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गांधीवादी विचारधारा – Gandhian Ideology in Hindi
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023

गाँधीवाद महात्मा गाँधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है। जो गाँधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था। गांधीवादी विचारधारा (Gandhian Ideology) महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह है।
Table of content
गांधीवादी विचारधारा | Gandhian Ideology
- गांधीवादी विचारधारा महात्मा गांधी के उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह जो उन्होंने पहली बार उन्होंने वर्ष 1893 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाई थी।
- गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।
- यह दर्शन कई स्तरों आध्यात्मिक या धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और सामूहिक आदि पर मौजूद है। इसके अनुसार-
आध्यात्मिक या धार्मिक तत्व और ईश्वर इसके मूल में हैं। - मानव स्वभाव को मूल रूप से सद्गुणी है।
- सभी व्यक्ति उच्च नैतिक विकास और सुधार करने के लिये सक्षम हैं।
- गांधीवादी विचारधारा आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है।
- गांधीवादी दर्शन एक दोहरी अवधारणा है जिसका उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार व्यक्ति और समाज को एक साथ बदलना है।
- गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया।
- टॉलस्टॉय की पुस्तक ‘द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू’ का महात्मा गांधी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।
- गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक ‘अंटू दिस लास्ट’ से ‘सर्वोदय’ के सिद्धांत को जीवन में उतारा और उसे ग्रहण किया।
- गांधीजी के विचारों को बाद में “गांधीवादियों” द्वारा विकसित किया गया है, विशेष रूप से, भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण तथा भारत के बाहर मार्टिन लूथर किंग जूनियर और अन्य लोगों द्वारा विकसित किया गया है।
गांधीवादी विचारधारा के प्रमुख बिंदु (Main Principles of Gandhian Ideology)
1. सत्य: गाँधीजी सभी तत्वों में से सत्य को सर्वोपरि मानते थे। कि सत्य ही किसी भी राजनैतिक संस्था, सामाजिक संस्थान का केंद्र होनी चाहिए। वे अपने किसी भी राजनैतिक निर्णय को लेने से पहले सच्चाई के सिद्धांतो का पालन अवश्य करते थे।
गाँधी जी ने कहा था कि “मेरे पास दुनियावालों को सिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं है। सत्य एवं अहिंसा तो दुनिया में उतने ही पुराने हैं जितने हमारे पर्वत हैं।”
सत्य, अहिंसा, मानवीय स्वतंत्रता, समानता एवं न्याय पर उनकी निष्ठा को उनकी निजी जिंदगी के उदाहरणों से अच्छे से समझा जा सकता है।
2. अहिंसा: अहिंसा गाँधी जी का मुख्य शस्त्र था। अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना’। किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में भी किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी पीड़ा न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी का कोई नुकसान न करना।
3. सत्याग्रह: सत्याग्रह का अर्थ है सत्य के लिए आग्रह करना। अर्थात सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना। यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है।
सत्याग्रह की उत्पत्ति उपनिषद, बुद्ध-महावीर की शिक्षा, टॉलस्टॉय और रस्किन सहित कई अन्य महान दर्शनों में मिल सकती है। गांधीजी ने भारत में पहला सत्याग्रह 1917 में चम्पारण में किया था , यह गाँधी जी का भारत में सफल सत्याग्रह था।
4. सर्वोदय: सर्वोदय का अर्थ है ‘सभी वर्गों के लोगो की प्रगति’। यह शब्द पहली बार गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक “अंटू दिस लास्ट” में पढ़ा था। और प्रेरित होकर गांधीजी ने हर वर्ग के लोगो को समाज में आगे बढ़ने में अहं भूमिका निभाई थी।
5. धर्म: गाँधीजी ने धर्म और राजनीति को अलग नही किया। क्योंकि गांधीजी के अनुसार धर्म मनुष्य को सदाचारी बनने के लिए प्रेरित करता है । और धर्म ही मनुष्य को नैतिक बनाता है । सत्य बोलना, चोरी नहीं करना, पर दु:ख कातरता,दूसरों की सहायता करना आदी यही सभी धर्म सिखाते हैं । गाँधीजी आडम्बर को धर्म नही मानते थे। गांधीजी का विश्वास था कि प्रत्येक प्राणी इश्वर की सन्तान हैं और ये सत्य है और सत्य ही ईश्वर है।
6. उपवास: गाँधी उपवास में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार उपवास व्यक्ति के अनुसार ही उत्तपन्न होता है| और उपवास व्यक्ति के शारीरिक अंगो मे तन्दुरस्ती लाता है| यह अनुकुल परिस्थितियो में करना लाभदायक होता हैं|
7. स्वराज: स्वराज का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधी जी के लिये स्वराज का मतलब व्यक्तियों के स्व-शासन से था और इसलिये उन्होंने कहा कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों की स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है, यह स्व-शासन है, आत्म-संयम है और इसे निर्वाण के तुल्य समझ सकते है।
8. स्वदेशी: स्वदेशी शब्द संस्कृत शब्द है और यह संस्कृत के 2 शब्दों का एक संयोजन है। ‘स्व’ का अर्थ है स्वयं और ‘देश’ का अर्थ है देश। इसलिये स्वदेश का अर्थ है अपना देश। स्वदेशी का अर्थ अपने देश से है, लेकिन ज्यादातर संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है।
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