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Farm Loan Waiver

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 13th, 2023

 कृषि ऋण या तो कृषि उपकरण खरीदने के लिए किसानों द्वारा बैंकों से लिए गए कृषि ऋण या निवेश ऋण के रूप में होते हैं। इस लेख में, हम आपको भारत में कृषि ऋण माफी पर नोट्स प्रदान कर रहे हैं। यह आगामी यूपीएससी प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत में कृषि ऋण माफी

प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां जो क्षेत्र में खेती के लिए प्रतिकूल होती हैं, वे किसानों को वांछित उत्पादकता प्राप्त करने में असमर्थ बनाती हैं जिससे वे बैंकों से लिए गए ऋणों को नहीं चुका पाते हैं। इस कृषि संकट के परिणामस्‍वरूप राज्यों या केंद्र से राहत मिलती है अर्थात ऋणों में छूट या पूर्ण छूट मिलती है। यहां पर केंद्र या राज्य अनिवार्य रूप से किसानों की जिम्मेदारी लेते हैं और उनके ऋण बैंकों को चुकाते हैं। इसके अतिरिक्‍त अधिकांशत: छूट चयनात्मक होती हैं अर्थात केवल कुछ विशेष प्रकार के ऋण, किसानों की श्रेणी या ऋण स्रोत छूट योग्य हो सकते हैं। वर्षों में कृषि उत्पादन और उत्पादकता में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद कृषि ऋणग्रस्तता में बहुत सुधार नहीं हुआ है।

भारतीय कृषि की विशेषता

  • भारतीय कृषि, कम उत्पादकता और खंडित खेतों द्वारा खराब हुई है।
  • भारत में 85 प्रतिशत कृषि भूमियां 5 एकड़ से कम की हैं, जिनमें से 65 प्रतिशत 1 एकड़ से कम की हैं।
  • भारत में 50 प्रतिशत से अधिक खेतों के लिए सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है।
  • भारत में औसत कृषि आय, कृषकों की आवश्‍यक्‍ताओं को पूरा करने हेतु पर्याप्‍त नहीं है।
  • बाजार के उतार-चढ़ाव और मौसम के जोखिमों के कारण स्थिति अधिक खराब हो जाती है।
  • नवीनतम एन.एस.एस.-एस.ए.एस. (स्थिति मूल्यांकन सर्वेक्षण पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) ने कृषि क्षेत्र में कुछ अन्य समस्याओं को इंगित किया है:
  • लगभग 15 फीसदी कृषि परिवारों में फसल उत्पादन से नकारात्मक रिटर्न प्राप्‍त हो रहे हैं।
  • यद्यपि गैर-कृषि आय, कुल किसान आय का 40 प्रतिशत तक पहुंच से बहुत कम है क्यों कि 40 प्रतिशत किसानों ने ऐसे स्रोतों से नगण्य आय की सूचना दी है।

इनके अतिरिक्‍त, भारतीय कृषि की सबसे प्रमुख विशेषता किसानों का ऋण-भार है। जो यह सवाल उठाता है कि क्या भारतीय किसानों के लिए ऋण माफी का इस्तेमाल रामबाण के रूप में किया जाना चाहिए। भारतीय संदर्भ में, ऋण माफी बैंकों द्वारा किसानों को दिए गए ऋणों को माफ करना है। भारत में ऋण माफी का काफी लंबा इतिहास है।

भारत में इस प्रकार की निरंतर ऋण माफी के कारण:

  • प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के कारण बड़े पैमाने पर फसलों का खराब होना।
  • किसानों को इस प्रकार आर्थिक राहत प्रदान करना जिससे कि वे अगले सीजन की फसलों के लिए अपने पैसे और श्रम का निवेश कर सकें। इसे डेब्‍ट-हैंग सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है, जिसके अनुसार छूट किसानों को भविष्‍य में बेहतर उत्पादकता की सुविधा प्रदान करेगी।
  • यह बैंकों के लिए संरचनात्मक सुधारों का एक हिस्सा हो सकता है जहां सरकार ऋण माफ करती है जिससे कि बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार किया जा सके और वे अधिक प्रभावी ढंग से ऋण दे सकें।
  • लेकिन इसे अधिकांशत: चुनावों से पहले मतदाताओं को खुश करने के लिए एक लोकलुभावन कदम माना जाता है।

