दैनिक समाचार विश्लेषण- 30- जून 2022

By Kriti Gupta (BYJU'S IAS)|Updated : June 30th, 2022

समाचार पत्र विश्लेषण में यूपीएससी/आईएएस परीक्षा के दृष्टिकोण से 'द हिंदू' के सभी महत्वपूर्ण लेख और संपादकीय को शामिल किया जाता हैं।

Table of Content

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।  

 

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

कैसे तुर्की ने स्वीडन और फ़िनलैंड के नाटो में शामिल होने के साथ शांति स्थापित की:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: विकसित और विकासशील देशों की नीतियां और राजनीति का प्रभाव

प्रारंभिक परीक्षा: नाटो (NATO)

मुख्य परीक्षा: तुर्की, फिनलैंड और स्वीडन के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के प्रमुख प्रावधान और इसके निहितार्थ।

संदर्भ:

  • तुर्की, फ़िनलैंड और स्वीडन के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके माध्यम से तुर्की ने फ़िनलैंड और स्वीडन का NATO में शामिल होने का स्वागत किया है।

पृष्ठभूमि:

  • इस मुद्दे की पृष्ठभूमि के लिए 14 मई 2022 का यूपीएससी परीक्षा का व्यापक समाचार विश्लेषण देखें। 

हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन से सम्बंधित विवरण:

  • स्पेन के मैड्रिड में आयोजित एक त्रिपक्षीय बैठक में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
  • फ्रांस और स्वीडन के नेताओं द्वारा तुर्की की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए सहमत होने के बाद ही समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • आश्वासन मिलने के बाद, तुर्की के राष्ट्रपति ने फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने का समर्थन देने पर सहमति व्यक्त की है।

समझौता ज्ञापन के प्रमुख प्रावधान:

  • तीनों देशों ने इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संयुक्त प्रतिबद्धता जताई है।
  • एक द्विपक्षीय कानूनी ढांचे के माध्यम से संदिग्ध आतंकीयों के लंबित प्रत्यर्पण में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के प्रयास किए जाएंगे।
  • कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) और अन्य सभी आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण और उनकी भर्ती गतिविधियों की जांच करना।
  • फिनलैंड और स्वीडन ने भी आश्वासन दिया कि हथियारों के निर्यात के लिए उनके संबंधित राष्ट्रीय नियामक ढांचे मित्र राष्ट्रों के लिए नई प्रतिबद्धताओं को सक्षम बनाएंगे।
  • इसके साथ ही फ़िनलैंड और स्वीडन ने दुष्प्रचार के खिलाफ कार्रवाई करने एवं यूरोपीय संघ की सामान्य सुरक्षा और रक्षा नीति (CSDP) तथा सैन्य गतिशीलता पर स्थायी संरचित सहयोग (PESCO) परियोजना में तुर्की की पूरी भागीदारी के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की हैं।

तुर्की द्वारा अपना विरोध वापस लेने के कारण:

  • फिनलैंड और स्वीडन ने अपने देशों में आतंकवाद विरोधी प्रावधानों को संबोधित करने का आश्वासन दिया है।
  • जिसमे फ़िनलैंड ने अपने आपराधिक कोड में सुधार के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध किया है,और स्वीडन ने अपने नए आतंकवादी अपराध अधिनियम को लागू करने का वादा किया है।
  • गौरतलब हैं कि तुर्की फिनलैंड और स्वीडन को कुर्द लड़ाकों और अन्य उग्रवादी संगठनों को पनाह देने के बारे में चिंतित था।
  • यूरोपीय संघ और वाशिंगटन दोनों ही कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) को तुर्की के खिलाफ विद्रोह के दौरान नियोजित क्रूर दाँव-पेच (रणनीति) के कारण एक आतंकवादी संगठन मानते एवं मान्यता देते हैं।
  • हालाँकि, अब इस समझौते के बाद फ़िनलैंड और स्वीडन ने तुर्की को आश्वासन दिया है कि वे तुर्की द्वारा सूचीबद्ध किए गए 'संदिग्ध आतंकीयों' के लंबित प्रत्यर्पण के समझौते पर एक साथ आगे बढ़ेंगे।
  • तुर्की ने यह घोषणा की है कि वह फिनलैंड से 12 और स्वीडन से 21 संदिग्धों के प्रत्यर्पण की मांग करेगा।
  • तुर्की यह भी चाहता था कि दोनों देश हथियारों की डिलीवरी पर से प्रतिबंध हटा दें, जो उन्होंने सीरिया में तुर्की की 2019 की सैन्य घुसपैठ के जवाब में लगाया था।
  • हालाँकि हथियारों की श्रेणी की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन फिनलैंड और स्वीडन ने तुर्की के खिलाफ हथियारों के प्रतिबंध को हटाने का आश्वासन दिया है।

तुर्की पर प्रभाव:

