भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 22 जुलाई, 2019 को चंद्रयान-2 मिशन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यह चंद्रमा के लिए भारत का दूसरा मिशन था। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चंद्रमा पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा। आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
चंद्रयान 2: भारत के चंद्रमा मिशन के बारे में विस्तृत जानकारी
चंद्रयान-2 मिशन क्या है?
चंद्रयान-2 इसरो द्वारा संचालित चंद्रयान-1 मिशन की सफलता के बाद भारत का दूसरा चंद्रमा खोज अभियान होगा।
चंद्रयान-2 इसरो का एक स्वदेशी अभियान है जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल है।
चंद्रयान-2 मिशन के लक्ष्य :
- चंद्रमा की स्थलाकृति का अध्ययन करना, हीलियम और आयरन जैसे तत्त्वों और खनिजों की खोज करना।
- सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना।
- चंद्रमा के वायुमंडल के स्तरों की जांच करना।
चंद्रयान-2: लांचर एवं स्पेस क्राफ्ट के बारे में जानकारी:
चंद्रयान-2 | विवरण |
लांच यान | GSLV MK III |
लिफ्टऑफ (उड़ान) द्रव्यमान | 3890 कि.ग्रा |
प्रक्षेपण केंद्र | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा |
लैंडिंग स्थल | चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से में – मांजिनस C और सिंपेलियस N खड्ड के बीच |
चंद्रयान-2 मिशन के संदर्भ में जानकारी:
लैंडर जिसमें रोवर है, वह चंद्रमा की कक्षा से 100 कि.मी की दूरी तक पहुँचने के बाद ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा।
फिर लैंडर नियंत्रित रूप से नीचे आते हुए चंद्रमा की सतह पर एक निर्धारित स्थान पर उतरेगा।
चंद्रयान-2 के मुख्यतः 3 मूलभूत भाग हैं:
- ऑर्बिटर: यह चंद्रमा की सतह से 100 कि.मी दूरी पर चंद्रमा की परिक्रमा करेगा। ऑर्बिटर पर पे-लोड सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर लार्ज एरिया, सिंथेटिक एपर्चर रडार L और S बैंड, IR स्पेक्ट्रोमीटर इमेजिंग, न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर और टेरेन मैपिंग कैमरा-2, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित ऑर्बिटर स्ट्रक्चर है।
- लैंडर: वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक विक्रम साराभाई, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है, के नाम पर लैंडर का नाम “विक्रम” रखा है। लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरने का प्रयास करने से पहले, ऑर्बिटर से अलग होगा और फिर चंद्रमा की कक्षा में नीचे उतरेगा। यह सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और फिर वहाँ रोवर छोड़ेगा। लगभग 15 दिनों के लिए, यह वहाँ कुछ वैज्ञानिक प्रयोग भी करेगा। लैंडर पर पे—लोड हैं: सिस्मोमीटर, थर्मल प्रोब, रेडियो ऑक्लटेशन और लैंगम्युर प्रोब।
- रोवर: रोवर का नाम “प्रज्ञान” रखा गया है जिसका संस्कृत भाषा में अर्थ “बुद्धिमत्ता” है। सौर ऊर्जा संचालित रोवर में छह पहिए हैं और वह सतह पर रासायनिक विश्लेषण करेगा। फिर यह इन आंकड़ों को ऑर्बिटर को भेजेगा जो उस जानकारी को वापस पृथ्वी केंद्र पर भेजेगा। रोवर में पे-लोड में लेज़र ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LBS) औऱ अल्फा पार्टिकल इंड्यूस्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी शामिल हैं।
चंद्रयान-2 खास क्यों है?
