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भारत में हरित क्रांति – Green Revolution in India in Hindi

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) 1960 के दशक में शुरू हुई थी, जिसके दौरान भारत में कृषि को आधुनिक औद्योगिक प्रणाली में बदल दिया गया था, जैसे कि उच्च उपज देने वाले किस्म के बीज, मशीनीकृत कृषि उपकरण, सिंचाई सुविधाओं, कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग। इन सबके परिणामस्वरूप देश के खाद्यान में वृद्धि हुई जिसे हरित क्रांति नाम दिया गया था।

भारत में हरित क्रांति | Green Revolution in India Hindi Mein

आजादी के बाद से ही भारत के सामने अनेकों समस्याएं थी इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या थी गरीबी व भुखमरी। कहने को तो भारत एक कृषि प्रधान देश था पर आजादी के समय मात्र 36 करोड़ जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करना सरकार के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई थी। इस गंभीर समस्या को निपटने के लिए सरकार द्वारा देश में पहली पंचवर्षीय योजना में अपने मुख्य फोकस के रूप में कृषि विकास को रखा था। इसके बावजूद दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान देश ने एक गंभीर खाद्य संकट का सामना किया। तथा देश में गरीबी व भुखमरी एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा जिसे देखते हुए सरकार ने सन् 1958 में भारत में खाद्य समस्या की कमी के कारणों की जांच करने वह उसे दूर करने के उपायों को सुझाव के लिए एक टीम का गठन किया। इस गठित टीम ने पूरे देश में अनेक शोध कार्य किया तथा सरकार को यह सुझाव दिया कि भारत को इस गंभीर समस्या से निपटने व खाद्यान्न उत्पादन बढाने के लिए उन क्षेत्रों में अधिक फोकस करना चाहिए जहां पर कृषि उत्पादन बढ़ाने की अधिक संभावना है। इसके परिणाम स्वरूप सरकार ने पहले से ही विकसित हुई कृषि क्षेत्रों को अधिक खाद्यान्न उत्पादन प्राप्त करने के लिए गहन खेती के रूप में चुना गया। तथा अपना पूरा फोकस इन कृषि क्षेत्रों पर ही लगाए रखा जिसके परिणाम स्वरूप 1970 के दशक में भारत में कृषि उत्पादन में एक आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। उत्पादन में वृद्धि इतनी अधिक थी कि देश के कई अर्थशास्त्रीयो ने इसे हरित क्रांति (green revolution) नाम दे दिया था।

हरित क्रांति शब्द

”हरित क्रांति” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी वैज्ञानिक विलियम गॉड ने किया था। हरित क्रांति (विकासशील देशों में गेहूं और चावल की उन्नत किस्मों की पैदावार में तेजी से वृद्धि लाने के लिए उर्वरकों और अन्य रासायनिक आदानों के संयुक्त रूप से विस्तृत उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) का कई विकासशील देशों में इनकम (आय) और खाद्य आपूर्ति पर बड़ा नाटकीय प्रभाव पड़ा है। हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग को माना जाता है। नॉर्मन बोरलॉग ने गेहूँ की हाइब्रिड प्रजाति का विकास किया था, इन्हे कृषि के क्षेत्र में नोबेल पुरुस्कार प्रदान किया गया था।
हरित क्रांति (green revolution) शब्द हरित एवं क्रांति शब्दों से मिलकर बना है जिसमें क्रांति शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी घटना में तेजी से परिवर्तन होने तथा उस परिवर्तन का प्रभाव आने वाले लंबे समय तक रहने से है। जबकि हरित शब्द का तात्पर्य कृषि या फसलों से लगाया जाता है अर्थात शाब्दिक अर्थो में देखा जाए तो हरित क्रांति का अर्थ किसी देश में कृषि फसलों के उत्पादन में एक निश्चित समय में ही विशेष गति से वृद्धि का होना तथा उत्पादन मे यह वृद्धि दर आने वाले लंबे समय तक बनाए रखने से हैं।

भारत में हरित क्रांति को अपनाने के लिए उत्तरदायी कारक:

