05 जून, 2019 से लागू करते हुए ट्रम्प प्रशासन ने वरीयता की सामान्यीकरण प्रणाली (जी.एस.पी.) के अंतर्गत भारत को प्रदान की जाने वाली निर्यात प्रोत्साहन राशि को रद्द करने का निर्णय लिया है। ये भारतीय निर्यातकों के लिए एक महत्वपूर्ण झटका है।
जी.एस.पी. एक वरीयता उपचार है जो अमेरिकी सरकार द्वारा विकासशील देशों द्वारा अपने निर्यातकों को दिया जाता है।
वरीयता की सामान्यीकरण प्रणाली
जी.एस.पी. के लाभों में रासायनों, रत्न और वस्त्रों सहित लगभग 1937 उत्पादों का भारत से संयुक्त राज्य अमेरिका में निशुल्क प्रवेश शामिल है।
वर्ष 2017 में, भारत 5.6 बिलियन डॉलर सब्सिडी के साथ जी.एस.पी. का सबसे बड़ा लाभार्थी था। प्रत्येक वर्ष, योजना के अंतर्गत शामिल लाभार्थियों और उत्पादों की समीक्षा की जाती है।
जी.एस.पी. क्या है?
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि जी.एस.पी. एक वरीयता व्यवस्थापन है जो विकासशील देशों को छूट प्रदान करता है, यह भारत जैसे विकासशील देशों को अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान आदि जैसे विकसित देशों से काफी रियायती दरों पर उत्पाद आयातित करने या यहां तक कि कई उत्पादों पर शून्य दर पर उत्पाद आयातित करने की स्वीकृति प्रदान करता है।
वर्ष 1976 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने विकासशील देशों के लिए जी.एस.पी. की शुरुआत की थी और लाभार्थियों के रूप में नामित लगभग 120 देशों और क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में उत्पादों का आयात करना शुरू किया था।
जी.एस.पी. का मुख्य लक्ष्य प्रगति के लिए सहायता प्रदान करना है और विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार करने और गरीबी से बाहर निकलने के लिए व्यापार का एक उपकरण के रूप में प्रयोग करने का अवसर प्रदान करना था।
अमेरिका जैसे विकसित देश, अमेरिका में उत्पादों का उत्पादन करने के लिए अपने व्यवसायों द्वारा उपयोग किए गए आयातित इनपुटों के खर्च को कम करके पूरे विश्व के बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा में सुधार करके सौदेबाजी में लाभ कमाते हैं।
जी.एस.पी. के कारण:
ट्रम्प प्रशासन ने 94 उत्पादों के लिए सभी जी.एस.पी. प्राप्तकर्ता विकासशील देशों से जी.एस.पी. का दर्जा रद्द करने के लिए चुना है। जी.एस.पी. की निकासी में मुख्य रूप से कृषि और हस्तशिल्प उत्पाद शामिल हैं और यह आदेश 1 नवंबर, 2018 से प्रभावी हैं।
अमेरिका का भारत से जी.एस.पी. का दर्जा वापस लेने का प्रमुख कारण यह है कि भारत को 22.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक व्यापार अधिशेष प्राप्त होता है, जिससे राष्ट्रपति ट्रम्प को प्रतीत होता है कि यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है।
भारत द्वारा संयुक्त राज्य को निर्यात किए गए उत्पाद का कुल मूल्य, भारत द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किए गए उत्पादों के मूल्य से अधिक होने कारण व्यापार अधिशेष होता है।
एक व्यापार अधिशेष, राष्ट्रीय मुद्रा के सकल विदेशी-बाजार प्रवाह को प्रतिबिंबित करता है। इस प्रकार, यह मौद्रिक मूल्य (रुपया बनाम डॉलर) को सुदृढ़ बनने में सक्षम बनाता है।
व्यापार घाटे के कारण:
पहला, वह भारत को "बहुत अधिक दर वाला देश" कहते थे और उसने प्राय: भारत को मोटरसाइकिल निर्यात करने के लिए हार्ले-डेविडसन के उदाहरण का हवाला दिया है।
दूसरा, ट्रम्प प्रशासन को लगता है कि भारत ने कई प्रकार की व्यापारिक बाधाओं को उत्पन्न किया है जिनके अमेरिकी व्यापार पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं और उसे ऐसा लगता है कि भारत ने जी.एस.पी. मानदंड को पूरा करने के लिए उचित उपाय नहीं किए हैं।
इस संदर्भ में, ट्रम्प प्रशासन निम्नलिखित शर्तें चाहता है:
- मुख्य रूप से डेयरी और दवा उत्पादों के लिए भारत से अधिक बाजार पहुँच रियायतें प्राप्त हों।
