सामान्य ज्ञान के अध्ययन में भारतीय राजव्यवस्था एक महत्वपूर्ण विषय है। सामान्य ज्ञान के अनुभाग में प्रत्येक प्रतियोगी परीक्षा में भारतीय संविधान में संशोधन से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस पोस्ट में, हम "भारतीय संविधान में महत्वपूर्ण संशोधन हिंदी और अंग्रेजी में" आपको पूरी सूची के साथ साझा कर रहे हैं।
Important Amendments of Indian Constitution PDF in English
Important Amendments of Indian Constitution PDF in Hindi
भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला है। अनुच्छेद 368 के तहत संसद को भारतीय संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, जो 'संविधान की मूल संरचना' के अधीन है। यह तीन प्रकार से किया जा सकता है:
- साधारण बहुमत के द्वारा
- विशेष बहुमत के द्वारा
- विशेष बहुमत के साथ आधे राज्यों के अनुसमर्थन के द्वारा|
भारतीय संविधान में महत्वपूर्ण संशोधन
प्रथम संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1951
- भूमि सुधार और अन्य कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया।
- नए अनुच्छेद 31-A और अनुच्छेद 31-B का निर्माण किया गया।
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिए तीन नये आधार जोड़कर अनुच्छेद 19 में संशोधन किया गया।
सातवां संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956
- भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया । चार श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त कर उन्हें 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक राज्यपाल की नियुक्ति।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिए समान उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी, केंद्र शासित प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय को विस्तारित क्षेत्राधिकार दिया गया। उच्च न्यायालय के लिए अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायधिशो की नियुक्ति की गयी।
- नए अनुच्छेद 350-A (भाषा के आधार पर अल्पसंख्यकों से संबंधित बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के लिए मातृभाषा में निर्देश) और 350-B (भाषा के आधार पर अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी प्रदान किया गया) को भाग XVII में संलग्न किया गया।
आठवां संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1960
- अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सीटों का विस्तारित आरक्षण और लोकसभा और राज्य विधानसभा में एंग्लो-इंडियन के लिए विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया ।
चौबीसवाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1971
- अनुच्छेद 368 और अनुच्छेद 13 में संशोधन कर मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति संसद को प्रदान की ।
- जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किये गए संविधान में संशोधन को राष्ट्रपति के पास उसकी मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो वह अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होता है।
पच्चीसवाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1971
- संपत्ति के मौलिक अधिकार का हनन।
- नए अनुच्छेद 31-C को जोड़ा गया जो यह प्रदान करता है कि अनुच्छेद 39 (B) और (C) में निहित हमारे राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) को प्रभावी करने के लिए यदि कोई कानून पारित किया जाता है, तो उस कानून को इस आधार पर शून्य नहीं माना जाएगा जो इसे हटाता है या अनुच्छेद 14, 19 या 31 के तहत किसी भी अधिकार को कम कर देता है और इस आधार पर चुनौती नहीं दी जाएगी कि यह उन सिद्धांतों पर प्रभाव नहीं डालता है।
छब्बीसवाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1971
- इसमें अनुच्छेद 363 को संलग्न कर देशी रियासतों के पूर्व शासको को दिये जाने वाले भुगतान को ख़त्म कर दिया गया|
42वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976
- संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में तीन शब्दों- 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' को जोड़ा गया।
- मौलिक कर्तव्यों के लिए नये भाग IVA (अनुच्छेद 51-A) को जोड़ा गया।
- राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के संबंध में, मौलिक अधिकारों को अप्रभावी करते हुए कानूनों को बचाने के लिए नए अनुच्छेद 31-D को सम्मिलित किया|
- अनुच्छेद 32 के तहत कार्यवाही में विचार नहीं किए जाने वाले राज्यों के कानूनों की संवैधानिक वैधता के लिए नए अनुच्छेद 32-A को संलग्न किया । साथ ही अनुच्छेद 226 के तहत कार्यवाही में विचार नहीं किए जाने वाले केंद्रीय कानूनों की संवैधानिक वैधता के लिए अनुच्छेद 226 ए को जोड़ा गया।
- राज्यों के नीति निदेशक तत्वों के लिए तीन अनुच्छेदों को जोड़ा गया|
(i) अनुच्छेद 39-A: मुफ्त कानूनी सहायता और समान न्याय,
(ii) अनुच्छेद 43-A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी और
