Lokpal and Lokayukt Act Notes

By Ashutosh Yadav|Updated : March 16th, 2022

In this article, we are providing you with the complete notes on Lokpal and Lokayukta Act which is very often asked in the Civil Services Competitive Examiantions. Candidates can also download the PDF of these notes in both English and Hindi for free from the direct link given at the end of the article. 

लोकपाल और लोकायुक्‍त

महत्वपूर्ण तथ्य

  • लोकपाल और लोकायुक्‍त एक भ्रष्‍टाचार विरोधी प्रशासनिक शिकायत जांच अधिकारी (ओम्‍बड्समैन) है, जिसे लोकपाल एवं लोकायुक्‍त अधिनियम, 2013 के तहत स्थापित किया गया है।
  • इस अधिनियम में केंद्र में 'लोकपाल' और प्रत्येक राज्य में 'लोकायुक्‍त' नियुक्‍त करने का प्रावधान है।
  • ये बिना किसी संवैधानिक दर्जे के स्थापित वैधानिक संस्‍थाएं हैं।
  • उच्‍चतम न्‍यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्‍यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष भारत के प्रथम लोकपाल हैं।

भारत में लोकपाल और लोकायुक्‍त का विकास

  • पहली बार स्वीडन में सन् 1809 में एक लोकपाल (ओम्‍बड्समैन) पद स्‍थापित किया गया था।
  • लोकपाल की अवधारणा द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद प्रमुख रूप से विकसित हुई।
  • यूनाइटेड किंगडम ने इसे सन् 1967 में अपनाया।
  • भारत में, इस अवधारणा को पहली बार सन् 1960 के दशक में तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सेन द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • सन् 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों ने लोक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए निष्‍पक्ष प्राधिकरण की स्थापना का सुझाव दिया।
  • सन् 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी लोकपाल के प्रावधान की सिफारिश की।
  • भारत में लोकपाल विधेयक पहली बार सन् 1968 में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन इसे पारित नहीं किया जा सका और सन् 2011 तक विधेयक को पारित कराने के लिए कुल आठ विफल प्रयास किए गए।
  • अंत में, सिविल सोसाइटी से दबाव और सामाजिक समूहों की मांग के फलस्वरूप लोकपाल एवं लोकायुक्‍त विधेयक, 2013 पारित किया गया।

लोकपाल अधिनियम, 2013 की प्रमुख विशेषताएं

  • यह अधिनियम केंद्र में लोकपाल और प्रत्‍येक राज्य में लोकायुक्‍त के रूप में भ्रष्‍टाचार विरोधी प्रशासनिक शिकायत जांच अधिकारी स्थापित करने की अनुमति देता है।
  • यह विधेयक पूरे भारत में विस्‍तारित किया गया है। जम्मू-कश्मीर राज्य भी इस अधिनियम के अंतर्गत आता है।
  • लोकपाल में प्रधान मंत्री सहित सभी प्रकार के लोक सेवक शामिल हैं।
  • सशस्‍त्र बलों के अधिकारी/कार्मिक लोकपाल के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • इसमें अभियोजन के दौरान भी भ्रष्‍टाचार द्वारा अर्जित संपत्‍ति की कुर्की और जब्ती के प्रावधान हैं।
  • राज्यों को अधिनियम के लागू होने के एक वर्ष के अंदर लोकायुक्‍त की नियुक्‍ति करना आवश्‍यक है।
  • इसमें मुखबिर (whistleblower) के रूप में कार्य करने वाले लोक सेवकों की सुरक्षा के प्रावधान हैं।

लोकपाल की संरचना

  • लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य होते हैं।
  • अध्यक्ष और आधे सदस्यों का कानूनी पृष्‍ठभूमि से होने अनिवार्य है।
  • 50% सीटें SC, ST, OBC, अल्पसंख्यकों या महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

अध्यक्ष के चयन हेतु मानदंड

  • उसे भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या उच्‍चतम न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए।
  • वह भ्रष्‍टाचार विरोधी नीति, कानून, प्रबंधन आदि से संबंधित मामलों में न्‍यूनतम 25 वर्षों के अनुभव सहित निरपराध अखंडता और उत्कृष्‍ट योग्‍यता वाला एक प्रतिष्‍ठित व्यक्‍त होना चाहिए।

अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्‍ति

राष्‍ट्रपति एक चयन समिति के सिफारिश से अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करता है, जिसमें निम्नलिखित व्‍यक्‍ति शामिल होते हैं: -

  • प्रधानमंत्री
  • लोकसभा अध्यक्ष
  • लोकसभा में विपक्ष के नेता
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश
  • राष्‍ट्रपति द्वारा नियुक्‍त एक प्रतिष्‍ठित कानूनविद