हरित क्रांति से पहले, भारत को खाद्य उत्पादन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, भारत में हरित क्रांति को अपनाने के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे:

  • नियमित अकाल: 1964-65 और 1965-66 में, भारत ने दो विकट के अकालों (सूखे) का अनुभव किया जिसके कारण भोजन का अभाव हो गया।
  • संस्थागत वित्त का अभाव: सीमांत किसानों को सरकार और बैंकों से किफायती दरों पर वित्त एवं ऋण प्राप्त करना बहुत मुश्किल था।
  • कम उत्पादकता: भारत की पारंपरिक कृषि पद्धतियों ने अपर्याप्त खाद्य उत्पादन प्राप्त किया।

भारत में हरित क्रांति के जनक (Father of Green Revolution in India)

भारतीय हरित क्रांति के जनक के रूप में एमएस स्वामीनाथन को जाना जाता है। इनका जन्म 7 अगस्त 1925 में कुंभकोणम जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है में हुआ था। एमएस स्वामीनाथन एक जेनेटिक्स वैज्ञानिक थे, जिन्होंने मेक्सिको के बीजों को पंजाब के देशी बीजों के साथ मिश्रित करते हुए एक नई एवं अत्यधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का विकास किया था। भारत में हरित क्रांति लाने में इनका काफी योगदान था। कृषि मे इन योगदानो के कारण ही इन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

भारत में हरित क्रांति के विभिन्न पहलू

    1. अधिक उपज देने वाली किस्में (HYV)

    2. कृषि का मशीनीकर

    3. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग

    4. सिंचाई

हरित क्रांति के मुख्य तीन मूल तत्व

  • उन्नत उपज वाले बीजों का उपयोग
  • मौजूदा खेत में दोहरी फसल
  • कृषि क्षेत्रों का निरंतर विस्तार

