यह कहना बहुत अनुचित है कि बच्चा केवल स्कूल के पर्यावरण से सीखता है लेकिन तथ्य यह है कि बच्चा प्रत्येक चीज से सीखता है जिससे वह परस्पर संवाद कर सकता है। बच्चा पैदा होने के समय से सीखता है। उस समय से उसका परस्पर संवाद बाहरी दुनिया से शुरू हो जाता है। वह उस समय से विभिन्न चेतना अंगों के माध्यम से चीजों को समझना शुरू कर देता है और उसके बाद वह धीरे-धीरे चीजों को पहचानना शुरू कर देता है। स्कूल जाने से पहले एक बच्चा बाहरी दुनिया के साथ-साथ परिवार से बहुत कुछ सीखता है। पियागेट के अनुसार सीखने (अधिगम) या विकास के चार विभिन्न चरण हैं:
1. सेंसरी-मोटर चरण (0 से 2 वर्ष आयु): इस स्तर पर एक बच्चा अपनी इंद्रियों के माध्यम से उसके आस-पास की चीजों की खोज में व्यस्त रहता है। और जब एक बच्चे के संचालक (मोटर) कौशल विकसित होते हैं तो बच्चा क्रॉलिंग, क्रीपिंग शुरू कर देता है, इस चरण में वह दोनों इंद्रियों के साथ सीखता है।
2. पूर्व-परिचालन (प्रीऑपरेशनल) चरण (2 से 7 वर्ष आयु): इस चरण के दौरान एक बच्चा वार्तालाप गतिविधियों में खुद को संलग्न करता है, ठोस तर्क को नहीं समझता है, स्वार्थ दिखाता है, दूसरों के विचारों आदि को नहीं मानता है।
3. ठोस प्रचालन अवधि (7 से 10 वर्ष आयु): इस स्तर पर बच्चा मानसिक रूप से डेटा का उपयोग शुरू कर देता है, जानकारी को मस्तिष्क में रखता है तथा तुलना और विरोधाभास शुरू कर देता है। इस स्तर पर एक बच्चा दृढ़ता से सोचता है तथा तार्किक विचारों में सक्षम होता है।
4. औपचारिक परिचालन चरण (11 से 15 वर्ष आयु): इस स्तर पर एक बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमता विकसित होती है, अब वह तार्किक और अमूर्त रूप में सोचना शुरू करता है। वह समस्या सुलझाने की क्षमता भी विकसित करता है।
बच्चों में सोच प्रक्रिया का आधार:
- अभिव्यक्ति: मान लीजिए कि एक बच्चा अपने शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पर्यावरण में एक वस्तु और स्थिति को समझता है, फिर इन वस्तुओं के माध्यम से बच्चा अपने ज्ञान में वृद्धि करता है और अपनी सोच को भी विकसित करता है।
- आसक्ति: एक बच्चा अपनी शिक्षा को बढ़ाने के लिए आसक्ति को विकसित करता है भले ही वस्तु अवलोकन योग्य न हो।
- संकल्पना: संकल्पना में एक बच्चा वज़न, समय, दूरी, संख्या इत्यादि जैसी विभिन्न अवधारणाओं के बारे में अपनी अवधारणाओं को विकसित करता है।
- अच्छे या बुरे अनुभव: एक बच्चा अपने अनुभवों के माध्यम से बहुत कुछ सीखता है। वह अपने विभिन्न अच्छे या बुरे अनुभवों के बारे में निष्कर्ष निकालता है।
- जिज्ञासा: इसके तहत बच्चा अपनी रुचियों और इच्छाओं के कारण सोचने के नए तरीके विकसित करता है। इसलिए, बच्चे के सीखने को तेज करने के लिए परिवार को उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
- प्रतिलिपिकरण (कॉपीइंग): इस तत्व के तहत बच्चा अनुकरण से सीखता है और दूसरों के कार्यों का प्रतिलिपिकरण करता है।
- तर्क और विवेक बुद्धि (लॉजिक और रीजनिंग): तर्क और विवेक बुद्धि सोच का उच्चतम स्तर है और बच्चे के भाषा विकास के ज्ञान के अनुसार विकसित होता है।
बच्चों की सोच में सुधार करने हेतु सुझाव:
माता-पिता और शिक्षकों द्वारा बच्चों के सोच कौशल को विकसित करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
1. बच्चों को उनकी पसंद के अनुसार अपनी रुचियों को विकसित करने की अनुमति देना और माता-पिता को उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
2.बच्चों को उनकी जिम्मेदारियों का प्रबंधन करने के उद्देश्य से उनकी क्षमता के अनुसार कुछ कार्य दिए जाने चाहिए।
3.यदि बच्चे किसी समस्या का समाधान करने में असमर्थ हैं तो उन्हें उनके माता-पिता और शिक्षकों के साथ चर्चा करने हेतु सिखाया जाना चाहिए।
4.बच्चों के सीखने के कौशल को बढ़ाने के उद्देश्य से माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के लिए सीखने का माहौल बनाना चाहिए।
5.बच्चों को माता-पिता और शिक्षकों द्वारा उनकी सोचने की शक्तियों के बारे मेंविचार करने और बढ़ाने हेतु प्रेरित किया जाता है।
बच्चे स्कूलों में सफलता हासिल करने में असफल क्यों होते हैं:
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक बच्चा समान नहीं होता है, कुछ अपनी क्षमताओं के अनुसार भिन्न होते हैं तथा कुछ बच्चे कईं कारणों जैसे भयभीत होने के कारण, उदास रहने, परेशान रहने के कारण स्कूलों में विफल होते हैं, जबकि कुछ शिक्षकों द्वारा उपयोग की जाने वाली खराब और अप्रभावी पद्धतियों के कारण विफल हो जाते हैं। विफलता और उनके कारणों में से कुछ अभिव्यक्तियां निम्नानुसार हैं:
