- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बिहारीलाल को रसवादी माना है जबकि डॉ० नगेन्द्र ने ध्वनिवादी स्वीकार किया है। श्री राधाचरण गोस्वामी ने बिहारी को 'पीयूषवर्षी मेघ' की उपमा दी है।
- बिहारीलाल का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नलिखित है-
जन्म-मृत्यु ( ई० ) | जन्मस्थान | पिता | गुरु | सम्प्रदाय | आश्रयदाता |
1595-1663 | गोविन्दपुर | केशवदास | नरहरिदास | निम्बार्क | राजा जय सिंह |
- बिहारीलाल की एकमात्र रचना 'बिहारी सतसई' दोहा छंद में रचित है। इसकी भाषा परिनिष्ठित साहित्यिक ब्रजभाषा है।
- बिहारीलाल की 'सतसई' की प्रशंसा में किसी कवि ने निम्नलिखित पंक्ति लिखी है-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें, बेधै सकल सरीर ||
- डॉ० जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार, "यूरोप में बिहारी सतसई' के समकक्ष कोई रचना नहीं है। "
- 'बिहारी सतसई' पर हिन्दी में 50 से अधिक टीका प्राप्त है। बिहारीलाल के पुत्र कृष्ण लाल कवि ने बिहारी सतसई की टीका सर्वप्रथम सवैया छंद में ब्रजभाषा में लिखी।
- बिहारी सतसई का अन्य भाषा में किया गया अनुवाद निम्नलिखित है-
अनुवादक | अनुदित नाम | भाषा |
पंडित परमानंद | श्रृंगार सप्तशती | संस्कृत |
मुंशी देवी प्रसाद 'प्रीतम’ | गुलदस्त बिहारी | उर्दू |
- बिहारीलाल के समस्त दोहों की संख्या 719 है। किन्तु जगन्नाथ दस रत्नाकर इनके दोहों की संख्या 713 माना है।
- 'बिहारी सतसई' पर सर्वाधिक प्रभाव निम्न कवियों का पड़ा है-
कवि | रचना | भाषा |
अमरुक | अमरुक शतक | संस्कृत |
हाल (शालिवाहन) | गाथा सप्तशती | प्राकृत |
गोवर्धनाचार्य | आर्या सप्तशती | संस्कृत |
- संस्कृत के आचार्य बलदेव उपाध्याय ने लिखा है, "हाल 'गाथा' को, गोवर्धन 'आर्या' के तथा बिहारी 'दोहा' के बादशाह हैं। "
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बिहारी के सन्दर्भ में निम्न बातें लिखी हैं-
(1) शृंगार रस के ग्रन्थों में जितनी ख्याति और जितना मान 'बिहारी सतसई' का हुआ उतना और किसी का नहीं। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।
(2) यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है।
(3) जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्ण रूप से वर्तमान थी।
(4) बिहारी की रस व्यंजना का पूर्ण वैभव उनके अनुभवों के विधान में दिखाई पड़ता है।
(5) भावों का बहुत उत्कृष्ट और उदात्त स्वरूप बिहारी में नहीं मिलता। कविता उनकी शृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती नीचे ही रह जाती है।
- वृन्द का पूरा नाम वृंदावन था। इनका जन्म मेडवे में हुआ तथा इनके पिता का नाम श्री रूप था।
- वृन्द के आश्रयदाता औरंगजेब तथा किशनगढ़ के महाराज राजसिंह थे।
- वृन्द की प्रमुख रचनाएँ कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं-
रचना | वर्ष (ई०) | विषयवस्तु |
बारहमासा | 1668 | बारहों महीनों का वर्णन। |
भाव पंचाशिका | 1686 | श्रृंगार के विभिन्न भावों का वर्णन। |
नयन पचीसी | 1686 | नेत्रों द्वारा प्रकट विभिन्न भावों का वर्णन। |
पवन पचीसी | 1691 | षड्ऋतु का छप्पय छंद में वर्णन। |
श्रृंगार शिक्षा | 1691 | आभूषण एवं शृंगार के साथ नायिकाओं का वर्णन। |
यमक सतसई | 1706 | 715 छंदों में यमक अलंकार का वर्णन। |
- राम सहाय 'भगत' का 'ककहरा' जायसी की 'अखरावट' की शैली में रचित है।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, रीतिकाल (रीतिसिद्ध कवि) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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