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खुदाई खिदमतगार आंदोलन (Khudai Khidmatgar Movement in Hindi)

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

खान अब्दुल गफ्फार खान विद्रोही विचारों के व्यक्ति थे। इन्होने ने ही लालकुर्ती रेड पश्तून मूवमेंट अर्थात खुदाई खिदमतगार (Servant of God) आंदोलन की नींव रखी थी।
आजादी के लिए लड़ने अहिंसा और धार्मिक एकता इस की प्रतिबद्धता थी। इसी प्रतिबद्धता के चलते ही खुदाई खिदमतगार की नींव तैयार हुई थी। 1929- 30 में खुदाई खिदमतगार की स्थापना एक संस्थागत आंदोलन के रूप में हुई थी। जिसका मतलब खुदा की सेवा करना, मतलब इंसान की सेवा करना, मानवता की सेवा करना है।

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खुदाई खिदमतगार आंदोलन(Khudai Khidmatgar Movement)

  • खुदाई खिदमतगर आंदोलन अहिंसक आंदोलन था। जिसकी शुरुआत खान अब्दुल गफ्फार खान ने वर्ष 1929 में की थी। अब्दुल गफ्फार सुर्ख पोश थे।
  • शुरुआत में यह आंदोलन पश्तूनों के ऊपर जुल्म करने के विरोध में था लेकिन आगे चलकर यह आंदोलनअंग्रेजों से आजादी का आंदोलन बन गया इस आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया।
  • खुदाई खिदमतगार भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में पश्तून या पठान स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्त्व में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध शुरू किया गया एक अहिंसक आंदोलन था।
  • आगे चलकर यह आंदोलन ने राजनीतिक प्रभाव में आया और अंग्रेज़ों ने इसे दबाना शुरू किया।
  • वर्ष 1929 में खान अब्दुल गफ्फार खान और इस आंदोलन के अन्य नेताओं को गिरफ्तारकर लिया गया जिसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से समर्थन न मिलने के कारण यह आंदोलन विफल हो गया। और बाद में यह आंदोलन औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गया।
  • खान अब्दुल गफ्फार खान ने ही खुदाई खिदमतगार के सदस्यों को संगठित किया था। इस आंदोलन में पुरुषों ने गहरे लाल रंग की शर्ट (जिसे वे वर्दी के रूप में पहनते थे) और महिलाओं ने काले रंग के वस्त्र धारण पहने थे। इस आंदोलन को लाल कुर्ती (Red Shirts)आंदोलन भी कहते हैं।

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खुदाई खिदमतगर आंदोलन : किस्सा ख्वानी बाज़ार नरसंहार

  • खुदाई खिदमतगर आंदोलन के दौरान जब अब्दुल गफ्फार खान उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के उटमानज़ई (Utmanzai) शहर में आयोजित एक सभा में भाषण दिया तब 23 अप्रैल, 1930 को अंग्रेज़ों द्वारा उन्हें और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • तब उनके समर्थन में पेशावर सहित अन्य पड़ोसी शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे। खान की गिरफ्तारी के ही दिन विरोध में पेशावर के किस्सा ख्वानी बाज़ार में प्रदर्शन हुआ। ब्रिटिश सैनिकों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिये बाज़ार क्षेत्र में प्रवेश किया, परंतु भीड़ ने प्रदर्शन-स्थल छोड़ने से मना कर दिया।
  • तब ब्रिटिश सेना अपने वाहनों के साथ भीड़ में घुस गई, और बहुत-से प्रदर्शनकारियों को कुचल डाला। तथा बाद में ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई जिसमें बहुत से लोग मारे गए थे। इस घटना को किस्सा ख्वानी बाज़ार नरसंहार के नाम से जाना जाता है।

खुदाई खिदमतगर आंदोलन : खान अब्दुल गफ़्फार खान

  • अब्दुल गफ्फार खान का जन्म 6 फरवरी 1890 को पेशावर में हुआ था। और 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हुई थी।
  • अब्दुल गफ्फार खान को बाचा खान और बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता है।
  • वह अपने 98 वर्ष के जीवनकाल में कुल 35 वर्ष जेल में रहे। वर्ष 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर स्थित उनके घर में नज़रबंद कर दिया था
  • अब्दुल गफ्फार खान एक राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता थे, उन्हें उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिये जाना जाता है। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी ( सीमान्त गाँधी ) का नाम दिया था।
  • ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा की जाने वाली देश के विभाजन की मांग का हमेशा विरोध किया, परंतु जब अंत में कांग्रेस ने देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया, तो उन्हें बहुत निराशा हुई। इस निराशा को उन्होंने कुछ यूँ बयाँ किया “आप लोगों ने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।”
  • विभाजन के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहकर ‘पख्तूनिस्तान’ नामक एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई की मांग की थी। अंततः पाकिस्तान सरकार ने शक के आधार पर उन्हें घर में ही नज़रबंद कर दिया था और वही उनकी मृत्यु हो गई थी।
  • भारत सरकार ने वर्ष 1987 में अब्दुल गफ्फार खान को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।

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