भू-आकृतियाँ
नदी भू-आकृतियां
नदी युवा अवस्था में अपरदन की क्रिया के माध्यम से और वृद्धावस्था में निक्षेपण की क्रिया के माध्यम से भूमि की खुदाई करती है।
| युवावस्था | प्रौढ़ावस्था | वृद्धावस्था |
अपरदन | ऊर्ध्वाधर भू-क्षरण | ऊर्ध्वाधर और पार्श्विक भू-क्षरण | बाद में निक्षेपण |
प्रवणता (ढलान) | ढलवां घाटी के किनारे– V- आकार की घाटी | U-आकार की घाटी | लगभग आधार स्तर |
निक्षेपण | बहुत कम निक्षेपण के साथ सक्रिय भू-क्षरण | अपरदन और निक्षेपण समान | अधिक निक्षेपण। नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण |
भूआकृतियां | नदी का उतार और झरने, V -आकार की घाटियां, नंग नदी घाटी, नदी-अपहरण | मोड़नुमा संरचना (मेंडर झील), गोखुर झील, इंटरलॉकिंग पर्वत स्कंध, नदी प्रपात और स्लिप-ऑफ स्लोप | बाढ़ के मैदान, डेल्टा, खाड़ी, मेंडर और गोखुर झील |
हिमनद भू-आकृतियां
- पर्वतीय हिमाच्छादन की भू-आकृतियां
- हिमजगह्वर या रंफभूमि (Corrie, Cirque या Cwm): एक खड़ी घोड़े की नाल के आकार की।
- तीक्ष्ण कटक या पिरामिड के समान चोटी (Aretes या Pyramidal Peaks): जब किसी पर्वत के विपरीत किनारों पर दो हिमजगह्वर (corries) कटते हैं, तो चाकू के धारनुमा पर्वतश्रेणी बनती हैं, जिसे तीक्ष्ण कटक (Aretes) कहा जाता है।
- हिमदर (Bergschrund): हिमनद (ग्लेशियर) के शीर्ष पर एक गहरी दरार।
- U-आकार का हिमनद गर्त (घाटी): हिमनदों के नीचे की ओर बढ़ने के कारण इस घाटी का निर्माण होता है।
- निलंबी घाटी (Hanging valleys): एक सहायक घाटी जो मुख्य घाटी के ऊपर लटकी होती है ताकि इसकी धारा एक झरने के रूप में नीचे गिरती रहे।
- शैल घाटी (Rock basins) और शैल सोपान (rock steps): हिमनद की भू-क्षरण क्रिया के कारण तलशिला (bedrock) का उत्खनन।
- हिमोढ़ (Moraines): चट्टान के टुकड़े जो ग्लेशियर के पिघलने के बाद स्थिर हो जाते हैं। वे पार्श्व हिमोढ़, मध्य हिमोढ़, अवसान हिमोढ़ आदि हो सकते हैं।
- तराई हिमाच्छादन की भू-आकृतियां
- Roche mountanne: एक प्रतिरोधी अवशिष्ट चट्टान टीला।
- श्रृंग और पुच्छ (Crag and Tail): धारा के विपरीत ओर एक खड़ी ढलान और धारा की दिशा में निम्न ढलान के साथ चट्टान का एक हिस्सा।
- गोलाश्म मृत्तिका या हिमनदीय मृत्तिका: एक अनियोजित हिमनदीय निक्षेप जिसमें अपरदित पदार्थ होते हैं जो एक एकरूपी और कुरूप भू-आकृति बनाती हैं।
- अनियमित हिमनद (Erratics): बर्फ द्वारा अलग-अलग आकार के गोलाश्म लाए जाते हैं और उन क्षेत्र से पूरी तरह से अलग पदार्थों से बने होते हैं।
- ड्रमलिन: अंडाकार, लम्बा व्हेल की पीठ के समान टीला। इसे ‘अंडे की टोकरी’ स्थलाकृति के रूप में जाना जाता है।
- एस्कर: ये रेत और बजरी से बने लंबे, संकीर्ण, घुमावदार टीले होते हैं जो उप-हिमनदीय द्रवितजल धारा के पूर्ववर्ती स्थलों का निर्माण करते हैं।
- अग्रान्तस्थ हिमोढ (Terminal moraines): हिमचादर के किनारे पर जमा मोटे पत्थरों का ढेर।
- हिमानीधौत मैदान (Outwash plains): अग्रान्तस्थ हिमोढ से निकली नदी-हिमनद भंडार। उन्हें नॉब एंड केटल स्थलाकृति कहा जाता है।
शुष्क या मरुस्थलीय भू-आकृतियां
- मरुस्थलीय परिदृश्य
- हमाद या चट्टानी मरुस्थल
