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IBPS RRB Quiz: गधांश और वाक्य क्रम स्थापना 15:08:2018

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Question 1

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
सर्वदयाल को अपने मामा की आँख की पुतली क्यों कहा गया है?

Question 2

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
गद्यांश में प्रयुक्त हाथ पर हाथ धरे बैठा है के स्थान पर निम्न में से किस विकल्प को रख देने से वाक्य के अर्थ में परिवर्तन नहीं होगा?

Question 3

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
गद्यांश में प्रयुक्त आँख की पुतली का अर्थ किस मुहावरे से व्यक्त किया जा सकता है?

Question 4

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
गद्यांश के अनुसार सर्वदयाल को पढ़ार्इ के लिए आर्थिक मदद किसने दी?

Question 5

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
गद्यांश में प्रयुक्त उपमाओं ‘रेलगाड़ी में स्थान न मिलने’ और ‘नौकरी न मिलने’ का निहित अर्थ क्या है?

Question 6

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द मोटे अक्षरों में छापे गए हैं, जिससे आपको प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।
यह उस जमाने की बात है जब बी. ए. की पढ़ाई का बहुत महत्व था और विरले की गे्रजुएट हो पाते थे। सर्वदयाल भी ग्रेजुएट होना चाहते थे। उनके माता-पिता की इतनी हैसियत न थी कि कॉलेज के खर्च सह सकें। उनके मामा एक ऊँचे पद पर नियुक्त थे। उन्होंने खर्च देना स्वीकार किया, परंतु यह भी जोड़ दिया-’’देखो, रूपया लहू बहाकर मिलता है। मैं वृद्ध हूँ, जान मारकर चार पैसे कमाता हूँ। लाहौर जा रहे हो, वहाँ पग-पग पर व्याधियाँ हैं, कोई चिमट न जाए। व्यसनों से बचकर डिग्री लेने का यत्न करो। यदि मुझे कोई ऐसा-वैसा समाचार मिला, तो खर्च भेजना बंद कर दूँगा।’’ सर्वदयाल ने वृद्ध मामा की बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा, और अपने आचार-विचार से न केवल उनको शिकायत का ही अवसर नहीं दिया, बल्कि उनकी आँख की पुतली भी बन गए। परिणाम यह हुआ कि मामा ने सुशील भानजे को पहले से ज्यादा रूपये भेजन शुरू कर दिए। इससे सर्वदयाल का उत्साह बढ़ा। पहले साते पैसे की जुराबें पहनते थे, अब पाँच आने की पहनने लगे। पहले मलमल के रूमाल रखते थे, अब एटोनिया के रखने लगे। दिन को पढ़ने और रात को जागने से सिर में कभी-कभी पीड़ा होने लगती थी, इस कारण यह कि दूध के लिए पैसे न थे। परंतु अब जब मामा ने खर्च की डोरी ढीली छोड़ दी, तो घी-दूध की तंगी न रही। परंतु इन सबके होते हुए भी सर्वदयाल उन व्यसनों से बचे रहे, जो शहर के विद्यार्थियों में प्राय: पाए जाते हैं।
इसी प्रकार चार वर्ष बीत गए। सर्वदयाल बी.ए. की डिग्री लेकर घर आ गए। जब तक पढ़ते थे, सैकड़ों नौकरियाँ दिखार्इ देती थीं। परंतु पास हुए, तो कोई ठिकाना न दीख पड़ा। वह घबरा गए। जिस प्रकार यात्री मीलों चल-चल कर स्टेशन पर पहुँचे, परंतु रेलगाड़ी में स्थान न मिले। उस समय उसकी जो दुर्दशा होती है, ठीक वही सर्वदयाल की थी। उनके पिता पंडित शंकरदत्त पुराने जमाने के आदमी थे। उनका विचार था कि बेटा अंग्रेजी बोलता है, पतलून पहनता है, नेकटाई लगाता है, तार तक पढ़ लेता है, इसे नौकरी न मिलेगी, तो और किसे मिलेगी? परंतु जब बहुत दिन गुजर गए और सर्वदयाल को कोई आजीविका न मिली, तो उनका धीरज छूट गया। बेटे से बोले- ‘‘अब तू कूछ नौकरी भी करेगा या नहीं? मिडिल पास लड़कें रूपयों से घर भर देते हैं। एक तू कि पढ़ते-पढ़ते सफेद हो गए, परंतु हाथ पर हाथ धरे बैठा है।’’ सर्वदयाल के कलेजे में मानो किसी ने तीन-सा मार दिया। सिर झुका कर बोले- ‘‘नौकरियाँ तो बहुत मिलती हैं, परंतु वेतन बहुत कम मिलता है, इसलिए देख रहा हूँ कि कोई अच्छा अवसर हाथ आ जाए, तो करूं।’’ शंकर दत्त ने उत्तर दिया- ‘‘यह तो ठीक है, परंतु जब तक अच्छी न मिले, मामूली ही कर लो। जब अच्छी मिले, इसे छोड़ देना।’’ सर्वदयाल चुप हो गए, वे उत्तर न दे सके। शंकर दत्त पूजापाठ करने वाले आदमी, इस बात को क्या समझें कि सभी ग्रेजूएट भी साधारण नौकरी कर सकता है?
सर्वदयाल के पिता बेटे के बारे में क्या सोचते थे?
A) बेटा अंग्रेजी बोलता है
B) बेटा बाबू जैसा बना रहता है
C) नौकरी पाएगा

