Time Left - 10:00 mins

गद्यांश पर हिंदी भाषा की क्विज :01.12.2021

Attempt now to get your rank among 453 students!

Question 1

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
गाँधी जी अनुसार राज्यों की बुनियाद किस पर आधारित है?

Question 2

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, आर्थिक समानता के लिए सत्य है -
1.खाने के लिए पर्याप्त भोजन हो
2.शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी
3.रहने के लिए उचित मकान हो

Question 3

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
महात्मा गाँधी के राज्य की प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों के सम्बन्ध में सत्य कथन है?

Question 4

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
4. गांधी जी के अनुसार, वास्तविक 'स्वराज' की प्राप्ति कब हो सकती है?
1. जब ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर एवं स्वायत्तशासी होंगे।
2. जीवन सादा और सभ्यता शहरी होगी।
3. सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा।
कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर का चयन करें

Question 5

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
गाँधी जी द्वारा पुस्तकों में वर्णित 'आदर्श राज्य' की स्थापना का उद्देश्य क्या था?
1. इसमें सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा।
2. सर्व प्रभुत्व सम्पन्न, संघात्मक तथा धर्म निरपेक्ष राज्य।
3. अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा।

Question 6

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
गद्यांश के अनुसार, व्यक्ति का राज्य से अलगाव जैसी भयावह स्थिति कब उत्पन्न हो सकती है?

Question 7

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
महात्मा गाँधी के अनुसार, किस प्रकार का समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता?

Question 8

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, गद्यांश में ‘जड़’ शब्द का विपर्यायवाची शब्द बताइए।

Question 9

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
परिच्छेद को ध्यानपूर्वक पढ़कर यह बताइए कि श्रीमति जी किस तरह जीवन जी रहीं हैं?

Question 10

निर्देश: नीचे दिए गए गधांश को ध्यानपर्वूक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

महात्मा गाँधी की यह अटूट धारणा थी कि राज्य की प्रकृति सैनिक, पुलिस, जेल, न्यायालय तथा कर वसल करने वाले और नौकरशाह की है। राज्य केन्द्रीकृत, तरीके से और संगठित रूप से हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के पास तो आत्मा है किन्तु राज्य एक आत्मविहीन मशीन की तरह है। यह अपने को हिंसा से अलग नहीं कर पाता क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिंसा पर आधारित है।

वास्तव में गांधी के राज्य का प्रकृति तथा संगठन सम्बन्धी विचारों पर न केवल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दादाभाई नौरोजी, रानाडे तथा गोखले जैसे नरम दलीय और बालगंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय सरीखे गरमदलीय तथा अरविन्द जैसे कट्टर राष्ट्रवादियों का अमिट प्रभाव था, बल्कि उनके चिन्तन पर पश्चिमी यूरोपीय, ब्रिटिश, फ्रेंच, अमेरिका तथा ग्राक विचारधाराओं का स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। गाँधी के राज्य की प्रकृति एवं संगठन में सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों व विचारधाराओं के अभीष्ट लक्षणों का सुव्यवस्थित समावेश तथा सम्मिश्रण मिलता है। गाँधी की मान्यता इस बात पर आधारित थी कि उनके स्वप्नों का आदर्श राज्य उन सभी प्राचीन तथा वर्तमान व्यवस्थाओं से अधिक सुगम्य, सुसंस्कृत तथा श्रेष्टतम हो कि उन्होंने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा में उन सभी तत्त्वों को अंगीकार किया, जिन्हें वे उपयुक्त समझते थे और उन सबकी तिलांजलि दी। जिन्हें वे अनुचित तथा अन्यायपूर्ण मानते थे। 

महात्मा गाँधी ने हिन्द स्वराज, आत्मकथा तथा अन्य पुस्तकों में, उस आदर्श राज्य का आंशिकरूप से वर्णन किया है जिसकी स्थापना का उद्देश्य उन्होंने अपने सामने रखा था। वास्तव में गाँधी एक ऐसा राज्य चाहते थे जो सर्वप्रभुत्वसम्पन्न, संघात्मक तथा धर्मनिरपेक्ष हो। उनके अनुसार व्यक्ति पर राज्य का प्रभाव हानिकारक है उन्हें यह भय था कि राज्य मनुष्य के हितों के संरक्षक के नाम पर उसके अधिकारों को रद्द कर देगा। ऐसे विरोधाभास की स्थिति में व्यक्ति का राज्य से अलगाव हो जाएगा जो कि उनके अनुसार एक भयावह स्थिति होगी। महात्मा गाँधी ने स्वीकार किया है कि राज्य का यह दावा कि वह जनता की सेवा करता है, बिल्कुल निराधार है, जबकि यह स्पष्ट है राज्य द्वारा अच्छा करने के स्थान पर शोषण अधिक किया जाता है। राज्य वास्तव में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत मानवता को सर्वाधिक हानि पहुँचाता है कई विद्वानों के अनुसार गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि सभी व्यक्तियों का सर्वाधिक हित वर्गविहीन राज्यविहीन प्रजातंत्र में ही सम्भव है। गाँधी के राज्य की अवधारणा में एक गाँव स्वैच्छिक रूप में संघ होगा जिसमें कोई सेना, पुलिस, जेल, न्यायालय, विशाल नगर तथा बड़े उद्योग-धन्धे नहीं होंगे। सत्ता का कोई केन्द्रीकरण नहीं होगा। जीवन सादा और सभ्यता देहाती होगी। इस प्रकार ग्राम पूर्णत: आत्मनिर्भर तथा स्वायत्तशासी होगे, तभी वास्तविक स्वराज की प्राप्ति होगी। इसके अन्तर्गत एक पुलिस दल होगा किन्तु उसकी आस्था संहिता में होगी। जेल सुधार गृह की तरह कार्य करेंगे। गाँधी जी का राज्य एक अहिंसक जनतान्त्रिक राज्य होगा। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपना शासक होगा। वे अपने समाजवादी राज्य में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। आर्थिक समानता से अभिप्राय है खाने के लिए पर्याप्त और सन्तुलित भोजन, रहने के लिए उचित मकान और शरीर ढकने के लिए पर्याप्त खादी। वे यह आशा करते थे कि उनके स्वप्नों के अहिंसक प्रजातान्त्रिक राज्य में नागरिक ईमानदार, निर्भीक और आत्मानुशासित होंगे।

महात्मा गाँधी यथार्थवादी थे, वह यह समझ सके कि एक राज्यहीन और वर्गहीन समाज सहज तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक सरकार चूँकि सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, अत: वह पूर्णत: अहिंसक नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था “आज मैं ऐसे स्वर्णयुग की कल्पना नहीं कर सकता, किन्तु में प्रधानत: अहिंसक समाज की सम्भावना में अवश्य विश्वास करता हूँ।"
उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, कौन से तीन तत्वों की बात की गर्इ है?
A) रहना
B) सहना
C) कहना
D) मनाना
  • 453 attempts
  • 1 upvote
  • 7 comments
Dec 2PO, Clerk, SO, Insurance