Study Notes on रीतिमुक्त कवि

By Mohit Choudhary|Updated : December 4th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी साहित्य का रीतिकाल। इस विषय की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए  हिंदी साहित्य का रीतिकाल के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। रीतिकाल (रीतिकाल की काव्य धाराएं) से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।           

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  • आलम जाति के ब्राह्मण थे किन्तु शेख नाम की रंगरेजिन से विवाह कर मुसलमान हो गए।
  • आलम औरंगजेब के दूसरे बेटे बहादुरशाह मुअज्जम के आश्रम में रहते थे।
  • आलम का कविता काल सन् 1683 से 1703 तक माना जाता है। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्न हैं-

(1) आलमकेलि (2) माधवानलकामकंदला, (3) सुदामा चरित (4) स्वाम सेनही ।

  • आलम के विषय में आचार्य शुक्ल ने लिखा है- 

(1) “ये प्रेमोन्मत्त कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार रचना करते थे। इसी से इनकी रचनाओं में हृदय तत्व की प्रधानता है। 'प्रेम की पीर' या 'इश्क का 'दर्द' इनके एक-एक वाक्य में भरा पाया जाता है।”

(2) प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना 'रसखान' और 'घनानन्द' की कोटि में ही होनी चाहिए।

  • आचार्य रामचन्द्र ने घनानंद के विषय में लिखा है, "ये साक्षात रसमूर्ति और ब्रजभाषा काव्य के प्रधान स्तंभों में हैं।" 
  • घनानंद का संक्षिप्त जीवनवृत्त निम्न है- 

जन्म-मृत्यु ( ई०)

जन्मस्थान

मृत्यु स्थान

सम्प्रदाय

प्रेयसी

आश्रयदाता

1689-1739

बुलंदशहर

वृन्दावन

निम्बार्क

गणिकासुजान

मुहम्मदशाह

  • घनानन्द की प्रमुख काव्य कृतियाँ निम्नांकित हैं- (1) सुजान सार, (2) इश्कलता, (3) विरहलीला, (4) वियोगबेलि. (5) कोकसार (6) कृपाकंद. (7) रस केलि वल्ली, (8) यमुनायश 
  • इनकी 'विरह लीला' ब्रजभाषा में है किन्तु फारसी के छंद में है। 
  • घनानन्द के संदर्भ में आचार्य शुक्ल की निम्न पंक्तियाँ महत्वपूर्ण हैं- 

(1) इनकी सी विशुद्ध, सरस और शक्तिशालिनी ब्रजभाषा लिखने में और कोई समर्थ नहीं हुआ। विशुद्धता के साथ प्रौढ़ता और माधुर्य भी अपूर्व है। 

(2) प्रेम की पीर ही को लेकर इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं। 

(3) प्रेम की अनिर्वचनीयता का आभास घनानंद ने विरोधाभासों के द्वारा दिया है। 

(4) घनानंदजी उन विरले कवियों में हैं जो भाषा की व्यंजकता बढ़ाते हैं। अपनी भावनाओं के अनूठे रूपरंग की व्यंजना के लिए भाषा का ऐसा बेधड़क प्रयोग करने वाला हिन्दी के पुराने कवियों में दूसरा नहीं हुआ। भाषा के लक्षण और व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी परख इन्हीं को थी।

  • रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है, "रीतिकाल की बौद्धिक विरहानुभूति, निष्प्राणता और कुंठा के वातावरण में घनानंद की पीड़ा की टीस सहसा ही हृदय को चीर देती है और मनसहज ही मान लेता है कि दूसरों के लिए किराये पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में ही रो रहा है।"
  • बोधा का वास्तविक नाम बुद्धिसेन था। पन्ना नरेश खेत सिंह ने बुद्धिसेन का उपनाम बोधा किया था। पन्ना के दरबार की सुभान (सुबहान) नाम की एक गणिका से बोधा प्रेम करते थे।
  • बोधा की प्रमुख रचनाएँ हैं- (1) विरह वारीश, (2) इश्कनामा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तीन ठाकुर की चर्चा की है- (1) असली वाले प्राचीन ठाकुर, (2) असनी वाले दूसरे ठाकुर और (3) ठाकुर बुन्देल खंडी। 
  • रीतिकाल की रीतिमुक्त काव्यधारा से ठाकुर बुन्देलखण्डी का सम्बन्ध है। उनका मूल नाम लाला ठाकुरदास था।
  • ठाकुर के आश्रयदाता जेतपुर नरेश राजा केसरी सिंह तथा उनके पुत्र राजा पारोळत थे। ठाकुर की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं- (1) ठाकुर उसक, (2) ठाकुर शतक 
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ठाकुर के सम्बन्ध में लिखा है-

(1) ठाकुर बहुत ही सच्ची उमंग के कवि थे। इनमें कृत्रिमता का लेश नहीं है। न तो कहीं व्यर्थ का शब्दाडम्बर है, न कल्पना की झूटो उड़ान और न अनुभूति के विरुद्ध भावों का उत्कर्ष। 

(2) ठाकुर प्रधानतः प्रेम निरूपक होने पर भी लोक व्यवहार के अनेकांगदर्शी कवि थे।

  • द्विजदेव (महाराज मानसिंह) अयोध्या के महाराज थे। 
  • द्विजदेव प्रमुख रचनाएँ हैं- (1) शृंगारलतिका, (2) शृंगार बत्तीसी ।

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, रीतिकाल (रीतिमुक्त कवि) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

Thank you

Team BYJU'S Exam Prep.

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