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Question 1
Question 2
Question 3
Question 4
Question 5
Question 6
Question 7
i. Tool is a way of doing something in a systematic way.
ii. Technique is a device of performing task.
Which of the above statement is/are true?
Question 8
Question 9
Question 10
The richness of her childhood experience came from living a life, which embraced tradition on one hand and exposure to the world of change, of questioning and questing on the other. Her father’s progressive ideas, his involvement in bringing about change in the restricted Brahminical society, his encouragement of Kamala Devi to follow her own inclinations and yet give her an opportunity to study in a school and participate in all the social functions with which he was involved, as a Senior Revenue Official, gave her confidence. The example of her grandmother, who lived the life of a scholar and fearless woman, who travelled alone without any fear of any social disapproval or adverse consequences, was a fitting example to Kamala Devi, who later travelled all over the world, often risking her life.
Girjabai, her mother was a dominant influence throughout her childhood and youth who set an example by overcoming all difficulties without a murmur. She discarded meaningless social customs and observances. She championed the cause of women. Her conviction was that a woman must educate herself, so that she could be independent and her insistence that Kamala Devi should not only study, but also participate in cultural activities and sports, enriched her daughter’s life.
Kamala Devi went with her mother to Seva Sadan and saw her exhorting women even older than her to become literate. She heard her read to them from the newspapers, magazines and extracts from books by social reformers and nationalists, followed by discussions and saw their attitudes changing. Girjabai’s love for music was shared by Kamala Devi and she was encouraged to learn North Indian and Carnatic music. This love of music was a great source of peace for Kamala Devi in her later years.
Which part of speech is the bold word?
Question 11
Question 12
घर, घर नहीं हैं वरन् गृहिणी ही घर कही जाती है। यह बात महाभारत के शांति पर्व में व्यक्त की गई है । आज भारत के परिवारों में जिन-जिन बातों ने तेजी से प्रवेश किया है, उनमें से एक अशांति भी है। जो लोग चाहते हों कि हमारे गृहस्थ जीवन में शांति बनी रहे, उन्हें घर की स्त्रियों को समझना और सम्मान देना होगा। माता संबोधन में भारतीय घरों का अमृत भण्डार भरा हुआ है । जिस घर के केन्द्र में माँ प्रतिष्ठित है समझ लीजिए परमात्मा स्थापित है। दरअसल, जब-जब नारी स्वतंत्रता की बात की गई, हमने उसकी बाहरी प्रतिष्ठा पर ही घ्यान दिया है। स्त्रियों ने भी इसे इसी रूप में लिया और इसीलिए घर से बाहर निकलने को ही नारी का विकास मान लिया गया, लेकिन घरों में स्त्री के आंतरिक विकास की जरूरत हैं, क्योंकि जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र उन्हीं के हाथ में हैं और उनमे से एक है संतान को जन्म देना। शास्त्रों में स्पष्ट व्यक्त किया गया है कि भार्या पुरुष का आधा भाग व उसकी श्रेष्ठतम मित्र है। हमने स्त्रियों के बाहरी विकास को लेकर जागरूकता दिखाई, संघर्ष किए, लेकिन स्त्री अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा संवेदनाओं के साथ भीतर से जीती है। जीवन जिस रस का नाम है, उसे क्रम से प्राप्त करना पड़ता है। प्रेमपूर्ण जीवन नारियों का सहज स्वभाव हो जाता है। इसको प्रेरित करने और बचाने के लिए स्त्रियों को ध्यान योग के माधयम से पहले शरीर की आवश्यकताएँ पूरी करनी चाहिए, उसके बाद मन की ओर बढ़े, फिर आत्मा तक चलें। चौथी अवस्था आती है आनंद की । देखा गया है माताएँ-बहनें ध्यान-योग से कम जुड़ती हैं, लेकिन उनके आंतरिक विकास के लिए यही एक राजपथ है।
Question 13
सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।
Question 14
मनुष्यस्य सहजः स्वाभाविकश्च आहारः - शाकाहारः उच्यते। शाकाहारः इत्युक्ते यच्च नानावनस्पत्याः माध्यमेन उपलभ्यते ; यथा- अन्नम्, शाकः, फलम्, दधि, दुग्धम् इत्यादिकम् । जलम् अस्माकम् अपरिहार्यं पेयम् । एतादृशः आहारः सात्त्विकाहारः आख्यायते ।
वैज्ञानिकैरपि मांसाहारो मनुष्यजीवनानुकूलो हितकारी वा नैव इति नानागवेषणामाध्यमेन प्रमाणीकृतं वर्तते । अस्मत्पूर्वजैः ऋषिमहर्षिभिरपि मांसाहारः सर्वथा परित्यक्तः आसीत् । सात्त्विकाहारसेवनं मनुष्यस्य अात्मसाधनायाः प्रथमं सोपानम् इति तैः प्रतिपादितमासीत् । आहारानुगुणं स्वभावः, स्वभावानुगुणञ्च कर्मसाधना भवति मनुष्यस्य, पुनश्च कर्मानुगुणं शुभाशुभफलं भोक्तव्यं भवेत् इत्ययं सुदृढो नियमः । अतः मानवैः आदौ स्वस्य आहारो विचारणीयो भवेत् । शाकाहारः सर्वदा सुखकरः, सात्त्विकगुणबर्धको भवति ।
मनुष्यः प्रकृततः अहिंसकः प्राणी, शाकाहारी च । तस्य शरीररचना, दन्तानाम् आकृतिः, विवेकलक्षणम् इत्यादिकं तदेव सूचयदस्ति । विवेकशीलः सन् मनुष्यः इतरान् वराकान् पशून् हत्वा भक्षयति इति तु तस्य अतीव निकृष्टतायाः परिचायकम्, अतः तस्मिन् पशुत्वभावस्य आगमनमपि सहजं स्वाभविकञ्च । परन्तु मनुष्यत्वम् अन्यविधमेव, इतरेषां सर्वेषां प्राणिनां संरक्षणम्, दयार्द्रभावः, प्रेमदृष्टिः चेत्येव । संसारचक्रे मनुष्यजन्म अन्तिमम्, ईश्वरप्राप्तेः द्वारञ्च इदम् । अतः इतः स्खलनता न सामान्या क्षतिः।
Question 15
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