हरित क्रांति के घटक

1. उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग : हरित क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण घटक कृषि में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग रहा है। हरित क्रांति में प्रयोग की जाने वाली सबसे पहली उन्नतशील बीज ‘नोरीन 10’ थी। जिसे डॉ0 यस. सी. शैली ने सन् 1948 में जापान से अमेरिका लाए थे। भारत में सर्वप्रथम हरित क्रांति के फलस्वरूप मेक्सिको से आया उन्नत किस्म आरोही, सोनारा 63, व वसुंधरा 64 थी। जिसके उपयोग से कृषि उपज काफी बढ गई। लेकिन बाद में डॉ स्वामीनाथन द्वारा मेक्सिको से आए बीजो को देश के देसी किस्म के बीजों को संकरण द्वारा एक नई अत्यधिक उपज देने वाली किस्मों में बदल दिये। जिससे कि देश में कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि होने लगी
2. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग : फसलों के वृद्धि और विकास के लिए 16 आवश्यक पोषक तत्व की आवश्यकता होती है जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश मुख्य हैं। भारतीय मृदाओंं में इन पोषक तत्वों की भारी कमी पाई जाती हैं। हरित क्रांति के पहले कृषक इन पोषक तत्व से अनभिज्ञ थे। तथा गोबर आदि जैविक खादो से अपने कृषि कार्य को करते थे। जिसके कारण कृषि उत्पादन उतना अच्छा नहीं हो पाता था जितना होना चाहिये। परंतु हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप देश में रासायनिक उर्वरकों का उपभोग की मात्रा में काफी तेजी से वृद्धि हुई जिससे देश की मृदा में इन पोषक तत्वों की पूर्ति की वजह से फसलों के उत्पादन में भी सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई।
3. सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि : फसल उत्पादन में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है हरित क्रांति के पूर्व देशों में कृषि मानसून के भरोसे ही हुआ करती थी। जिस वर्ष वर्षा अच्छी होती थी उस वर्ष उत्पादन भी अच्छा जाता था। लेकिन जिस वर्ष बारिश कम होती थी उत्पादन भी उसी अनुपात में गिर जाता था। हरित क्रांति के दौरान देश में सिंचाई सुविधा का सर्वाधिक विकास हुआ जिससे देश की प्यासी भूमि को पानी मिलने से देश की फसले झूम उठे तथा उत्पादन भी बढ़ गया।
4. पौधों को रोगों एवं कीटों से बचाव : फसलों का एक महत्वपूर्ण शत्रु कीट एवं रोग है। हरित क्रांति से पूर्व इनसे बचाव के लिए कोई ठोस उपाय नहीं थे। लेकिन हरित क्रांति के फलस्वरूप देश में कीटों व रोगों से बचाव के लिए तरह-तरह के रासायनिक कीटनाशकों व रोगनाशको का प्रयोग होने लगा। जिससे कि इन कीटो एवं रोगों का बचाव के कारण फसल उत्पादन में भी वृद्धि हुई।
5. बहु फसली कार्यक्रम : आजादी के समय देश में वर्ष में अधिकतर क्षेत्रों में सिर्फ एक ही फसलों का उत्पादन हुआ करता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद देश मे बहु फसली कार्यक्रम को सर्वाधिक जोर दिया गया। यानी किसानों को यह समझाया गया कि वह एक ही खेत में एक ही वर्ष में एक से अधिक फसलों का उत्पादन करें जिससे कि किसानों को अधिक उपज का लाभ होने के साथ ही साथ उत्पादन में भी वृद्धि हो सके। वर्तमान में देश में 68% से अधिक सिंचित क्षेत्रों में बहुफससली खेती की जाती हैंं।
6.आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग : आजादी के समय हमारे देश के कृषक बैलों से जुताई आदि का कार्य किया करते थे। लेकिन हरितक्रांति के दौरान कृषि को आधुनिकरण किया गया। तथा कृषि मे विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण का प्रयोग बढावा दिया गया। जिससे कृषि में उत्पादन बनने के साथ ही साथ किसानों को लागत में भी कमी आयी। किसानों को कृषि उपकरण मे विभिन्न प्रकार के सब्सिडी का भी प्रावधान किया गया। जिससे कृषक आसानी से कृषि उपकरण को खरीद सके।
7. मृदा परीक्षण की स्थापना : हरित क्रांति के दौरान देश की विभिन्न क्षेत्रों में मृदा परीक्षण की स्थापना की गई। तथा किसानों की खेत से मृदाओं को एकत्र कर के उनके खेत मे वहीं पोषक तत्व डाले जाने की सलाह दी गई जिन पोषक तत्व की उनके खेत में कमी थी।
8. कृषकों को उपज का उचित मूल्य की गारंटी : आजादी के समय देश में कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलने की वजह से अधिकतर किसानो का कृषि कार्य से मोह भंग हो रहा था। लेकिन हरित क्रांति के दौरान सरकार द्धारा देश में कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए एक आयोग का गठन किया गया। जिसे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के नाम से जाना जाता हैं। यह आयोग किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए वर्ष में दो बार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है तथा यह आश्वासन देती है कि उनकी उपज का उचित मूल्य दिया जाएगा। जिससे निर्भय हो कर कृषक अपने कृषि कार्य में लग गये।

भारत में हरित क्रांति के लाभ

हरित क्रांति ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बड़ा प्रभाव डाला यह भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों रूप से प्रभावित किया। देश में कृषि उत्पादन को शुन्य से लेकर शिखर तक पहुंचाया तथा देश को एक कृषि प्रधान देश बनाने में भी काफी योगदान दिया। हरित क्रांति की ही देन है जिसकी वजह से आज हमारा देश अधिकतर फसलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के साथ ही साथ यह विभिन्न देशों में इसका निर्यात भी कर सका। आज हमारा देश धान व गेहूं सहित दर्जनों फसलों का जो विदेशों में निर्यात करता है उसका एकमात्र योगदान हरित क्रांति को ही दिया जा सकता हैं। हरित क्रांति ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर साकारात्मक प्रभाव डाला जो निम्नलिखित है:

1. खाद्यानो के उत्पादन में भारी वृद्धि: हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव देश के खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ा था तथा इसका सर्वाधिक प्रभाव देश के प्रमुख खाद्यान्न फसलें धान एवं गेहूं पर देखा गया। धान की बात की जाए तो पूरे देश में जहां धान का उत्पादन सन् 1965-66 में जहां 72.4 मिलियन टन था। तथा हरित क्रांति के प्रभाव के कारण यह उत्पादन बढ़कर 1978-79 में 131.9 मिलियन टन तक पहुंच गया। दूसरी तरफ अगर गेहूं की बात की जाए तो सन 1965-66 में जहां गेहूं का उत्पादन पूरे देश में 10.4 मिलियन टन से बढ़कर 1978-79 में यह उत्पादन 35.5 मिलीयन तक पहुंच गया था।
2. खाद्यान्नों का आयात में कमी: आजादी के समय भारत कुल खाद्यान्नों के मामले में दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश था। परन्तु हरित क्रांति के फलस्वरूप खाद्यान्नों में असीमित वृद्धि के वजह से भारत ना सिर्फ खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बना बल्कि खाद्यान्नों का निर्यात भी करने लगा।
3. कृषि बचत में वृद्धि: हरित क्रांति के फल स्वरुप खाद्यान्नों में अत्याधिक वृद्धि के वजह से किसानों के आय मे वृद्धि दर्ज की गयी। यह वृद्धि विशेष रूप से औद्योगिक विकास में लाभदायक रही।
4. कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर में वृद्धि: हरितक्रांति के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि होने की वजह से कृषि में रोजगार मे भी वृद्धि दर्ज की गई। कृषि मे रोजगार के नये-नये द्वार खुल गए। जहां पर पहले एक वर्ष में सिर्फ एक ही फसलों का उत्पादन होता था वहां पर अब दो या उससे अधिक फसलों का उत्पादन होने लगा जिसके वजह से इनमे वृद्धि हुई। अधिक उत्पादन के वजह से कृषि आधारित उद्योगों का विकास हुआ जिसके वजह से उद्योगों में भी रोजगार में वृद्धि दर्ज की गई।
5. कृषि निवेश में वृद्धि: आजादी के पहले कृषि एक घाटे का सौदा हुआ करता था। परन्तु हरित क्रांति के बाद यह फायदेमंद सौदा में बदल गया। अतः कृषि में अधिक लाभ कमाने के लिए पूंजीपतियों द्वारा इसमें तरह-तरह के निवेश किया गया।
6. ग्रामीण विकास मे वृद्धि: हमारे देश में आज भी बहुत बड़ी जनसंख्या गांव में निवास करती है तथा इसका जीवन निर्वाह का एकमात्र विकल्प कृषि ही है। और कृषि के उत्पादन में वृद्धि होने पर इसका सीधा सा प्रभाव इनके रहन-सहन पर पड़ा।
7. खाद्यान्नों के दामों में स्थिरता: हरित क्रांति से पहले देश में खाद्यान्नों के मूल्य के निर्धारण के लिए कोई विशेष आयोग नहीं था। जिससे इन खाद्यान्नों के मूल्यों में काफी उतार-चढ़ाव दर्ज की जाती थी। कभी यह दाम काफी अधिक होने की वजह से उपभोक्ताओं को परेशानीयो का सामना करना पडता था तो कभी कृषक को उनकी उपज का उचित मूल्य तक नहीं मिल पाता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद इन खाद्यान्नों के मूल्य में परिवर्तन को रोकने के लिए एक विशेष आयोग का गठन किया गया जिससे इन खाद्यान्नों के दामों में उतार-चढ़ाव काफी हद तक नियंत्रण मे हो गए।

हरित क्रांति की हानियां (Negative Effects of Green Revolution)

भारतीय अर्थव्यवस्था पर हरित क्रांति का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा जो निम्नलिखित है:

