Study Notes भारतेन्दु युग के निबंध

By Mohit Choudhary|Updated : August 31st, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी निबंधइसे 4 युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग  में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी निबंध के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से भारतेन्दु युग के निबंधों से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।

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भारतेन्दु युग के प्रमुख निबन्धों की समीक्षा 

भारतेन्दु हरिशचन्द्र - दिल्ली दरबार दर्पण

  • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा 1877 ई. में 'दिल्ली दरबार दर्पण' लिखा गया। यह निबन्ध भारतेन्दु जी के भ्रम का एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है। दरअसल भारतेन्दु जी ने जहाँ-जहाँ भी जातीय प्रगति होने की हल्की सी भी संभावना देखी, उसकी प्रशंसा में अपनी लेखनी चलाई।
  •  महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र भी एक ऐसी ही मरीचिका के समान था, जिसे भारतेन्दु जी सच मान बैठे और इसी में भूलकर राजराजेश्वरी का गुणगान किया। 
  • दिल्ली दरबार दर्पण में एक जगह ये लिखते हैं- "आजकल ऐसी राजनीति के कारण जिसमें जब जाति और धर्म के लोगों की समान रक्षा होती है, श्रीमती की हर एक प्रजा अपना समय निर्विघ्न सुख से काट सकती है। सरकार के समभाव के कारण हर आदमी बिना किसी रोक-टोक के अपने धर्म के नियमों और रीतियों को बदल सकता है।”
  • भारतेन्दु जी के लिए अंग्रेज़ी राज इसलिए श्रेष्ठ था कि उसमें सभी धर्मों, जातियों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप में विकास करने का अधिकार प्राप्त था और देश तथा जाति की प्रगति के दसों द्वार मानों खुल गए थे।

भारतेन्दु हरिशचन्द्र - भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? 

  • भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? यह निबन्ध भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी द्वारा दिसम्बर, 1984 में बलिया के ददरी मेले के अवसर पर देशोपकारिणी सभा में भाषण देने के लिए लिखा गया था। 
  • इसमें इन्होंने कुरीतियों और अन्धविश्वासों को त्यागकर अच्छी-से-अच्छी शिक्षा प्राप्त करने, उद्योग धन्धों को विकसित करने, सहयोग तथा एकता पर बल देने तथा सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है। 
  • भारतेन्दु जी ने अपने इस निबंध में अंग्रेजों का उदाहरण देते हुए कहा कि - विलायत में मालिक जब गाड़ी से उतरकर अपने किसी दोस्त से मिलने जाता है, तो उसी समय कोचवान गद्दी के नीचे से अखबार निकाल कर पढ़ने लगता है, परन्तु भारत में इतनी देर में कोचवान हुक्का पिएगा या व्यर्थ की बातों में अपना समय व्यतीत करेगा। 
  • लेखक ने भारतीयों में विद्यमान आलस्य की अधिकता को ही उनकी उन्नति के मार्ग में बाधक माना है। 
  • भारतेन्दु जी भारतीयों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि 'उठो और जागो' तथा जो तुम्हारी उन्नति के मार्ग में बाधक हैं उन्हें निकालकर फेंक दो। 
  • अपने निबन्ध में उन्होंने सब उन्नतियों का मूल धर्म को बताया है और कहा है कि सबसे पहले धर्म की ही उन्नति करनी उचित है। भारतेन्दु कल्याणकारी भावना को ध्यान के अनुसार, जब प्रत्येक क्षेत्र में इसी रखकर कार्य किया जाएगा, तभी सभी की रूप से उन्नति होगी। धर्म का अर्थ उस आचरण से हैं, जो समाज अथवा राष्ट्र के कल्याण को ध्यान में रखकर किया जाए। 
  • भारतेन्दु जी भारतीयों को विदेशी वस्तुओं के उपयोग की उपेक्षा करने तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का सुझाव देते हैं। 
  • राष्ट्र के विकास के लिए अपनी भाषा तथा अपने राष्ट्र में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग अति आवश्यक है, इसलिए अपने देश को स्वावलंबी राष्ट्र के रूप में प्रगतिशील बनाने के लिए स्वदेशी वस्तुओं और अपने ही देश की भाषा का प्रयोग करना होगा। इसी से भारतवर्ष की उन्नति हो सकेगी।

प्रतापनारायण मिश्र - शिवमूर्ति

  • प्रतापनारायण मिश्र कृत निबंध 'शिवमूर्ति' भारतेन्दु युग का प्रतिनिधि गद्य रूप है। यह 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में लिखा गया था। इसमें भारतीय मनीषियों का जनजागरण, संस्कृति का उप-पाठ निहित है साथ ही कला का पाठ भी। इसमें प्रतीकों के माध्यम से बड़े सरल और सहज ढंग से इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत का शिक्षित वर्ग भारतीयता, भारतीय संस्कृति और भारतीय प्रतीकों के प्रति कितना उदासीन है।
  • 'शिवमूर्ति' प्रतीक है तथा शिवमूर्ति के माध्यम से लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्यों के बीच बैर नहीं होना चाहिए। इस निबन्ध में आस्तिकता का पाठ भी दृष्टव्य है। 
  • लेखक का कहना है कि- "हमारा मुख्य विषय शिवमूर्ति है और वह विशेषतः शैवों के धर्म का आधार है।" 
  • प्रतापनारायण मिश्र समन्वय के पक्षधर हैं। वे अन्धी आस्था के स्थान पर तर्क का पाठ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- "यदि धर्म से अधिक मतवाले पन पर श्रद्धा हो तो अपने प्रेमाधार भगवान भोलेनाथ को परम वैष्णव एवं गंगाधर कहना छोड़ दीजिए, नहीं तो सच्चा शैव वही हो सकता है, जो वैष्णव मात्र को अपना देवता समझे- इससे शैवों का शाक्तों के साथ विरोध अयोग्य है, हमारी समझ में तो आस्तिक मात्र को ही किसी से द्वेष बुद्धि रखना पाप है, क्योंकि सब हमारे जगदीश जी की ही प्रजा हैं, सब हमारे खुदा ही के बन्दे हैं, इस नाते सभी हमारे भारतीय बन्धु हैं।"
  •  विश्वबंधुत्व का यह दर्शन लोकतांत्रिक और सह अस्तित्व का दर्शन है, जिसकी आज भी दुनिया को सबसे अधिक आवश्यकता है। इस निबंध में मिश्र जी ने पहले मूर्तियों की चर्चा की, बाद में धातुओं की, जिससे मूर्तियों का निर्माण किया जाता है, फिर मूर्तियों के रंगों की और फिर मूर्तियों के आकार की। पूरा निबंध अपने आप में सुगठित है। 
  • सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि 'शिवमूर्ति' निबंध के माध्यम से लेखक भगवान शिव का सहारा लेकर देशवासियों को भाईचारे व विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाना चाहते हैं।

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'भारतेन्दु युग के निबंध' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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