- रेग या पथरीले मरुस्थल
- अर्ग या रेतीला मरुस्थल
- अनुपजाऊ भूमि: पहाड़ियां जलमार्गों और कन्दराओं में नष्ट हो जाती हैं।
- पर्वतीय मरुस्थल: भू-क्षरण के कारण विभाजित रेगिस्तान।
- अपरदनजन्य भू-आकृतियां
- अवस्फीति कंदरा: हवाएं असमेकित पदार्थों को उड़ाकर भूमि का स्तर कम करती हैं।
- छत्रक शिलाएं (मशरूमनुमा चट्टानें): एक छत्रक शिला, जिसे शैल पीठिका या पेडस्टल रॉक भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक रूप से निर्मित होने वाली चट्टान है जिसका आकार, जैसा कि इसका नाम है, एक मशरूम जैसा होता है।
- इन्सेलबर्ग (Inselbergs): भूमि से अचानक उभरने वाली पृथक्कृत अवशिष्ट पहाड़ियां।
- डेमॉइसेलस (Demoiselles): ये चट्टान के स्तंभ होते हैं जो कठोर और नरम चट्टानों के अंतरीय भू-क्षरण के फलस्वरूप नरम चट्टानों के ऊपर प्रतिरोधी चट्टानों के रूप में खड़े होते हैं।
- Zeugens: शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक मेज के आकार की चट्टान का क्षेत्र जो हवा के क्षरण के प्रभाव से अधिक प्रतिरोधी चट्टान नरम चट्टानों की तुलना में धीमी गति से कम होती है।
- यार्डैंग्स: यार्डैंग, नरम, खराब तरीके से समेकित चट्टान और तलशिला सतहों का एक बड़ा क्षेत्र जो बड़े पैमाने पर हवा के क्षरण से खंचेदार, लंबी धारीदार और छिद्रित हो जाता है। चट्टान एकांतर पर्वतश्रेणी में कट जाती है और हल-रेखा प्रभावी हवा की दिशा के समानांतर होती है।
- वेंटीफैक्ट्स या त्रिकोणक (ड्रेइन्केटर): ये रेत क्षेपण द्वारा बनाए गए पत्थर हैं।
स्रोत: रिवीजन वर्ल्ड
- निक्षेपण भू-आकृतियां
- बालू का स्तूप (टिब्बा): यह रेत की पहाड़ी होती हैं जो रेत के संचयन से बनती हैं और हवाओं के चलने से आकार लेती हैं।
- बरकान: अर्धचंद्राकार बालू के स्तूप हवा की दिशा के अनुप्रस्थ उत्पन्न होते हैं।
- Seifs: अनुदैर्ध्य बालू का स्तूप, जो रेत के लंबे, संकीर्ण ऊंचे भाग होते हैं, प्राय: प्रचलित हवाओं की दिशा के समानांतर सौ मील लंबे होते हैं।
- लोएस (Loess): मरुस्थलीय सीमाओं से परे उड़ने वाली महीन मिट्टी निकटवर्ती भूमि पर लोएस के रूप में जमा होती है।
- बॉल्सोन (Bolsons): यह एक अर्धशुष्क, समतल सतह वाली मरुस्थलीय घाटी या अवनमन भूमि है, जो आमतौर पर एक प्लाया या नमक के मैदान में केंद्र पर होता है और पहाड़ियों या पहाड़ों से पूर्णतया घिरा होता है। यह नदी घाटी और पर्वत श्रेणी भू-भाग के घाटी अभिलक्षण का एक प्रकार है।
- प्लाया (नमक का मैदान): एक क्षारीय समतल भूमि या साबखा, बिना किसी मुहाने वाली एक मरुस्थलीय घाटी जो एक अस्थायी झील के निर्माण हेतु समय-समय पर पानी से भर जाती है।
- त्रिकोणिका (Pediments): एक पहाड़ी की ढलान के पाद से बाहर की ओर फैले हुए चट्टान के अवशेषों की एक व्यापक, सामान्य ढलान, विशेष रूप से एक मरुस्थल में।
- बजाडा: बाजाडे में पहाड़ के सामने एकत्र होने वाले जलोढ़ संवातक की श्रृंखला होती है। ये पंखे के आकार का निक्षेप पहाड़ के पाद पर समतल भूमि में एक धारा के अंदर तलछट के निक्षेपण से बनता है।
कार्स्ट स्थलाकृति
कार्स्ट एक स्थलाकृति है जो चूना पत्थर, डोलोमाइट और जिप्सम जैसी घुलनशील चट्टानों के द्रवीकरण से बनती है। इसकी विशेषता सिंकहोल और गुफाओं के साथ भूमिगत जल अपवाहतंत्र है।
