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लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं?
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
जब एक कोशिका क्षतिग्रस्त या मर जाती है, तो उसमे पहले से मौजूद लाइसोसोम फट जाता हैं। आगे उसमे भरा एंजाइम अपनी ही कोशिका को पचा लेते हैं। लाइसोसोम के द्वारा हुई यह आत्मघाती क्रिया उसे आत्मघाती थैली बनाती है। आसन भाषा में कहें तो कोशिका के मृत होने पर लाइसोसोम के एंजाइम कोशिका को खाते हैं, यही कारण है कि लाइसोसोम को आत्मघाती थैली कहते हैं।
Table of content
लाइसोसोम जंतु कोशिकाओं में पाया जाने वाला आवरणयुक्त थैलीनुमा अंग अणु है। यह कोशिकाय पाचन क्रिया में सहायक होता है। इसकी खोज सर्वप्रथम क्रिश्चियन डी डूवे ने वर्ष 1958 में की थी। इनके अन्दर बड़ी मात्रा में मैट्रिक्स भरा रहता है, जिसमें एन्जाइम भरे होते हैं।
लाइसोसोम के कार्य
- लाइसोसोम का प्राथमिक कार्य पाचन क्रिया का होता है।
- कोशिका विभाजन में सहायता करना
- मृत कोशिकाओं का निष्कासन भो लाइसोसोम का ही कार्य है।
Summary
लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं?
लाइसोसोम को आत्मघाती थैली कहने का कारण यह है कि कोशिका के निष्क्रिय होने पर खुद को नष्ट कर मृत कोशिका का पाचन करता है। यह कोशिका के भीतर कोशिका द्रव्य में होता है।