(ii) अनुच्छेद 48-A: पर्यावरण का संरक्षण और सुधार और वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा। - न्यायिक समीक्षा और आज्ञापत्र क्षेत्राधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की शक्ति का हनन।
- न्यायिक समीक्षा से परे संवैधानिक संशोधन किया जा सके।
- अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172 में संशोधन करके लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया।
- लोकसभा और राज्य विधानसभा कि सदन में सीटों को स्थायी कर दिया|
- अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 में संशोधन करके संसद के सदस्यों व संसद और राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदन की समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षाओं को तय करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 323-A और 323-B के तहत अन्य मामलों के लिए न्यायाधिकरण और प्रशासनिक न्यायाधिकरण को नये भाग XIV में जोड़ा गया।
- राज्यों को सहायता के लिए सशस्त्र बलों या संघ के अन्य बलों की तैनाती के लिए नए अनुच्छेद 257-A को जोड़ा गया।
- अनुच्छेद 236 के तहत अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं का निर्माण।
- भारत के किसी भी क्षेत्र में जरुरत पड़ने पर आपातकाल की घोषणा करने की सुविधा।
- अनुच्छेद 74 में संशोधन करके राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह लेने के लिए बाध्य किया|
- पांच विषयों (A) शिक्षा, (B) वन, (C) जंगली जानवरों और पक्षियों की सुरक्षा, (D) भार और मापन (E) न्याय प्रशासन, को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित करके सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया|
- राष्ट्रपति शासन को एक समय अवधि के लिए छह महीने से बढ़ाकर एक साल किया जा सकता है।
44वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1978
- राष्ट्रीय आपातकाल के मामले में 'सशस्त्र विद्रोह' शब्द को 'आंतरिक गड़बड़ी' के साथ प्रतिस्थापित किया|
- राष्ट्रपति केवल मंत्रिमंडल द्वारा लिखित सलाह के आधार पर आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
- संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटा कर एक कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी।
- राष्ट्रीय आपातकाल में अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों की गारंटी को निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- लोकसभा और राज्य विधानसभा के मूल कार्यकाल को पुनः पांच साल किया।
- राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव विवाद से संबंधित मामलों को तय करने के लिए चुनाव आयोग की शक्तियों को पुनः बहाल किया।
- संसद और राज्य विधानसभाओं में कार्यवाही को स्वतंत्र रूप से और बिना सेंसरशिप के रिपोर्ट करने के लिए मीडिया के अधिकार दिये गए।
- राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के संबंध में कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय किये गए|
- पूर्व के संशोधनों में ली गयी सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की शक्तियों को वापस बहाल किया गया।
- अध्यादेश जारी करने के मामले में किये गए संशोधन ने उस प्रावधान को खत्म कर दिया जिसने राष्ट्रपति या राज्यपाल की संतुष्टि को अंतिम औचित्य माना था।
- राष्ट्रपति अब कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं। हालांकि, पुनर्विचार सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है।
61वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1988
- लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का प्रस्ताव किया गया|
69वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1991
- राष्ट्रीय राजधानी की स्थिरता और स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र शासित प्रदेशों के बीच एक विशेष दर्जा दिया गया। संशोधन में दिल्ली के लिए एक विधान सभा और एक मंत्रिपरिषद का भी प्रावधान किया गया।
73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992
- पंचायती राज संस्था को संवैधानिक दर्जा देने के लिए नए भाग IX को जोड़ा गया है। पंचायत के 29 कार्यों को सम्मिलित करते हुए नई ग्यारहवीं अनुसूची को जोड़ा गया।
74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992
- शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। संविधान में नए भाग XI-A के रूप में नगरपालिकाओं को जोड़ा गया। नगरपालिका के 18 कार्यों के साथ बारहवीं अनुसूची को सम्मिलित किया गया।
84वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002
- 1991 के जनगणना के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आवंटित सीटों की संख्या में फेरबदल किए बिना 2026 तक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्मूल्यांकन और सुव्यवस्थीकरण करने का निर्णय लिया गया।
86वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002
