ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद
- वर्ष 1933 में प्रसाद द्वारा रचित 'ध्रुवस्वामिनी' अंतिम नाटक है। इस नाटक का कथानक भी इतिहास से लिया गया है। इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है।
- प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव जीवन का स्वरूप दिखाया है। रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है तथा संवाद भी लघु व पात्रों के अनुकूल हैं।
- भाषा भी पात्रों के अनुकूल है, जैसे कि ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। नाटक में अनेक स्थलों पर अर्द्धवाक्यों की योजना है, जो नाटक में सौन्दर्य तथा गहरे अर्थ की सृष्टि करती है।
नाटक के प्रमुख पात्र
- ध्रुवस्वामिनी एक जाग्रत, चेतनशील और निर्भीक, प्रधान नारी पात्र है।
- मन्दाकिनी नाटक की काल्पनिक पात्र है, जो अद्भुत राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत, न्याय की समर्थक और नारी के अधिकारों के प्रति जागरूक है।
- चन्द्रगुप्त नाटक का नायक तथा प्रमुख पात्र है। यह अधिकांश घटनाओं का केन्द्र बिन्दु तथा अन्तिम फल का भोक्ता है। यह कर्त्तव्यनिष्ठ साहसी, वीर, कुल मर्यादा का रक्षक तथा स्वाभिमानी युवक है।
- रामगुप्त खलनायक पात्र है, जो मद्यपान करने वाला, विलासी व षड्यन्त्रकारी युवक है।
अंजो दीदी - उपेन्द्रनाथ अश्क (1954)
- अंजो दीदी में मुख्य पात्र ही अंजलि है। वह चाहती है कि जीवन अनुशासित रहे। वह अनुशासित जीवन के लिए एकदम दृढ़ रहती है। उसके हठी स्वभाव के कारण पूरे परिवार के सुख का नाश हो जाता है और स्वयं भी व्यक्तिगत हास का कारण बनती है।
- नाटककार 'अश्क' जी का विचार है कि अहं की भावना परम्परागत प्रवृत्ति है, जो अपनी मनोवृत्तियों को दूसरों पर जबरदस्ती डालती है। वह न तो अपनी उन्नति करती है, न ही दूसरों की उन्नति होने देती है। अंजलि को यह भावना 'अंजो दीदी' अपने नानाजी से मिलती है।
नाटक के प्रमुख पात्र
- अंजलि नाटक की मुख्य पात्र है, जो अनुशासित जीवन के लिए एकदम दृढ़ है तथा परिवार के अन्य लोगों को भी अनुशासन में रखना चाहती है।
- श्रीपत नाटक में ऐसा पात्र जो अंजलि को समझाता है कि उसके कड़े स्वभाव के कारण सारा परिवार समस्या ग्रस्त हो जाएगा।
- धीरज अंजलि का पुत्र ।
- इन्द्रनारायण अंजलि के पति।
अंधा युग - धर्मवीर भारती (1954)
- धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। इनका जन्म 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद में हुआ।
- इन्हें वर्ष 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अन्धा युग इनका प्रसिद्ध नाटक है। इब्राहिम अलकाजी, रामगोपाल बजाज, अरविंद गोंड, एम के रैना तथा कई अन्य निर्देशकों ने इसका मंचन किया।
नाटक के प्रमुख पात्र
- कृष्ण नाटक का एक नैतिक केन्द्र है, जो एक राजनीतिज्ञ और भगवान दोनों ही रूपों में उजागर हुआ है।
- अश्वत्थामा एक केन्द्रीय पात्र है, इसके इर्द-गिर्द सारी घटनाएँ और सारे प्रमुख गौण पात्र घूमते नज़र आते हैं।
- यूधिष्ठिर केवल शान्ति की कामना करने वाला पात्र है। बरबस थोपे गए ने उन्हें असत्य भाषण के लिए विवश किया तथा उन्हें युद्ध से घोर वितृष्णा है।
- धृतराष्ट्र जो स्वार्थी है तथा तन से ही नहीं मन से भी अन्धे हैं। पुत्रों की ममता को ही अपना अन्तिम सत्य मान बैठे हैं, लेकिन उनके चरित्र में सपाट-बयानी, सहजता और दुर्बलताओं को निःसंकोच स्वीकारने की महानता है।
- गान्धारी जिसके पास अन्धी ममता के साथ-साथ तर्क व प्रज्ञा भी है।
- विदुर एक शान्तिकामी नीतिज्ञ, गांधीवादी उदार व्यक्ति है।
- कृपाचार्य एक कुशल योद्धा, धर्मप्राण, न्याय के पक्षधर तथा ऊबे हुए सैनिक हैं।
आधे-अधूरे - मोहन राकेश (1969)
- मोहन राकेश द्वारा लिखा गया एक प्रमुख नाटक है आधे-अधूरे। यह नाटक सामाजिक विसंगतियों को लेकर लिखा गया है। इस नाटक में कहीं भी पूर्णता नहीं है, सब आधे-अधूरे हैं।
- आधे-अधूरे स्त्री-पुरुष के बीच के लगाव और तनाव की कहानी है। महेन्द्रनाथ, सावित्री, अशोक, बिन्नी, किन्नी, जुनेजा, सिंघानिया, जगमोहन आदि नाटक के प्रमुख पात्र हैं।
नाटक के प्रमुख पात्र
- सावित्री अपने पति के पास काम न होने के कारण काम की तलाश में बाहर निकलती है।
- बिन्नी सावित्री की बड़ी बेटी जो अपनी माता के मित्र मनोज के साथ भागकर शादी करती है।
- किन्नी सावित्री की छोटी बेटी जो अश्लील उपन्यासों को पढ़ने में व्यस्त रहती है।
- अशोक सावित्री का पुत्र जिसमें अपने माता-पिता व समाज के प्रति विद्रोह की भावना है।
आषाढ़ का एक दिन - मोहन राकेश (1958)
- मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक आषाढ़ का एक दिन की कथा अतीताश्रित है। उसका नायक कालिदास है। इस नाटक की रचना तीन अंकों में की गई है।
- इसके कथानक का आधार है- कालिदास और मल्लिका की कथा। नाटक के तीनों अंकों में यही कथा विन्यस्त है।
- विलोम मातुल, प्रियंगुमंजरी आदि कुछ प्रासंगिक कथासूत्र भी इस मुख्य कथा से आ जुड़ते हैं। ये कथा सूत्र इस कथानक को केवल प्रेमकथा पात्र न रहने देकर सामयिक सन्दर्भ से भी जोड़ने में सहायक है।
नाटक के प्रमुख पात्र
- कालिदास नाटक का नायक तथा मल्लिका का प्रेमी है, किन्तु विवाह -राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से करता है।
- अम्बिका मल्लिका की माता ।
- मल्लिका नाटक की मुख्य स्त्री पात्र तथा कालिदास की प्रेयसी।
- प्रियंगुमंजरी उज्जयिनी नरेश की पुत्री व राजकुमारी जिसका विवाह कालिदास से होता है।
- विलोम मल्लिका के ग्राम का ही एक पुरुष है, जो उसकी सन्तान का पिता है, जबकि मल्लिका अविवाहित माँ है।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'UGC NET के नाटकों' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Download the BYJU’S Exam Prep App Now.
The most comprehensive exam prep app.
#DreamStriveSucceed
Comments
write a comment