अधिगम का अर्थ
अधिगम शिक्षण प्रक्रिया का केंद्र बिंदु है, यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। सामान्य अर्थ में अधिगम का अर्थ सीखना अथवा व्यवहार परिवर्तन है। ये व्यवहार परिवर्तन स्थायी तथा अस्थायी दोनों हो सकते हैं। किन्तु व्यवहार में अभिप्रेरणात्मक स्थिति में उतार चढाव से उत्पन्न अस्थायी परिवर्तन अधिगम नही होते है, कहने का अर्थ यह है कि अनुभवों एवं प्रशिक्षण के बाद बालक के व्यवहार में जो सुधार आता है उसी को अधिगम कहते हैं। अधिगम की प्रक्रिया सभी जीवो में होती है किन्तु उनकी विशिष्टतायें भिन्न भिन्न होती है
अधिगम की परिभाषा
क्रॉनबैक के अनुसार, “अनुभव के परिणामस्वरुप व्यवहार परिवर्तन ही अधिगम है।“
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “आदतों, ज्ञान व अभिवृत्तियों का अर्जन ही अधिगम है।“
गिलफर्ड के अनुसार, “व्यवहार के कारण परिवर्तन ही सीखना है।“
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सीखने के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है, व्यवहार में यह परिवर्तन बाह्य एवं आंतरिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। अतः सीखना एक प्रक्रिया है जिसमें अनुभव एवं प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में स्थायी या अस्थाई परिवर्तन दिखाई देता है।
अधिगम की विशेषताएँ
अधिगम की विशेषताएँ इस प्रकार है
- यह एक सतत चलने वाली, समायोजित और समस्या-समाधान की प्रक्रिया है।
- यह व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया है।
- यह एक मानसिक प्रक्रिया है।
- यह एक विवेकपूर्ण, अनुसन्धान और सामाजिक प्रक्रिया है।
- अधिगम सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों होता है।
- अधिगम एक विकसित, सार्वभौमिक और सक्रिय प्रक्रिया है।
शिक्षण एवं अधिगम में सम्बन्ध
शिक्षण एवं अधिगम एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं शिक्षण बच्चे में अधिगम उत्पन्न करता है। अच्छे शिक्षण का अर्थ है ज्यादा – से ज्यादा अधिगम करना। प्रशिक्षण अधिगम का उद्दीपन, निर्देशन एवं प्रोत्साहन होता है। जहॉं शिक्षण को शिक्षा अधिगम प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु माना जाता है वहॉं अधिगम को शिक्षण के केन्द्रीय उद्देश्य माना जाता है।
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के भाग
मैकडानल्ड के अनुसार, समस्त शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के चार मुख्य भाग होते हैं।
1. पाठ्यक्रम
2. अनुदेशन
3. शिक्षण
4. अधिगम
अधिगम के आयाम या विमाएं
अधिगम के आयाम अनुदेशनात्मक योजना के लिए एक अधिगम केन्द्रित रुपरेखा या संरचना है जोकि संज्ञान और अधिगम क्षेत्र के नवीनतम शोध को व्यवहारिक कक्षागत कार्यनीतियों में परिवर्तित करते है, अधिगम आयाम की रूप-रेखा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए निम्न परिप्रेक्ष्य में सहायक होती है।
- शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में अधिगम को केन्द्रीय बनाये रखने में
- अधिगम प्रक्रिया का अध्ययन करने में
- पाठ्यक्रम, अनुदेशन और आंकलन की योजना बनाये रखने में
विद्यार्थियों के व्यवहार तथा अधिगम लक्ष्यों को तीन क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।
1. ज्ञानात्मक
2. भावात्मक
3. क्रियात्मक
शिक्षण के द्वारा जब विद्यार्थी में व्यवहार परिवर्तन होता है तो वह व्यवहार परिवर्तन अथवा अधिगम इनमें से किसी भी क्षेत्र के साथ सम्बन्धित हो सकता है। अधिगम के अनुसार शिक्षण भी तीन प्रकार का हो सकता है
शैक्षिणक उद्देश्य एवं अधिगम
उद्देश्य | शिक्षण विधि | अधिगम |
ज्ञानात्मक भावात्मक क्रियात्मक | भाषण नाटकीकरण प्रयोग | जानना अनुभव करना करना |
तालिका से स्पष्ट है कि जैसा शिक्षण होगा विद्यार्थी में वैसा ही अधिगम होगा।
अधिगम के नियम
ई॰एल॰ थार्नडाइक अमेरिका का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हुआ है जिसने सीखने के कुछ नियमों की खोज की जिन्हें निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है, जिनमे तीन मुख्य नियम और पांच गौण नियम है । सीखने के मुख्य नियम तीन है जो इस प्रकार हैं ।
1. तत्परता का नियम: इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए पहले से तैयार रहता है तो वह कार्य उसे आनन्द देता है एवं शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत जब व्यक्ति कार्य को करने के लिए तैयार नहीं रहता या सीखने की इच्छा नहीं होती है,तो वह बेमन जाता है या सीखने की गति धीमी होती है।इस नियम से कार्य शीघ्र होता है|
