इस लेख में हम नदी एवं ग्लेशियर तंत्र द्वारा निर्मित स्थल रूप पर चर्चा करेंगे। यह भूगोल में एक महत्वपूर्ण विषय है और प्राय: इस विषय से प्रश्न पूछे जाते हैं।
नदी तंत्र द्वारा निर्मित स्थल प्रतिरूप:
पैथोल:
- पैथोल नदी के तल में विभिन्न गहराई और कुछ सेण्टीमीटर से कई मीटर तक व्यास के बेलनाकार छेद होते हैं है।
- इनका निर्माण नदी के ऊपरी पृष्ठ पर नदी की धारा के घूर्णन प्रभाव के कारण होता है।
- ये धारायें नदी के तल में अपरदन करती हुई उसमें छोटी अवनतियों का निर्माण करती है।
- ऐसे पैथोल महराष्ट्र के कुकड़ी, कृष्णा और गोदावरी नदी के तल में पाये जाते हैं।
V आकार की घाटी:
- इस प्रकार की घाटियाँ पर्वतीय क्षेत्रों में पासी जाती है।
- V आकार की घाटी नदी के ऊपरी भागों में पायी जाती हैं जो कि अपरदन और अपक्षय दोनों के परिणामस्वरूप निर्मित होती है।
- V आकार की घाटी गहरी नदी घाटियाँ होती हैं जिनके किनारे खड़े और V आकार के नजर आते हैं।
- खड़े किनारों वाली गहरी व संकरी घाटी को जार्ज कहते हैं।
- महाराष्ट्र के थाणे जिले में उलहास नदी में कई जार्ज पाये जाते हैं और मध्यप्रदेश में जबलपुर के निकट बेड़ाघाट में नर्मदा नदी के जार्ज विख्यात हैं।
झरने (भौगोलिक निर्मित)
- झरनों का निर्माण कठोर व कोमल दोनों चट्टानों के अपरदन से होता है।
- जब नदी प्रतिरोधी चट्टान के ऊपर बहती है, तो यह कम प्रतिरोधी चट्टान के ऊपर गिरती है, और उसका अपरदन कर दोनों प्रकार की चट्टानों के बीच अधिक काफी गहराई पैदा कर झरने का निर्माण करती है।
- हजारों वर्षों तक, कैप चट्टान के निरंतर दबने और झरने के लगातार गिरने से अपरदनात्मक जॉर्ज का निर्माण होता है।
- नियाग्रा नदी पर नियाग्रा प्रपात और कनार्टक में शरावती नदी पर जोग प्रपात प्रमुख झरने हैं।
मेंडर्स और ऑक्स-बो झील:
- मेंडर्स नदी में वे बल (मोड़) हैं जब नदी सर्पिलाकार मार्ग पर आगे बढ़ती है।
- यह नदी का सर्पिलाकार से नदी के सीधे मार्ग से मुड़ जाने की माप होती है।
- मेंडर्स का निर्माण नदी के क्षैतिज अपरदन के कारण होता है और जैसे जैसे अपरदन समय के साथ बढ़ता है, तो नदी में मेंडर्स पुन: सीधी रेखा में प्रवाहित होने लगते हैं।
- ऑक्स-बो झील मेंडर्स का ही परिणाम हैं जो कि अत्यधिक निक्षेपण व अपरदन से होकर गुजरते हैं।
- जब मेंडर्स अपने मुख्य मार्ग से कट जाते हैं और इस जगह में जल इकट्ठा हो जाता है तो यह ऑक्स बो झील के जैसा दिखता है।
फैन आकार के मैदान:
- ये उस क्षेत्र में बनते हैं जहाँ सहायक नदियाँ मुख्य नदियों में मिल जाती हैं।
- इनका निर्माण सहायक नदियों द्वारा बहाकर ले जाये जा रहे पदार्थ के निक्षेप से होता है।
- ये निक्षेप फैन आकार के मैदान जैसे दिखते हैं।
बाढ़ के मैदान:
- इनका निर्माण नदी के उसकी क्षमता के ऊपर बहने और उसके आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ के कारण होता है।
- नदी द्वारा प्रवाहित गाद इन बाढ़ के क्षेत्रों में जमा हो जाती है और नदी के दोनों और समतल भूमि का निर्माण करते हैं।
- गंगा का मैदान बाढ़ निर्मित मैदान है।
सेतूबंध:
- सेतूबंध नदी की बाढ़ द्वारा निर्मित प्राकृतिक बांध हैं।
- जब कभी नदी में बाढ़ आती है, तो घर्षण बढ़ने के कारण नदी की गति में बहुत कमी आ जाती है और इससे नदी अपना भार बाढ़ के मैदान पर उड़ेल देती है।
- निरंतर बाढ़ के आने से टीलों का निर्माण होता है जो कि सेतूबंध में बदल जाते हैं।
डेल्टा:
- डेल्टा शब्द का प्रयोग ग्रीक दार्शनिक हेरोडोटस (इतिहास के पिता) ने किया था। नील नदी के मुख का ग्रीक अक्षर डेल्टा के आकार के होने के कारण किया गया।