1. मृदा उर्वरता में कमी: हरित क्रांति के प्रभाव से देश में कुल खाद्यान्नों के उत्पादन में तो अत्यंत वृद्धि तो हुई परन्तु इसका सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव देश की मृदा पर ही पड़ा। क्योंकि कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के कृषि रसायन व कृषि उर्वरकों का अत्याधिक प्रयोग किया जाता है जिसका सीधा प्रभाव मृदा पर ही पड़ता है। जिससे कि मृदा की उर्वरता क्षमता घट जाती है तथा मृदा में उपस्थित विभिन्न प्रकार के सहायक भी नष्ट हो जाते हैं।
2. कृषि उत्पाद की गुणवत्ता मे कमी: आधुनिक कृषि में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के कृषि रसायनो, कृषि उर्वरकों तथा अधिक उत्पादन देने वाली बीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे कृषि उत्पादन तो बढ़ता है। साथ ही साथ यह कृषि उत्पादन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। देसी किस्मे कृषि उत्पादन कम तो देती थी लेकिन यह पोषक तत्वों से परिपूर्ण थी। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि कृषि उत्पाद मे अब वह गुणवत्ता नही रहा जो पहले हुआ करता था।
3. छोटे व सीमांत किसानों पर प्रभाव: आधुनिक कृषि में उन्नतशील बीजो, कृषि रसायनों व उर्वरकों को बाजार में खरीदना पड़ता है। चूंकि हमारे देश के अधिकतर किसान गरीब व मध्य वर्ग के हैं। अतः वे इन महंगे उत्पाद को खरीदने में असमर्थ होते हैं और कर्ज की जाल में फस जाते हैं।
4. पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव: आधुनिक कृषि में प्रयोग होने वाले कृषि रसायन व उर्वरको से मृदा उर्वरता में कमी आती है साथ ही साथ यह जलीय जीवो, नदियों आदि को भी दूषित कर देते हैं इसका सीधा प्रभाव हमारे पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर पड़ता हैं। 

हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के उपाय:

  • उपरोक्त नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए, स्वामीनाथन ने पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी कृषि, स्थायी खाद्य सुरक्षा और संरक्षण का उपयोग करने के लिए सदाबहार क्रांति की समर्थन किया।
  • असंतुलित कृषि प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए, भारत सरकार ने इंद्रधनुष क्रांति- एकीकृत खेती आदि को बढ़ावा देने के लिए कल्पना की है।

भारत में हरित क्रांति का प्रभाव

  • हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है। इससे भारत में खाद्यान्नों के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है. हरित क्रांति में सबसे बड़ा फायदा गेहूँ की उपज में हुआ. योजना के प्रारंभिक चरण में ही इसका उत्पादन बढ़कर 55 मिलियन टन हो गया था।
  • हरित क्रांति केवल कृषि उत्पादन तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि सभी फसल के प्रति एकड़ उपज में भी वृद्धि हुई है। गेहूं के मामले में तो हरित क्रांति ने अपने प्रारंभिक चरण में हीं 850 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज से बढ़ाकर अविश्वसनीय रूप से 2281 किलोग्राम/हेक्टेयर कर दिया।
  • हरित क्रांति की शुरुआत के साथ हीं, भारत की आयात पर निर्भरता काफी कम हो गई और देश आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुंच गया. देश में उत्पादन बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने और आपात स्थिति के लिए इसे स्टॉक करने के लिए पर्याप्त हो गया। अन्य देशों से खाद्यान्न के आयात पर निर्भर होने के बजाय भारत ने अपनी कृषि उपज का निर्यात करना शुरू कर दिया।
  • क्रांति की शुरूआत ने जनता के बीच इस डर को दूर कर दिया कि व्यावसायिक खेती से बेरोजगारी बढ़ेगी और बहुत सारी श्रम शक्ति बेरोजगार हो जाएगी। लेकिन परिणाम बिल्कुल अलग देखा गया और इससे ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हुई. परिवहन, सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण, विपणन आदि जैसे तृतीयक उद्योगों ने कार्यबल के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए।
  • भारत में हरित क्रांति ने देश के किसानों को प्रमुख रूप से लाभान्वित किया। किसान जो भूख से मर रहे थे न केवल जीवित रहे, बल्कि इस क्रांति के दौरान समृद्ध भी हुए, उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, और वे जीविका के लिए खेती से व्यावसायिक खेती में स्थानांतरित हो गए।

