के लिए भारतीय एम्बुलेंस कोर का गठन किया था। ताकि ब्रिटिश मानवता को समझ सकें, लेकिन भारतीयों पर जातीय भेदभाव और अत्याचार इसके बाद भी जारी रहे।
- 1903 में एक साप्ताहिक इंडियन ओपिनियन की शुरूआत की।
- पंजीकरण मुद्दे से जुड़े परमिट कार्यालयों का बहिष्कार करने हेतु 1907 में "निष्क्रिय प्रतिरोध संघ' का गठन किया गया।
- उन्होंने डरबन के पास फीनिक्स फार्म की स्थापना की जहां गांधी जी ने अपने कैडर को शांतिपूर्ण विरोध या अहिंसक सत्याग्रह के लिए प्रशिक्षित किया। इस स्थान को सत्याग्रह की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है।
- उन्होंने एक अन्य फार्म की भी स्थापना की, जिसे टॉलस्टॉय फार्म के रूप में जाना जाता था, यह वह स्थान है जहाँ सत्याग्रह को विरोध को हथियार के रूप में ढाला गया था।
- पंजीकरण कानून को रद्द करने के लिए जनरल स्मट्स के आश्वासन पर कुछ समय के लिए 'सत्याग्रह' स्थगित कर दिया गया परन्तु बाद में जनरल स्मट्स अपने वादे से मुकर गए जिससे लोगों में उनके विरुद्ध काफी आक्रोश पैदा हो गया।
- स्थानीय भारतीयों के खिलाफ गठित ट्रांसवाल एशियाटिक अध्यादेश के विरोध में सितंबर 1906 में महात्मा गांधी का पहला अहिंसात्मक सत्याग्रह अभियान आयोजित किया गया था। उसके बाद, उन्होंने जून 1907 में ब्लैक एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह भी किया।
- उन्हें 1908 में अहिंसक आंदोलन के आयोजन के लिए जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन जनरल स्मट्स के साथ मुलाकात के बाद जोकि एक ब्रिटिश राष्ट्रमंडल राजनेता थे, गाँधी जी को रिहा कर दिया गया।
- उन्हें 1909 में वोल्कशॉर्स्ट और प्रिटोरिया में तीन महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी। रिहाई के बाद, वह वहां भारतीय समुदाय की सहायता लेने हेतु लंदन गए लेकिन वहां उनका प्रयास व्यर्थ गया।
- अंत में, उन्होंने पैकेज समझौता किया, जिसके अनुसार भारतीय संस्कारों के अनुसार की गई शादी को कानूनी घोषित किया गया, मुक्त प्रयोगशाला में 3 पाउंड के कर को समाप्त कर दिया गया और अब दक्षिण अफ्रीका संघ में प्रवेश करने हेतु केवल अधिवास प्रमाणपत्र की आवश्यकता थी।
- 1913 में, उन्होंने गैर-ईसाई विवाहों को रद्द करने के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने भारतीय नाबालिगों के उत्पीड़न के खिलाफ ट्रांसवाल में एक और सत्याग्रह आंदोलन किया। उन्होंने ट्रांसवाल सीमा के पार लगभग 2,000 भारतीयों का नेतृत्व किया।
- वह समस्याएं जिनके विरुद्ध गांधी लड़े थे-
- भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने वाले बिल के विरुद्ध।
- भारतीयों का पंजीकरण प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होना, जो उनकी उंगलियों पर निशान के रुप में होते थे।
- सभी पूर्व-अप्रवासी भारतीय पर 3 पाउंड का कर लगाया गया था।
अहिंसक सविनय अवज्ञा को पहले दक्षिण अफ्रीका में लागू किया गया और इस महान प्रयोग की अब भारतीय उपमहाद्वीप में भी आवश्यकता थी। महात्मा की उपाधि उन्हें उनके मित्र प्राणजीवन मेहता ने दी थी।
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