छायावाद की समय सीमा
- छायावाद का विकास द्विवेदीयुगीन कविता के पश्चात् हुआ। सामान्यतः यादी काव्य की सीमा 1918 में 1936 ई. तक मानी जाती है।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी छायावाद का प्रारम्भ 1918 ई. से माना है। 1918 ई. में जयशंकर प्रसाद को कृति 'झरना' प्रकाशित हो चुकी थी तथा निराला की कविता 'जूही की कली' 1916 ई. मे प्रकाशित हो चुकी थी।
- प्रसाद की कामायनी 1936 में प्रकाशित हुई तथा 1936 ई. में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर छायावाद की अन्तिम सीमा 1936 मानना उपयुक्त है।
विभिन्न विद्वानों के अनुसार छायावाद की परिभाषा
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार "छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहां उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता है अर्थात् यहाँ कवि उस अनन्त और को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है......... छायावाद का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है। "
- डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, "छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। यह एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है, जीवन के प्रति विशेष भावनात्मक दृष्टिकोण है।”
- डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, 'परमात्मा को आत्मा में आत्मा की छाया परमात्मा में पड़ने लगती है, तब छायावाद की सृष्टि होती है।"
- जयशंकर प्रसाद के अनुसार, “कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुन्दरता के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी, तब हिन्दी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौन्दर्यमयी प्रतीक विधान तथा उपचार के साथ स्वानुभूति की विवृत्ति छायावाद को विशेषताएं है।"
- आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के अनुसार, 'मानव तथा प्रकृति के सूक्ष्म किन्तु व्यक्त सौन्दर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव छायावाद की सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।"
- महादेवी वर्मा के अनुसार, “छायावाद तत्वतः प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीत है।"
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, "छायावाद के मूल में पाश्चात्य रहँस्यवादी भावना अवश्य थी। इस रहस्यवाद की मूल प्रेरणा अंग्रेज़ी की रोमाण्टिक भावधारा की कविता से प्राप्त हुई थी।”
उपरोक्त विद्वानों की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि -
- छायावाद में स्थूलता के स्थान पर सूक्ष्मता दिखाई देती छायावादी काव्य में रहस्यवादी प्रवृत्ति विद्यमान है।
- छायावाद प्रेम, प्रकृति व सौन्दर्य का काव्य है।
- छायावाद में स्वानुभूति की प्रधानता है।
- छायावादी कविता अंग्रेज़ी रोमांटिक काव्य धारा से प्रभावित है।
- छायावाद में सांस्कृतिक चेतना, मानवतावादी दृष्टिकोण की प्रमुखता है।...
छायावाद की प्रवृत्तियां:
- आत्म अभिव्यक्ति
- सौंदर्य चित्रण
- नारी का उदात्त रूप में चित्रण
- प्रकृति चित्रण
- दुःख की अभिव्यक्ति
- रहस्यवाद
- कल्पनाशीलता
- बिम्ब योजना
- प्रतीक योजना
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, आधुनिक काल (छायावाद युग) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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