- अमेरिकी फार्मास्युटिकल उद्योग, भारत को अपने उत्पादों के लिए सबसे बड़े बाजार के रूप में मानता है और भारत में घरेलू जेनेरिक उद्योग की पहल के विकास का विरोध करता है जो नई बीमारियों की एक श्रृंखला के लिए सस्ती कीमत पर दवाओं का उत्पादन करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वरों, क्लाउड कंप्यूटिंग में डेटा संग्रहीत करने और अन्य के मध्य सोर्स कोड तक अनिवार्य पहुंच पर से प्रतिबंध हटा दें। ये नीतियां स्पष्ट रूप से भारत में घरेलू डिजिटल प्लेटफार्मों और उद्योगों के विकास पर अंकुश लगा देंगी।
भारतीय दृष्टि से तात्पर्य
जी.एस.पी के हटने से भारत पर वर्ष 2017-18 में काफी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि भारत को 48 बिलियन डॉलर के कुल निर्यात के लगभग 12 प्रतिशत आयात पर तरजीही छूट प्राप्त है।
जी.एस.पी के हटने से भारत की ओर से होने वाले 6.35 बिलियन डॉलर के निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा; जिससे निर्यातकों को वार्षिक रूप से 260 मिलियन डॉलर की निवल हानि होगी।
प्रतिरूपी आभूषण, चमड़ा, कृषि, ऑटो पार्ट्स, रसायन और प्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योग जिनमें से अधिकांश पहले से ही गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं, जी.एस.पी के हट जाने से इनकी स्थिति अधिक खराब हो जाएगी।
भविष्य में इससे कई अन्य क्षेत्र भी प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें सेवा क्षेत्र भी शामिल है, जिसमें अमेरिका को 28 बिलियन डॉलर से अधिक का निर्यात होता है।
वहीं दूसरी ओर, वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अमेरिका में होने वाले 90% भारतीय निर्यात पर अमेरिका की ओर से सामान्य छूट प्राप्त होती है और इसलिए अमेरिका जी.एस.पी के हटने से अप्रभावित रहेगा।
भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदम:
भारत को अमेरिका के साथ तुरंत एक महत्वपूर्ण संवाद करना होगा और यह समझाना होगा कि यह फैसला मूल रूप से डब्ल्यू.टी.ओ के चार्टर में वर्णित विकासशील देशों के बीच भेदभाव के सिद्धांतों के प्रतिकूल है।
इसके अलावा, भारत की अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को देखते हुए, वर्ष 2017 में भारत को हुए हथियार निर्यात में 550% की वृद्धि हुई, जिससे अमेरिका भारत को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बना।
इसलिए, इस बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि भारत अमेरिका के साथ अपने व्यापार अधिशेष को कम करने के प्रयास कर रहा है।
इसके अलावा, भारत अपने हितों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकता है:
राज्य और केंद्रीय कर उगाही पर छूट प्रदान करके उन उत्पादों को प्रोत्साहन प्रदान करें जहां जी.एस.पी हानि अधिक है ताकि ये उत्पाद बाजार से गायब ना हो जाएं।
अन्य व्यापारिक साझेदारों जैसे चीन और रूस को ढूंढे। हालांकि, भारत को चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे (53 बिलियन डॉलर) और लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद जैसी अन्य समस्याओं का सामना करना होगा।
भारत द्वारा निर्मित फार्मास्यूटिकल वस्तुओं जैसे हर्ट स्टिन्ट, घुटने का प्रत्यारोपण आदि के अधिकतम मूल्य पर अंकुश लगाएं।
निष्कर्ष:
भारतीय निर्यात के लिए यह बड़ा झटका उस मोड़ पर आया है, जब तेल की कीमतों में वृद्धि हो रही है, डॉलर के मुकाबले रुपया तेजी से गिर रहा है, बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है, देश में कृषि संकट है, विदेशी निवेश में कमी हुई है और भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण शिथिल हो रही है।
मोदी सरकार को इस मुद्दे को अत्यंत सरलता पूर्वक संबोधित करना चाहिए और इसे "अच्छे दिन" के रास्ते में एक और बाधा नहीं बनने देना चाहिए, जिसका देश के लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
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