पूर्व में राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा शुरू की गई ऋण माफी योजनाएँ:

वर्ष

योजना

शामिल लागत

1990

पहली राष्‍ट्रव्‍यापी ऋण माफी

10,000 करोड़ रूपए

2008

2009 के आम चुनावों के ठीक पहले कृषि ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना

52,000 करोड़ रूपए

2017

उत्‍तर प्रदेश की कृषि ऋण माफी योजना

36,000 करोड़ रूपए

 ये ऋणमाफी कितनी प्रभावी थी? 

2008 राष्ट्रव्यापी- कैग ऑडिट में पाया गया है कि योजना में गंभीर खामियां थीं, जिसमें लाभार्थियों की पहचान करने में खराब सटीकता के साथ-साथ प्रतिपूर्ति के दावों की सटीकता भी शामिल थी।

2017 उत्‍तर प्रदेश की ऋणमाफी- ऋणमाफी के बाद किसान संकट कम होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। इसके अतिरिक्‍त, उत्‍तर प्रदेश सरकार ने 36,000 करोड़ रुपये की लागत का भुगतान किया है, जो राज्य की कृषि के लिए 8,000 करोड़ रुपये के बजट आवंटन से काफी अधिक था।

ऋणमाफी से संबंधित समस्याएं

  • यह किसानों की संपूर्ण समस्‍याओं ​​को कवर नहीं करता है क्यों कि एन.एस.एस.-आई. एंड डी. (निवेश और ऋण पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) के निष्‍कर्ष बताते हैं कि लगभग 40 प्रतिशत ऋणी कृषि परिवार विशेष रूप से ऋण देने के गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण लेते हैं। इसके अतिरिक्त, जो किसान अपनी बचत से निवेश करते हैं, उन्हें इन योजनाओं से बाहर रखा जाता है भले ही वे बाजार और मौसम के जोखिमों के समान संवेदनशील क्‍यों न हों।
  • प्रदान की गई राहत केवल आंशिक प्रकृति की होती है क्यों कि एक कृषक के संस्थागत ऋण के लगभग आधे ऋण गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए होते हैं।
  • कई मामलों में, एकल परिवार में कई ऋण होते हैं जो या तो अलग-अलग परिवार के सदस्यों के नाम पर या विभिन्न संस्थागत स्रोतों से ऋण लेते हैं। इस प्रकार, वे कई ऋण छूटों के हकदार होते हैं जो लीकेज का कारण है।
  • कर्ज माफी में भूमिहीन कृषि मजदूरों को बाहर कर देते हैं, जो कृषकों से भी कमजोर होते हैं।
  • यह बैंकों के लिए महंगा साबित होता है और उनकी ऋण क्षमता को गंभीरता से प्रभावित करता है और ऋण संस्कृति को नुकसान पहुँचाता है। लंबे समय में, इसके परिणाम बैंकिंग व्यवसाय के लिए गंभीर हो सकते हैं, विशेष रूप से ऐसे समय में जब कृषि एन.पी.ए. के साथ ही समग्र एन.पी.ए. पूरे देश में बढ़ रहे हों।
  • समावेश, बड़े पैमाने पर अपवर्जन और समावेशन त्रुटियों के लिए असुरक्षित है। यह 2008 की राष्ट्रव्यापी ऋणमाफी योजना के कैग ऑडिट से स्पष्ट होता है।

उल्लिखित कमियों के अतिरिक्‍त, इन योजनाओं के विकास व्यय पर गंभीर प्रभाव हैं। ऋणों को माफ करने के लिए धन के विचलन के कारण सरकार, कृषि बुनियादी ढांचे और अन्य विकास गतिविधियों में सुधार करने हेतु निवेश करने में असमर्थ हो जाती है जो संभवतः संरचनात्मक समस्याओं को संबोधित कर सकती हैं और किसानों के साथ-साथ पूरे देश के लिए बेहतर विकास के अवसर पैदा कर सकती हैं।