विफलता की अभिव्यक्तियां: प्रत्येक बच्चा अपने स्कूल को पूर्ण उत्साह से शुरू करता है लेकिन उसके ग्रेड परीक्षा में खराब होते हैं, वह कक्षा से अलग महसूस करता है और सभी छात्रों के पीछे रहता है। छात्र के प्रदर्शन में इस गिरावट की जांच यदि समय पर नहीं की जाती है तो इसके परिणामस्वरूप बच्चा स्कूल छोड़ देता है। छात्रों की विफलता के कुछ कारण निम्न हैं:
1. डर: एक बच्चे को कक्षा के माहौल में विफलता, अपमान और अस्वीकृति के डर की स्थिति का सामना करना पड़ता है या तो यह वातावरण छात्रों के सवालों के जवाब के जवाब में उनके माता-पिता या उनके शिक्षक द्वारा बनाया जाता है। इस स्थिति के कारण बच्चे को आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में कमी होगी जिसके परिणामस्वरूप उसकी विफलता होती है।
2.उदासी: यदि बच्चे की रूचि शिक्षकों द्वारा सौंपे गए कार्य से मेल नहीं खाती है और शिक्षक एक बच्चे से चाहता है कि वह उसी कार्य को करे तो बच्चा स्कूल के जीवन से ऊब जाता है और किसी भी तरह से उससे बचना चाहता है।
3. भ्रांति: एक बच्चा स्कूल में जो कुछ भी सीखता है और वह घर पर जो सीखता है, उसके बीच विरोधाभास के कारण इस स्थिति का सामना करता है। और बच्चा उत्तरों के साथ भ्रमित हो जाता है तथा शिक्षक से वही प्रश्न पूछने का प्रयास करता है और शिक्षक अक्सर उसके माता-पिता के विपरीत उसे संतुष्ट नहीं कर पाता है। कुछ समय बाद, बच्चे इस तरह के भ्रम के कारण स्कूल में अपने संदेह को हल करने के लिए प्रश्न पूछना बंद कर सकते हैं, इस स्थिति के कारण उसका प्रदर्शन खराब हो सकता है।
4. अभिप्रेरण की कमी: स्कूलों में शिक्षकों द्वारा हतोत्साहित किए जाने के कारण बच्चों में अध्ययन की कमी विभिन्न कारकों जैसे शिक्षकों के साथ संचार की कमी, प्रतिकूल कक्षा पर्यावरण, शिक्षाविदों में असावधानी आदि के कारण होती है।
5. खराब शिक्षण रणनीतियां: यदि शिक्षण रणनीति अक्सर बच्चे की रुचि और क्षमताओं से मेल नहीं खाती है और इन रणनीतियों में निरादर का डर उत्पन्न होता है तो बच्चा रक्षा तंत्र विकसित करता है जिसके परिणामस्वरूप छात्रों द्वारा शिक्षकों के प्रश्नों से बचने के तरीकों की खोज शामिल होती है। इस समस्या ने बच्चे को स्कूल से वंचित कर दिया है।
विफलता से बचने के तरीके:
1. माता-पिताको स्कूल और पारिवारिक माहौल दोनों मामलों में उनकी भागीदारी करनी चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों को एक स्थिर वातावरण प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए। स्कूलों और अन्य मामलों में सिखाई गई नई अवधारणाओं को समझाने में, गृह कार्य में उनकी सहायता करनेका भी प्रयास करना चाहिए।
2. माता-पिता और शिक्षक दोनों को बच्चे को अपने विभिन्न कौशल जैसे पढ़ना, लिखना, गणितीय, सामाजिक कार्य इत्यादि को विकसित करने में मदद करनी चाहिए जिससे बच्चा स्कूल के जीवन में भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगा।
3. माता-पिता और शिक्षक दोनों को निरंतर प्रतिक्रिया प्रदान करके बच्चे को प्रेरित करना चाहिए। उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि अपनी विफलता और निपुणता से सीखना निरंतर अभ्यास और प्राप्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
Serial No. | Book Name | Author Name |
1. | CTET and TETs Child Development and Pedagogy Paper 1 and 2 | Arihant Experts |
2. | CTET Child Development and Pedagogy for Paper 1 and Paper 2 | By Pearson (Sandeep Kumar) |
3. | Educating Exceptional Children: An Introduction to Special Education | Mangal S.K |
Note: All the study notes are available in Hindi as well as the English language. Click on A/अ to change the language.
Thanks!
Sahi Prep hai toh Life Set hai!
Frequently Asked Questions (FAQs)
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write a commentKashem AliJun 6, 2020
Nitu SahuJun 9, 2020
Richa PandeyJun 19, 2020
Bhawna AggarwalJun 21, 2020
Sulabha BeheraJul 12, 2020
Sulabha BeheraJul 12, 2020
Shaila TiwariAug 14, 2020
RuchikaAug 18, 2020
2-d
3- c
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5-a
Priyank RajOct 19, 2020
Dilpreet87 KaurNov 4, 2020