Question 7

निर्देश: निम्नलिखित वाक्यों में उनके प्रथम तथा अंतिम अंश संख्या 1 और 6 के अंतर्गत दिए गए हैं। बीच वाले चार अंश (य), (र), (ल), (व) के अंतर्गत बिना क्रम के हैं। चारों अंशों को उचित क्रमानुसार व्यवस्थित कर उचिल विकल्प चुनें और उत्तर दें।
(1) आण्विक अस्त्रों में विरोध में
(य) और नवयुग की चेतना लेकर निबंध के
(र) एवं विचारात्मक कोटियों में रखे जा सकते हैं जो
(ल) प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा का गंभीर ज्ञान
(व) क्षेत्र में अवतरित हुए तथा इनके निबंध भावात्मक
(6) इनके व्यक्तित्व की छाप लिए हुए हैं।

Question 8

निर्देश: निम्नलिखित वाक्यों में उनके प्रथम तथा अंतिम अंश संख्या 1 और 6 के अंतर्गत दिए गए हैं। बीच वाले चार अंश (य), (र), (ल), (व) के अंतर्गत बिना क्रम के हैं। चारों अंशों को उचित क्रमानुसार व्यवस्थित कर उचिल विकल्प चुनें और उत्तर दें।
(1) रेखाचित्र शब्द अंग्रेजी के ‘स्केच’ शब्द का हिन्दीकृत रूप है तथा दो शब्दों ‘रेखा’ और ‘चित्र‘ के योग से बना है।
(य) रेखाचित्र में चित्रकला तथा साहित्य का सुन्दर सामंजस्य दिखलार्इ पड़ता है।
(र) इसमें शब्दों की कलात्मक रेखाओं के द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य तथा आंतरिक स्वरूप का शब्द चित्र इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक के हृदय में उसका सजीव तथा यथार्थ चित्र अंकित हो जाता है।
(ल) रेखाचित्रकार शब्द शिल्पी होता है तथा चुने हुए शब्दों एवं विशिष्ट वाक्यों के द्वारा एक काल्पनिक किन्तु सजीव चित्र प्रस्तुत करता है।
(व) जिस प्रकार चित्रकार तूलिका तथा रंगों के माध्यम से किसी सजीव चित्र का निर्माण करता है, उसी प्रकार रेखाचित्रकार शब्दों के द्वारा ऐसा भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है जो उसकी वास्तविक संवेदना को मूर्त रूप प्रदान करने में सफल होता है।
(6) इनमें लेखक की निजी अनुभूति यथार्थ रूप से अभिव्यक्त होती है।

Question 9

निर्देश: निम्नलिखित वाक्यों में उनके प्रथम तथा अंतिम अंश संख्या 1 और 6 के अंतर्गत दिए गए हैं। बीच वाले चार अंश (), (), (), () के अंतर्गत बिना क्रम के हैं। चारों अंशों को उचित क्रमानुसार व्यवस्थित कर उचिल विकल्प चुनें और उत्तर दें।
(1) सच्चे वीर पुरूष धीर, गंभीर और आजाद होते हैं।
() उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी होती हैं।
() सच है कि सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।
() रामायण में वाल्मीकि ने कुम्भकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का चिन्ह दिखलाया है।
() वे कभी चंचल नहीं होते।
(6) वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती।

Question 10

निर्देश: निम्नलिखित वाक्यों में उनके प्रथम तथा अंतिम अंश संख्या 1 और 6 के अंतर्गत दिए गए हैं। बीच वाले चार अंश (य), (र), (ल), (व) के अंतर्गत बिना क्रम के हैं। चारों अंशों को उचित क्रमानुसार व्यवस्थित कर उचिल विकल्प चुनें और उत्तर दें।
(1) हमारा देश त्यौहारों का देश है।
(य) ये त्यौहार उल्लास जगाते हैं।
(र) यहाँ अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं।
(ल) समन्वय की भावना भी उत्पन्न करते हैं।
(व) जनमानस में देश-भक्ति जगाते हैं। और
(6) इन अवसरों पर हम सब खुशियां मनाते हैं।
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Oct 31PO, Clerk, SO, Insurance