यह चंद्रमा पर रोवर उतारने का भारत का पहला प्रयास होने के बावजूद भी, चंद्रयान-2 इसलिए खास है क्योंकि अमेरिका के अपोलो और रूस के लूना मिशन से अलग, इसरो रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास मैंज़िस C और सिंपेलियस N खड्ड के बीच उतारेगा।
इसरो के मुताबिक, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव एक रोचक क्षेत्र है जो उत्तरी ध्रुव की तुलना में अज्ञात बना रहा है। पूरी तरह से अंधकार से घिरे होने के कारण, इस क्षेत्र में जल के पाए जाने की संभावना है, दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में खड्ड पाए जाने से, कोल्ड ट्रैप हो सकते हैं और शुरूआती सौर तंत्र के जीवाष्म की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
चंद्रयान-2 कार्यक्रम:
इसरो द्वारा भेजे गए चंद्रयान-2 का कार्यक्रम निम्नलिखित है:
कार्यक्रम विवरण | अनुमानित तिथि |
प्रक्षेपण तिथि | 22 जुलाई, 2019 |
चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश | 20 अगस्त, 2019 |
मून लैंडर के उतरने की तारीख | 7 सितम्बर, 2019 |
इसरो का नवाचार:
इसरो रोवर प्रज्ञान पर चंद्रमा की मिट्टी जैसे ठोस पदार्थ का परीक्षण करना चाहता था। जिससे चंद्रमा पर प्रयोग में कोई रुकावट नहीं आए। चंद्रमा की सतह गड्ढ़ों, चट्टानों और धूल से ढकी हुई है और मिट्टी की संरचना अलग है।
IANS की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अमेरिका से चंद्रमा की मिट्टी जैसे पदार्थ को आयात करना बहुत मंहगा था। फिर इसरो ने स्थानीय विकल्प तलाशने शुरू किए क्योंकि उसे 60-70 टन मिट्टी की जरूरत थी।
कईं भू-वैज्ञानिकों ने ISRO को बताया कि चंद्रमा पर “अनौर्थ्रोसाइट” चट्टानें थीं जोकि तमिलनाडु में सलेम से काफी करीब थी। आखिर में इसरो ने तमिलनाडु में कुन्नुमलाई और सिथामपोंडी गांवों से च्रंदमा की सतह पर “अनॉर्थ्रोसाइट” चट्टान प्राप्त कीं।
चंद्रमा पर उतरने से जुड़ी चुनौतियाँ:
लंबी दूरी के अंतरिक्ष संचार में दिक्कतें, ट्रांस-लुनार इंजेक्शन, चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा, चंद्रमा की सतह पर आसान लैंडिंग और कड़े तापमान और निर्वात का सामना इस मिशन की मुख्य चुनौतियाँ हैं।
GSLV MK III का परिचय:
इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए GSLV MK III का उपयोग किया है जोकि एक लांच व्हीकल मार्क 3 (LMV3) तीन-चरण मध्यम-भारवहन प्रक्षेपण यान है।
इसे भू-स्थैतिक कक्षा में संचार उपग्रह को स्थापित करने के लिए विकसित किया गया था। इसे भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान के तहत सदस्य दल मिशन भेजने के लिए प्रक्षेपण यान के रूप में भी चुना गया है।
चंद्रयान-1 का परिचय:
इसरो ने अक्टूबर 2008 में भारत के पहले चंद्रयान-1 लूनार प्रोब का प्रक्षेपण किया था, जिसने अगस्त 2009 तक कार्य किया। चंद्रयान-1 ने मैग्मा महासागर अवधारणा की पुष्टि की, जिसने संकेत दिया कि चंद्रमा एक समय पूरी तरह से जमा हुआ था। चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा के चारों ओर अपनी दस महीनों की परिक्रमा में टाइटेनियम की खोज की और कैल्शियम की उपस्थिति की पुष्टि की। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम और आयरन का सबसे सटीक माप लिया।
चंद्रमा पर रोवर:
रोवर | दिनाँक | देश |
लुनोखोड 1 | 10 नवम्बर, 1970 | रूस |
लुनार रोविंग व्हीकल | 31 जुलाई, 1971 | अमेरिका |
युतु | 14 दिसम्बर, 2013 | चीन |
नीचे चंद्रयान-2 मिशन परियोजना के निर्माण और लांच से जुड़े मुख्य अनुसंधानकर्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों की सूची दी गई है:
- ऋतु करिढाल – मिशन निदेशक, चंद्रयान-2
- मुथैया वनिथा – परियोजना निदेशक, चंद्रयान-2
- चंद्रकांता कुमार – उप-परियोजना निदेशक, चंद्रयान-2
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