- डेल्टा निक्षेपण मैदान है जो कि नदी के मुहाने पर पाये जाते हैं जहाँ जल समूह (झील अथवा समुद्र) की रफ्तार नदी की स्वयं की रफ्तार से कम होती है।
- कालानुक्रम में यह निक्षेप भौगोलिक आकर के नदी डेल्टा का निर्माण करता है।
- गंगा नदी का सुंदरबन डेल्टा विश्व में सबसे बड़ा डेल्टा है।
नदी क्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृति
अपरदन | अपरदन-निक्षेपण | निक्षेपण |
V आकार की घाटी | मेंडर | फैन आकार के मैदान |
जार्ज | ऑक्स-बो | बाढ़ के मैदान |
पैथोल्स | झील | डेल्टा |
जलप्रपात |
| सेतूबंध |
ग्लेशियर:
- ग्लेशियर सघन बर्फ की स्थायी चट्टान होती है जो कि अपने भार के कारण नियत रूप से गिरती रहती है। इसका निर्माण वहाँ होता है जहाँ बर्फ अपने पृथक्करण की तुलना में कई वर्षों तक जमा होती रहती है।
- औसतन एक दिन में ग्लेशियर 1 से 15 मीटर खिसकते हैं।
- ग्लेशियर दो प्रकार के होते हैं: महाद्वीपीय ग्लेशियर और अल्पाइन या पर्वतीय ग्लेशियर आदि।
ग्लेशियरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति:
क्रीक:
- क्रीक (सर्क) पर्वत की ओर प्याला नुमा एक चट्टानी घाटी है। जो प्राय: ग्लेशियर अथवा स्थायी बर्फ से ढकी रहती है।
- क्रीक का निर्माण ग्लेशियर द्वारा होता है, जिसमें पूर्व घाटी को गोल आकार और तीव्र किनारे में बदल देती है।
- क्रीक के पीछे की दीवार ऊँची चट्टान होती है और ऊपरी पृष्ठ अवतल और आकार में बहुत बड़ा होता है। सम्पूर्ण आकृति हत्थे वाली कुर्सी जैसी लगती है।
- जब ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाता है जो क्रीक में पानी जमा हो जाता है और एक झील का निर्माण होता है, जिसे टार्न कहते हैं।
U आकार घाटी:
- जब कोई ग्लेशियर पर्वतीय क्षेत्र में घाटी में बहता है तो बर्फ के कारण घाटी के किनारों पर घर्षण के कारण घाटी के किनारे अपरदित हो जाते हैं।
- जब किनारों पर घर्षण आधार के घर्षण से अधिक होता है, तो एक चौड़े आधार और खड़े किनारों वाली घाटी का निर्माण होता है। इसे ही U आकार की घाटी कहते हैं।
लटकती घाटी (हैंगिंग वैली):
- लटकटी घाटियाँ प्राय: घाटी ग्लेशियरों से जुड़ी होती हैं जो कि मुख्य घाटी से अपने किनारों से जुड़ती है।
- ये मुख्य घाटी और उसके किनारों के साथ प्रवेश करने वाली घाटी के मध्य अपरदन की विभिन्न दरों का परिणाम है।
- सहायक नदियाँ मुख्य घाटी से काफी ऊपर रह जाती हैं, और किनारों पर लटकती रहती हैं, उनकी नदी अथवा धारा मुख्य घाटी में छोटे जलप्रपात अथवा अकेले बडे महाप्रपात द्वारा मुख्य घाटी में प्रवेश करती हैं।
फोर्ड:
- यह तट के समीप जहाँ धारा का समुद्र में प्रवेश होता है, खड़ा संकरा प्रवेश मार्ग है।
- फोर्ड तट नार्वे, ग्रीनलैण्ड और न्यूजीलैण्ड में पाये जाते हैं।
मोरेन:
- ग्लेशियर द्वारा प्रवाहित एवं निक्षेपित सामग्री को मोरेन कहते हैं।
- मोरेन चट्टानों के टुकड़े होते हैं जो कि तुषार के कारण टूट जाते हैं और नदी द्वारा बहा लिये जाते हैं।
- कई उर्ध्वाधर ढालों वाली जिगजैग पहाड़ी का निर्माण रेत और बजरी के लम्बे भाग के कारण निर्मित होते हैं, ये एस्कर्स कहलाते हैं।
- कम ऊँचाई की अण्डाकार पहाड़ी ड्रमलिन कहलाती हैं।
मोरेन के प्रकार:
- लैटरल
- मिडियल
- टर्मिनल
- ग्राउंड
More from us:
Join SSC 2021: Foundation Course | One Course for All SSC Exam Preparation | Available in Hindi and English
All The Best !!!
DREAM, STRIVE & SUCCEED With US!
3 Crore+ Registered Aspirants | 2.5 Crore Downloads | 50,000+ Selections
Comments
write a comment