Article 13 in Hindi - अनुच्छेद 13 (Article 13 of Indian Constitution in Hindi) - मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ

By Brajendra|Updated : August 10th, 2022

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 (Article 13) राज्य के नागरिक के विरुद्ध को मूल अधिकारों के संरक्षण की गारण्टी देता है। यदि राज्य द्वारा कोई ऐसी विधि बनाई जाती है जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है तो न्यायालय उसको शून्य घोषित कर सकता है। इसके द्वारा न्यायालय विधियों की संवैधानिकता की जाँच करता है।

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अनुच्छेद 13: मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ

अनुच्छेद 13 में निम्न उपबंध किये गए हैं:

13 (1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
13 (2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
13 (3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,--
(क) ''विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ;
(ख) ''प्रवृत्त विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है।
13 (4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।

वस्तुत: अनुच्छेद 13 मूल अधिकारों का आधार-स्तम्भ है।

यह न्यायालयों को वह शक्ति प्रदान करता है जिनके आधार पर मूल अधिकारों से असंगत विधियों को वे अवैध घोषित करते हैं। यह उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रहरी बनाता है। न्यायालयों की इस शक्ति को न्यायिक पुनर्विलोकन(Judicial Review) की शक्ति कहते हैं।

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