2. अभ्यास का नियम: इस नियम के अनुसार व्यक्ति जिस क्रिया को बार-बार करता है उस शीघ्र ही सीख जाता है तथा जिस क्रिया को छोड़ देता है या बहुत समय तक नहीं करता उसे वह भूलने लगताहै। जैसे‘- गणित के सवाल हल करना, टाइप करना, साइकिल चलाना आदि। इसे उपयोग तथा अनुपयोग का नियम भी कहते हैं। इस नियम से कार्य कुशलता आती है
3. प्रभाव का नियम: इस नियम के अनुसार जीवन में जिस कार्य को करने पर व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है या सुख का या संतोष मिलता है उन्हें वह सीखने का प्रयत्न करता है एवं जिन कार्यों को करने पर व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पडता है उन्हें वह करना छोड़ देता है। इस नियम को सुख तथा दुःख या पुरस्कार तथा दण्ड का नियम भी कहा जाता है।
गौण के नियम
1. बहु अनुक्रिया नियम: इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने किसी नई समस्या के आने पर उसे सुलझाने के लिए वह विभिन्न प्रतिक्रियाओं के हल ढूढने का प्रयत्न करता है। वह प्रतिक्रियायें तब तक करता रहता है जब तक समस्या का सही हल न खोज ले और उसकी समस्यासुलझ नहीं जाती। इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।
2. मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम: इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार नहीं रहता तो उस कार्य को वह सीख नहीं सकेगा।
3. आंशिक क्रिया का नियम: इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी समस्या को सुलझाने के लिए अनेक क्रियायें प्रयत्न एवं भूल के आधार पर करता है। वह अपनी अंर्तदृष्टि का उपयोग कर आंषिक क्रियाओं की सहायता से समस्या का हल ढूढ़ लेता है।
4. समानता का नियम: इस नियम के अनुसार किसी समस्या के प्रस्तुत होने पर व्यक्ति पूर्व अनुभव या परिस्थितियों में समानता पाये जाने पर उसके अनुभव स्वतः ही स्थानांतरित होकर सीखने में मद्द करते हैं।
5. साहचर्य परिवर्तन का नियम: इस नियम के अनुसार व्यक्ति प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थिति में या सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति भी करने लगता है। जैसे-कुत्ते के मुह से भोजन सामग्री को देख कर लार टपकरने लगती है। परन्तु कुछ समय के बाद भोजन के बर्तनको ही देख कर लार टपकने लगती है।
अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नलिखित वर्गो में विभाजित किया जा सकता है।
1. अधिगमकर्ता से सम्बन्धित कारक
2. अध्यापक से सम्बन्धित कारक
3. विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारक
4. प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक
अधिगमकर्ता से सम्बन्धित कारक: अधिगमकर्ता का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य कैसा है, उसकी क्षमता कितनी है, वह तीव्र या मंद बुद्धि का है, वह कितना जिज्ञासु है, वह क्या हासिल करना चाहता है, उसके जीवन का उद्देश्य क्या है,आदि इन बातों पर उसके सीखने की गति, इच्छा एवं रुचि निर्भर करती है।
अध्यापक से सम्बन्धित कारक: अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अध्यापक का विषय पर कितना अधिकार है, यह शिक्षण कला में कितना योग्य है? उसका व्यक्तित्व एवं व्यवहार कैसा है, वह अधिगम के लिए उचित वातावरण तैयार कर रह है या नही, इन सबका प्रभाव बालक के अधिगम, इसकी मात्रा एवं इसकी गति पर पड़ता है। अध्यापक के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का भी बालक के अधिगम से सीधा समबन्ध होता है। एक स्वस्थ शिक्षक ही सही ढंग से बच्चों को पढ़ा सकता है।
विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारक: अधिगम की प्रक्रिया में यदि विषय बालक अनुकूल न हों तो इसका अधिगम पर भी प्रभाव पड़ता है। विषय-वस्तु बालक की रुचि के अनुकूल है या नहीं, उस विषय की प्रस्तुति किस ढंग से की गयी है, इन सब बातों को प्रभाव बालक के अधिगम पर पड़ता है।
प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक: विषय-वस्तु को यदि सुव्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत नही किया जाए, तो बालक को इसे समझने में कठिनाई होती है। सतत अभ्यास के द्वारा ही किसी विषय-वस्तु को पूर्णत: समझा जा सकता है, शिक्षण अधिगम सम्बन्धी परिस्थितियॉं एवं वातावरण बालक को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है जिससे उसके अधिगम की गति स्वत: बढ़ जाती है।
अधिगम का महत्त्व:
अधिगम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बुद्धि और विकास में सहायक है, यह जीवन की आवश्यकतायों को समझने, वातावरण को अनुकूल बनाने, ज्ञान प्राप्त करने और हमें कुशल एव योग्य बनाने में सहायक है|
यह लेख निम्नलिखित परीक्षाओं के लिए फायदेमंद है - REET, UPTET, CTET, सुपर TET, DSSSB, KVS आदि।
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