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IBPS RRB Hindi Quiz: गद्यांश 03.09.2018

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Question 1

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
हमारी सामाजिक मान्यताओं के विघटन का प्रमुख कारण है।

Question 2

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
नैतिक शिक्षा से समाज को लाभ होगा-

Question 3

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
उपरोक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक है-

Question 4

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व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
दिए गए अवतरण के अनुसार, शिक्षा का अभिप्राय है

Question 5

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
समाज में शिक्षण-संस्थाएँ इसलिए महत्त्व रखती है, क्योंकि शिक्षण

Question 6

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
दिए गए अवतरण में ‘उत्साह’ शब्द का विपरीतार्थ शब्द है

Question 7

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व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
निम्न में से उपसर्ग वाला शब्द है-

Question 8

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व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
भौतिक का विलोम शब्द है?

Question 9

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
चरित्र-निर्माण में प्रयुक्त समास है-

Question 10

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्द काले मोटे अक्षरों से मुद्रित किए गए हैं। जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी।

व्यक्ति समाज की इकाई है और शिक्षा व्यक्ति को सत् चित और आनन्द की अनुभूति करने योग्य बनाती है, शिक्षा का अर्थ है जीना सीखने की कला! हम जीते हैं समाज में, अत: शिक्षा का मूल स्त्रोत है समाज। इस प्रकार शिक्षा और समाज कर परसपर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का समाज में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं से भावी नागरिक ढल कर निकलते हैं। आज समाज के मूलरूप को परिष्कृत करने हेतु नैतिक शिक्षा के प्रश्न पर विशेष बल दिया जाने लगा है। यह आवश्यकता अनुभव की गई है कि हमारी मान्यताओं का स्खलन हो रहा है; सामाजिक जीवन में जो अनैतिकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा का अभाव अनेक प्रकार के दुष्परिणामों को देखने के लिए बाध्य करता है। देश में फैले भ्रष्टाचार, लूटमार, आगजनी, बलात्कार एवं अन्य अपराध नैतिकता के अभाव की ही परिणति हैं। हमारी वर्तमान पीढ़ी जब इतनी अनैतिक व चरित्रविहीन है तो आने वाली पीढ़ियों का स्वरूप क्या होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? इस शिक्षा का प्रभावी रूप क्या हैं? क्योंकि धर्मग्रंथों के उपदेश या फिर चरित्र निर्माण हेतु सजीले भाषण आज के वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्रायोगिक एवं सतत् हो। इसके लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा का समाहित किया जाए तथा विज्ञान व अन्य विषयों की भांति इसे भी पूर्ण महत्त्व दिया जाए।
आज हमने भौतिक उन्नति को एकमात्र उद्देश्य बना लिया है। हम भौतिकवादी से अतिभौतिकवादी होते जा रहे हैं और यही कारण है कि विफलताओं हमारें मार्ग को अवरूद्ध करती जा रही हैं । आज शिक्षा का महत्व केवल पुस्तकीलय ज्ञान मात्र है जो पुस्तकों में ढलता जा रहा है।
दिए गए परिच्छेद के अनुसार, नैतिक शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए?
A. पाठक्रमों में नैतिक शिक्षा को समाहित किया जाए
B. विज्ञान अन्य विषयों की भांति इसे पूर्ण महत्त्व देना
C. सामाजिक शिक्षा को बढ़ावा देना
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Dec 10PO, Clerk, SO, Insurance