गांधीवादी दर्शन
- महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में हुआ। वह भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख राजनीतिक व आध्यात्मिक नेता थे।
- गांधीवाद दर्शन महात्मा गांधी के विचार पद्धति का ही नाम है। विद्वानों के अनुसार, गांधीवाद का अर्थ व्यक्ति तथा समाज के हित से है। ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करने वाले भारतीय आस्तिक के ऊपर जिस प्रकार के दार्शनिक संस्कार अपना प्रभाव डालते हैं, वैसा ही प्रभाव गांधीजी के विचारों में है। वे अपने राष्ट्र के ही मूलभूत दार्शनिक तत्त्वों में अपनी आस्था प्रकट करके अग्रसर होते हैं और उसी से उनकी विचारधारा प्रवाहित होती है।
- गांधीजी अपने विचारों को किसी विचार के अन्तर्गत बाँधकर रखना पसन्द नहीं करते थे। उन्हें गांधीवाद नाम खटकता था। वे बार-बार कहते थे कि मुझे न कोई वाद चलाना है न सम्प्रदाय। मैं तो एक सत्य को जानता हूँ और सत्य की बातें करता हूँ।
- वास्तव में गांधीवाद “जीवन का सम्पूर्ण सर्वांगीण विज्ञान है।" गांधी इरविन समझौते के बाद स्वयं गांधीजी ने कहा कि “गांधी मर सकता है, पर गांधीवाद जीवित रहेगा।" इस प्रकार स्वयं गांधीजी अपने विचारों को 'गांधी विचार' अनजाने में ही सही पर मान बैठे।
गांधीवादी दर्शन व उसके मूल्य
- गांधीजी ने देश-विदेश के विद्वानों व चिन्तकों के विचारों पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने धार्मिक ग्रन्थों, दर्शन ग्रन्थों, आध्यात्मिक साधकों के विचारों पर चिन्तन मनन के पश्चात् जिस विचारधारा का निरूपण किया, वह आध्यात्मिक जीवन का दर्शन है।
- उन्होंने सत्य, अंहिसा, धर्म, आत्मबल, आध्यात्म, मानवता और नैतिकता जैसे मूल्यों को अपने जीवन में चरितार्थ किया। यही मूल्य आगे चलकर गांधीवाद दर्शन कहलाए। गांधीजी अपने जीवन मूल्यों को लेकर सदैव सजग रहे।
- वे कहते हैं- "संसार का निर्माण शुभ और अशुभ जड़ चेतन को लेकर हुआ है, इस निर्माण का उद्देश्य यह है कि सत्य और अहिंसा सदैव अजेय रहे।” वह बाहरी लोक से भाव लोक को अधिक सत्य मानते थे।
- गांधीजी मानते थे कि हर मनुष्य में गुण व अवगुण दोनों विद्यमान है, यदि मनुष्य में पशुता है तो में देवत्व भी है।
- गांधीवादी बुनियादी तत्त्वों में से सत्य (जिसका अर्थ सच्चाई है), को सर्वोपरि माना जाता है, वह मानते थे कि सत्य ही किसी भी राजनीतिक व सामाजिक संस्था की धुरी होना चाहिए। वे अपने सभी निर्णयों से पहले सत्य के सिद्धांतों का परिपालन अवश्य करते थे। सत्य, अहिंसा, मानवीय स्वतन्त्रता, समानता एवं न्याय पर उनकी निष्ठा को बखूबी समझा जा सकता है।
- गांधीवाद दर्शन के मूल आधार सत्य और अहिंसा हैं। सर्वोदय, रामराज्य और सत्याग्रह गांधी इन तीन आदर्शों को लेकर चले। वह सत्य और अहिंसा के मार्ग को ही सर्वोत्तम समझते थे।
- गांधीवाद की व्याख्या करते हुए रामनाथ सुमन जी लिखते हैं "गांधीवाद उस सूर्य की भाँति है जिसे सब अपना सकते हैं और एक परिपूर्ण तत्त्व ज्ञान है। यह नैतिक है और यह राजनीतिक भी है, धार्मिक भी है, आध्यात्मिक भी है। और आर्थिक भी, क्योंकि यह जीवन न्यायी है, जीवन के प्रत्येक स्तर और सम्पूर्ण मानव जाति को स्पर्श करता है।"
- श्री ग्रेग के शब्दों में "वह सभी वर्गों के बीच एक सामान्य स्नेह सूत्र पैदा करता है। " (It provides a common between all groups)
- गांधीवादी दर्शन में सेवाभाव प्रमुख हैं और सत्य व अहिंसा गांधीवाद के प्राण हैं। वह सत्य को ईश्वर के समान मानते हैं और सभी को इसे आचरण में लेने का अनुग्रह करते हैं।
उपसंहार
गांधीजी में युग-युग से मनुष्यता के विकास द्वारा प्रदर्शित आदर्शों का प्रादुर्भाव समवेत रूप में ही दिखाई देता है, उनमें भगवान् राम की मर्यादा, श्रीकृष्ण की अनासक्ति, बुद्ध की करुणा, ईसा का प्रेम एक साथ ही समाविष्ट दिखाई देते हैं। यदि उनके ये सभी आदर्श व्यक्ति एवं सत्ता धारी लोग अपनाएँ तो समाज सर्वोदय की ओर अग्रसर होगा। सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा, प्रेम, करुणा, सेवाभाव विद्यमान होगा।
Click Here to know the UGC NET Hall of Fame
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'गांधीवादी दर्शन' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
Sahi Prep Hai To Life Set Hai!!
Comments
write a comment