Source: http://slideplayer.com/slide/5283022/
- ग्राइक/क्लिन्ट: क्लिन्ट चूना पत्थर के ब्लॉक होते हैं जो पक्की फर्श का निर्माण करते हैं, उनका क्षेत्रफल और आकार ग्राइक की आवृत्ति और पैटर्न पर निर्भर करता है। ग्राइक, या स्काइल्प, दरार हैं जो हर एक क्लिन्ट को अलग करती हैं।
- निगरण छिद्र/सिंकहोल (डोलाइन या उवाला): एक सिंकहोल बाह्य परत के ढहने के कारण भूमि में बना एक गड्ढा या छेद है।
- स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट: एक स्टैलेक्टाइट एक हिमलंब के आकार की संरचना होता है, जो एक गुफा की छत से लटकी होती है, और गुफा की छत से टपकने वाले पाने से खनिजों के अवक्षेपण द्वारा निर्मित होती है। स्टैलेग्माइट खनिज तलछट का ऊपर की ओर बढ़ने वाला टीला है जो गुफा की फर्श पर टपकने वाले पानी से अवक्षेपित होता है।
- बड़ी गुफाएं (केवर्न्स): बड़ी मुखाकृतियां जहां गुफाओं का निर्माण चूना पत्थर के द्रवीकरण से होता है। इसमें पॉलजीस हो सकते हैं।
तटीय भू-आकृतियां
- अपरदनजन्य मुखाकृतियां
- अंतरीप और खाड़ी: अनावृत्त तटों पर, नरम चट्टानें भू-क्षरण के कारण पतली खाड़ी, छोटी खाड़ी या खाड़ी में परिवर्तित हो जाती है, जबकि कठोर चट्टानें उच्च अंतरीप, निम्न अंतरीप या अंतरीप के रूप में बनी रहती हैं।
- टीला (खड़ी चट्टान) और लहर के कटान से बने प्लेटफार्म:
3. गुफा, मेहराब, ढेर और अवपात
स्रोत: बीबीसी
4. Geos और gloups: जहां एक गुफा की छत ढह जाती है, एक संकीर्ण प्रवेशिका या जिओ बन जाता है।
- निक्षेपण आकृतियां
- समुद्र तट (बीच): भूमि से मुक्त रेत और बजरी को लहरों द्वारा समुद्र तट के किनारे बीच के रूप में निक्षेपित किया जाता है।
- स्पिट और बार: सामग्रियों का निक्षेपण एक टीले के रूप में होना स्पिट का निर्माण करता है, जिसमें एक छोर भूमि से जुड़ा होता है और दूसरा छोर समुद्र में बहिर्विष्ट होता है।
जब किसी नदी के मुहाने पर बजरी का टीला बनता है, तो उसे बार कहा जाता है।
3. समुद्री टिब्बा और टिब्बा मेखला: तटवर्ती हवा के कारण, भारी मात्रा में तटीय रेत भूमि की ओर जाती है, जो समुद्री टिब्बों का निर्माण करती है।
- जलप्लावन तटरेखा
- रिया तट: ऊपरी तटीय क्षेत्रों में बनता है, जहां पहाड़ समुद्र से समकोण पर होते हैं, जहां निम्न घाटी विहिमनदन के कारण जलमग्न हो जाती है।
- फ्योर्ड तट: डूबी हुई U-आकार की हिमनद घाटी।
- डालमेशियन तट: अधोमुखी तट जहां पहाड़ तट के समानांतर होते हैं।
- ज्वारनदीमुख तट (Estuarine coasts): जलमग्न तराई क्षेत्रों में, नदियों का मुहाना डूबा होता है, इसलिए कीप के आकार के ज्वारनदीमुख (Estuarine) का निर्माण होता है।
- उदगमन तटरेखा
- उठे हुए तराई तट: चिकनी, ढलान वाले तटीय तराई क्षेत्र का निर्माण सतही झील, लवणीय दलदल और कीचड़ से होता है।
- निर्गत उच्चभूमि तट: भ्रंशन या पृथ्वी की गति से तटीय पठार को इतना बल प्राप्त होता है जिससे पूरा क्षेत्र ऊपर उठ जाता है, जिसके फलस्वरूप खड़ी चट्टानों, गहरे अपतटीय जल आदि जैसी उद्गामी आकृतियां उत्पन्न होती हैं।
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