भारत में हरित क्रांति के तहत योजनाएं

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि के क्षेत्र में हरित क्रान्ति ”अम्ब्रेला स्कीम” के तहत 2017 से 2020 तक तीन साल की अवधि के लिए ‘कृषोन्नति योजना’ को 33,269.976 करोड़ के केंद्रीय हिस्से के साथ मंजूरी दी है. हरित क्रान्ति ”अम्ब्रेला स्कीम”’कृषोन्नति योजना’ में इसके तहत 11 योजनाएं शामिल हैं और ये सभी योजनाएं कृषि और कृषि से संबद्ध क्षेत्र को वैज्ञानिक तथा समग्र तरीके से विकसित करने के लिए हैं, ताकि उत्पादकता, उत्पादन, और उपज पर बेहतर रिटर्न तथा उत्पादन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करके, उत्पादन की लागत को कम करके और कृषि तथा संबद्ध उत्पादों की मार्केटिंग करके किसानों की आय में वृद्धि की जा सके. 11 योजनाएं जो हरित क्रांति के तहत अम्ब्रेला योजनाओं का हिस्सा हैं, वे निम्नलिखित हैं:

1. एमआईडीएच (MIDH) 
हॉर्टिकल्चर के एकीकृत विकास के लिए मिशन – इसका उद्देश्य हॉर्टिकल्चर सेक्टर में व्यापक विकास को बढ़ावा देना, सेक्टर के उत्पादन को बढ़ाना, न्यूट्रिशनल सिक्योरिटी में सुधार करना और हाउसहोल्ड फार्म्स के लिए इनकम सपोर्ट में वृद्धि करना है।
2. एनएफएसएम (NFSM) 
नेशनल फ़ूड सिक्योरिटी मिशन – इसमें एनएमओओपी भी शामिल है – इस राष्ट्रीय मिशन में ऑइल सीड्स और ऑइल पाम शामिल है। इस योजना का उद्देश्य गेहूं की दालों, चावल, मोटे अनाज और वाणिज्यिक फसलों (कमर्शियल क्रॉप्स) के उत्पादन में वृद्धि, उत्पादकता में वृद्धि, उपयुक्त तरीके से क्षेत्र का विस्तार करना, कृषि के स्तर की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को इंडिविजुअल फार्म लेवल पर बहाल करना है। इसका उद्देश्य आयात को कम करना और देश में वनस्पति तेलों और खाद्य तेलों की उपलब्धता में वृद्धि करना है।
3. एनएमएसए (NMSA) 
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (सतत कृषि) के लिए राष्ट्रीय मिशन – सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का उद्देश्य स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है जो विशिष्ट कृषि-पारिस्थितिकी के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके तहत एकीकृत कृषि प्रणाली, उपयुक्त सोईल हेल्थ मैनेजमेंट और रिसोर्स कंजर्वेशन टेक्नोलॉजी में समायोजन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
4. एसएमएसपी 
सीड और प्लांटिंग मटेरियल के लिए सब मिशन – इस सब मिशन का उद्देश्य गुणवत्ता वाले बीज के उत्पादन में वृद्धि करना, खेत से बचाए गए बीजों की गुणवत्ता को उन्नत करना और एसआरआर को बढ़ाना, सीड के मल्टीप्लीकेशन श्रृंखला को मजबूत करना, बीज उत्पादन, प्रसंस्करण में नई विधियों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना, बीज उत्पादन, भंडारण, गुणवत्ता और प्रमाणन आदि के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत और आधुनिक बनाने के लिए परीक्षण, आदि है।
5. एसएमएएम
एग्रीकल्चरल मशीनीकरण के लिए सब मिशन – इसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों और उन क्षेत्रों में जहां कृषि शक्ति की उपलब्धता कम है, कृषि मशीनीकरण की पहुंच को बढ़ाना है, ताकि बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल अर्थव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ को बढ़ावा दिया जा सके।

भारत में हरित क्रांति पर स्टडी नोट्स – Download PDF

उम्मीदवार नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके भारत में हरित क्रांति नोट्स हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं। 

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