कार्यकाल

  • लोकपाल का अध्यक्ष और उसके सदस्य पांच वर्ष तक या 70 वर्ष की आयु तक पद धारण करते हैं।
  • अध्‍यक्ष का वेतन, भत्‍ते और कार्य की अन्य शर्तें भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होंगी, और सदस्य का वेतन, भत्‍ते और कार्य उच्‍चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान हैं।
  • सभी खर्चों का वहन भारत की संचित निधि से किया जाता है।

लोकपाल के क्षेत्राधिकार और शक्‍तियां

  • लोकपाल का क्षेत्राधिकार सभी समूहों अर्थात A, B, C और D के अधिकारियों और केंद्र सरकार के अधिकारियों, सार्वजनिक उपक्रमों, संसद सदस्यों, मंत्रि‍यों तक है और इसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं।
  • अंतर्राष्‍ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा से संबंधित भ्रष्‍टाचार के मामलों को छोड़कर प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में आते हैं और
  • बुरे कार्य के लिए प्रेरित करने, रिश्‍वत देने, रिश्‍वत लेने के कार्य में शामिल कोई भी अन्‍य व्यक्‍ति लोकपाल के दायरे में आता है।
  • यह सभी लोक अधिकारियों के साथ-साथ उनके आश्रितों की संपत्‍ति और देनदारियों की जानकारी जुटाने का कार्य करता है।
  • इसे CBI, CVC आदि जैसी सभी एजेंसियों को निर्देश देने का अधिकार है। यह उन्‍हें कोई भी कार्य सौंप सकता है। लोकपाल द्वारा दिए गए किसी भी कार्य पर, संबंधित अधिकारी को लोकपाल की अनुमति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
  • लोकपाल की पूछताछ शाखा के पास एक दीवानी न्‍यायालय की शक्‍तियां होती हैं।
  • लोकपाल को अभियोजन के दौरान भ्रष्‍टाचार से अर्जित संपत्‍ति को जब्त करने का भी अधिकार है।
  • इसके पास भ्रष्‍टाचार के आरोप से जुड़े लोक सेवकों के निलंबन या स्थानांतरण का अधिकार है।
  • यह केंद्र सरकार से किसी भी मामले की सुनवाई और फैसले के लिए किसी विशेष अदालतों की स्थापना की सिफारिश कर सकता है।

लोकपाल की कार्यप्रणाली

  • लोकपाल केवल शिकायत पर ही काम करता है। यह स्‍वयं कार्यवाही नहीं कर सकता है।
  • शिकायत प्राप्‍त होने के बाद यह प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता है।
  • लोकपाल की दो प्रमुख शाखएं हैं: जांच शाखा और अभियोजन शाखा।
  • लोकपाल अपनी जांच शाखा के माध्यम से, भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत किए गए किसी भी अपराध की प्रारंभिक जांच कर सकता है।
  • यह विस्तृत जांच भी कर सकता है। पूछताछ के बाद, यदि व्यक्‍ति भ्रष्‍टाचार करते हुए पाया जाता है, तो लोकपाल अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकता है।

लोकपाल को पद से निष्‍कासित करने की प्रक्रिया

  • लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को उच्‍चतम न्यायालय की सिफारिशों पर राष्‍ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है। पद से निष्‍कासित करने के आधार कदाचार, शारीरिक या मानसिक बीमारी, दिवालियापन, पद के अतिरिक्‍त भुगतान प्राप्‍त रोजगार हैं।
  • लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को पद से निष्‍कासित करने के लिए याचिका पर संसद के कम से कम 100 सदस्यों का हस्ताक्षर अनिवार्य है। इसके बाद, इसे जांच के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय भेजा जाएगा।
  • जांच के बाद, यदि उच्‍चतम न्यायालय अध्यक्ष या सदस्य के खिलाफ आरोपों को वैध पाता है और निष्‍कासन की सिफारिश करता है, तो उसे राष्‍ट्रपति द्वारा हटा दिया जाएगा।

सेवानिवृत्‍ति के बाद के प्रावधान

  • वह अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पुन: नियुक्‍त नहीं किया जा सकता है।
  • वह कोई राजनयिक पदभार नहीं ग्रहण कर सकता है।
  • वह किसी भी ऐसे संवैधानिक या वैधानिक पद पर नियुक्‍त नहीं किया जा सकता है जिसकी नियुक्‍ति राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • वह सेवानिवृत्‍ति के पांच वर्ष बाद तक राष्‍ट्रपति/उप-राष्‍ट्रपति, MLA, MLC या स्थानीय निकाय जैसे चुनाव नहीं लड़ सकता है। 

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Lokpal and Lokayukta Act PDF in English

Lokpal and Lokayukta Act PDF in Hindi

 

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