कृषि संकट और ऋणग्रस्तता हेतु भविष्‍य के और स्थायी समाधान

  • किसानों की कृषि उत्पादकता और आय बढ़ाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले उर्वरक, एच.वाई.वी. (उच्च उपज किस्म) के बीज, सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप आदि प्रदान करने के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप
  • सिंचाई के क्षेत्र में वृद्धि करना और अन्य विकास परियोजनाओं को समय पर लागू करना
  • उच्च उपज और उच्च मूल्य वाली फसलों की दिशा में फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए
  • बढ़ते हुए कृषि एन.पी.ए. में वृद्धि से बचने के लिए ऋण देने वाली संस्थाएं प्रभावी और पारदर्शी होनी चाहिए।
  • किसानों की फसल विविधीकरण, फसल चक्रण, फसलों की पर्यावरण संगत पसंद, मृदा स्वास्थ्य आदि जैसी अच्छी गुणवत्ता की जानकारी तक पहुँच होनी चाहिए जिससे कि वे उन फसलों के बारे में सूचित निर्णय ले सकें जिन्‍हें वे खेती करने के लिए चुनते हैं।
  • किसानों को गैर-कृषि गतिविधियों जैसे डेयरी, मछली पालन, पशु पालन आदि करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो अधिक पारिश्रमिक हैं और किसानों को आय सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार को गैर-कृषि गतिविधियों के लिए बुनियादी ढाँचे का भी विस्‍तार करना चाहिए और किसानों को संरचनात्मक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  • भंडारण की सुविधा, खराब होने वाली वस्तुओं के लिए कोल्ड स्टोरेज इत्यादि जैसी बेहतर बैकेंड ढांचो का निर्माण करना चाहिए और साथ ही इसे बाजार में आगे के लिंकेज से जोड़ना चाहिए जिससे कि किसानों को उनकी उपज की बेहतर खोज मिल सके।
  • ई-एन.ए.एम. का कार्यान्वयन प्रभावी ढंग से किया जाना चाहिए। चूंकि कृषि, एक राज्य का विषय है इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र, राज्यों को ई-एन.ए.एम. के लाभ में शामिल होने के लिए कहे। अब भी, अधिकांश राज्य ई-एन.ए.एम. को लागू करने के इच्छुक नहीं हैं।
  • कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण आयाम भूमि है। सरकार को भूमिहीन मजदूरों की समस्याओं को दूर करने के लिए पिछले भूमि सुधारों के लक्ष्य को संबोधित करना चाहिए। अनुबंध खेती को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, मॉडल अनुबंध कृषि कानून, इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • सरकार को कृषि वस्तुओं की खरीद क्षमता में सुधार करना चाहिए जिससे कि पूरे भारत में किसानों को समान लाभ मिल सके। अब तक, सरकार द्वारा एम.एस.पी. (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर की गई खरीद केवल कुछ राज्यों में केंद्रित है।
  • सरकार को कृषि उपज के लिए पारिश्रमिक मूल्य प्रदान करने हेतु स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करना चाहिए।
  • फसल बीमा प्रणालियों में सुधार करना चाहिए और मूल्य संवर्धन के लिए वैज्ञानिक कृषि प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करना चाहिए।

कथात्‍मक स्पष्ट है कि कृषि, ग्रामीण युवा आबादी को संलग्‍न करने में सक्षम होने के लिए पर्याप्त रूप से पारिश्रमिक नहीं है। अत: नीति में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना की रायथुबंधु योजना उस स्थिति से बचने के लिए संभावित उत्तर के रूप में प्रशंसा प्राप्त कर रही है जब ऋण छूट की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्‍त, 1978 के चीनी कृषि सुधार जैसे वैश्विक अच्छे अभ्‍यासों से अंतर्दृष्टि प्राप्त की जानी चाहिए। जहां, खेत की कीमतों को कम कर दिया गया था और सुधारों के लागू होने के बाद सिर्फ छह वर्षों में गरीबी का स्तर आधा हो गया था। इस प्रकार, कृषि संकट को दूर करने के लिएसरकार द्वारा एक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए और राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए एक चाल के रूप में ऋण-माफी योजनाओं का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए।

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