- संविधान में नया अनुच्छेद 21-A डाला गया जो 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 51-ए को एक मौलिक कर्तव्य के रूप में सम्मिलित किया गया, जो 6 वर्ष से 14 वर्ष के बीच के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों(DPSP) के अनुच्छेद 45 में परिवर्तन किया गया जिससे सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया।
87वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003
- क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्मूल्यांकन और सुव्यवस्थीकरण 1991 के बजाय 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाना तय किया गया।
89वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003
- संयुक्त निकाय के बाहर दो अलग निकायों का निर्माण, “अनुच्छेद 338 के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग” और “अनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग” किया गया।
91वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003
- अनुच्छेद 75 (1-A) में नये खंड को जोड़ा गया जो यह प्रदान करता है कि मंत्रिमंडल में पीएम सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी।
- अनुच्छेद 75 (1-B) एक नये खंड को जोड़ा गया जो यह प्रदान करता है कि किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित संसद के किसी भी सदन का सदस्य, जिसे दलबदल के आधार पर उस सदन का सदस्य होने से अयोग्य ठहराया जाता है, को मंत्री बनने से भी अयोग्य घोषित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 164 (1-A) एक नया खंड जोड़ा गया जो यह बताता है कि मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित कुल मंत्रियों की संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी।
- अनुच्छेद 164 (1-B) नया खंड सम्मिलित किया गया, जो कहता है कि राज्य के विधान सभा का सदस्य या किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित राज्य सभा का सदस्य, जो दलबदल के आधार पर उस सदन का सदस्य होने के लिए अयोग्य है, को मंत्री के रूप में नियुक्त होने के लिए भी अयोग्य घोषित किया जाएगा।
- दसवीं अनुसूची के प्रावधान हटाने से विधायक दल के एक तिहाई सदस्यों द्वारा विभाजन के मामले में अयोग्यता से छूट से संबंधित है।
97वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2011
- इसने निम्नलिखित परिवर्तन करके सहकारी समितियों को संवैधानिक संरक्षण दिया।
- अनुच्छेद 19 के तहत सहकारी समिति बनाने का अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया।
- सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए अनुच्छेद 43-B के तहत राज्य के नये नीति निर्देश सिद्दांतो को सम्मिलित किया गया।
- संविधान में नये भाग IX B को सहकारी समितियों के रूप में अनुच्छेद 243-ZH से 243-ZT तक में जोड़ा गया।
99वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2014
- नए अनुच्छेद 124-ए को सम्मिलित करते हुए उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति और हस्तांतरण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की स्थापना की गयी। हालांकि, बाद में इसे शीर्ष अदालत ने रोक दिया और इसे असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया।
100वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2015
- इस संशोधन में भारत द्वारा क्षेत्रों के अधिग्रहण और भूमि सीमा समझौते के अनुसरण में कुछ क्षेत्रों को बांग्लादेश को हस्तांतरित करने को लागु किया और इसका समझोता भारत और बांग्लादेश की सरकारों के बीच हुआ।
101वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2016
- माल और सेवा कर (जीएसटी) को लागु करने के लिए नए अनुच्छेद 246-A, 269-A और 279-A को सम्मिलित किया, जिसने सातवीं अनुसूची और अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य के तरीको में बदलाव किए।
102वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2018
- इस संशोधन से संविधान के अनुच्छेद 338-B के तहत एक संवैधानिक निकाय के रूप में के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की स्थापना कि गयी। यह नौकरियों में आरक्षण के लिए पिछड़े वर्गों की सूची में समुदायों को शामिल करने और शामिल करने पर विचार करने के लिए जिम्मेदार है।
103वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019
- वर्तमान आरक्षण के संबंध में, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में "आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग" के लिए 10% तक का आरक्षण प्रदान किया गया है।
- यह अनुच्छेद 46 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्दांतो पर प्रभाव डालता है।
- इसमें अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) के तहत नए प्रावधानों को जोड़ा गया जिससे सरकार "आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों" की उन्नति सुनिश्चित करने के लिए काम कर सके।
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