  • तुर्की ने फिनलैंड और स्वीडन से यह समझौते करने के बाद तुर्की ने पूरी जीत का दावा किया है।
  • तुर्की ने अमेरिका के साथ लंबे समय से अपेक्षित बैठक करने के वादे को जल्दी ही अमल में लाने का हासिल किया है।  
  • साथ ही, मानवाधिकारों पर तुर्की की कार्रवाई के कारण उनके संबंधों में तनाव के बाद अमेरिका ने तुर्की के साथ अपने संबंधों में सुधार करने में रुचि दिखाई है।

रूस पर प्रभाव:

  • रूस फिनलैंड के साथ 1,340 किमी की सीमा साझा करता है और भूमि सीमा न होने के बावजूद यह स्वीडन के साथ बाल्टिक सागर साझा करता है। इसका मतलब है कि दोनों देशों को रूस से सीधा खतरा हैं।
  • हालाँकि फ़िनलैंड, स्वीडन और रूस ने 1940 के दशक के उत्तरार्ध से सौहार्दपूर्ण आर्थिक सहयोग बनाए हुए हैं, लेकिन शीत युद्ध (Cold War)और फ़िनलैंड के तटस्थता सिद्धांत के कारण संबंध इनके तनावपूर्ण हो गए हैं।
  • रूस ने फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने के उनके फैसले के खिलाफ चेतावनी दी थी और माना था कि इन देशों को रूस से किसी भी सुरक्षा खतरे के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे सम्मानजनक और पारस्परिक रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध साझा करते हैं।
  • यदि स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल हो जाते हैं, तो नाटो का विस्तार अब रूस को बाल्टिक सागर और आर्कटिक में नाटो देशों के साथ घेर लेगा।
  • यही कारण था की (अपने निकट पड़ोस में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए) क्यों रूस ने यूक्रेन में हस्तक्षेप किया था।
  • नाटो की बढ़ी हुई उपस्थिति आर्कटिक क्षेत्र में रूस के हितों को भी प्रभावित करेगी क्योंकि स्वीडन और फिनलैंड दोनों आर्कटिक राज्यों का हिस्सा हैं।
  • रूस वर्तमान में आर्कटिक परिषद (Arctic Council) की अध्यक्षता (2023 तक) कर रहा है।

नाटो पर प्रभाव:

  • फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने से इस संगठन को और मजबूत किया जाएगा, रूस के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी और नाटो को शामिल होने की शक्ति भी प्रदान की जाएगी।
  • नाटो का यह पूर्व की ओर विस्तार नाटो को एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा क्योंकि यह भूमि और बाल्टिक सागर दोनों में सैन्य अभियानों का अभ्यास करने में सक्षम होगा,जहां रूस पारंपरिक रूप से इस रणनीतिक स्थिति का लाभ उठा रहा था।
  • यह नाटो को अपनी हथियार प्रणालियों की स्थिति, युद्ध, प्रतिरोध और सुरक्षा बढ़ाने के लिए अपने तकनीकी हमलों की योजना बनाने में भी मददगार साबित होगा।
  • 1997 में नाटो ने रूस के साथ पुलों के निर्माण के लिए एक समझौता करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन रूस के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा करने और यूक्रेन पर आक्रमण के साथ ही ये तालमेल के प्रयास समाप्त हो गए।
  • हालांकि नाटो के पश्चिम से रूस को घेरने के साथ ही रूस बातचीत के लिए मेज पर लौट सकता है और एक समझौते पर आगे बढ़ने के लिए पहल कर सकता है।

इस क्षेत्र की भूराजनीति पर प्रभाव (Implications on the geopolitics of the region):

  • नाटो का यह विस्तार और सुदृढ़ीकरण एक सुरक्षित यूरो-अटलांटिक क्षेत्र सुनिश्चित करेगा।
  • नाटो की यह विस्तारित उपस्थिति बाल्टिक देशों, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को सुरक्षित और संरक्षित करेगी, जो पहले रूस से निकटता के कारण खतरे में थे और रूसी हमलों से सावधान थे।
  • यह विस्तार नाटो को सहयोगी देशों में पांचवीं पीढ़ी के विमान, तकनीकी हथियार प्रणाली और मजबूत राजनीतिक संस्थानों जैसे उन्नत हथियार स्थापित करने में सक्षम बनाएगा।
  • साथ ही नाटो के मजबूत होने से यूक्रेन को चल रहे युद्ध को जीतने में मदद मिलेगी।

सारांश:

  • फिनलैंड और स्वीडन, जिन्होंने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का पालन किया है, रूस से सुरक्षा खतरे के मद्देनजर अपने पारंपरिक पदों से भटक गए हैं और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा के इस डर ने दोनों देशों को नाटो में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया है।

 

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

तेज रफ्तार मौतों का प्रमुख कारण : लैंसेट अध्ययन

बुनियादी ढांचा:

विषय: बुनियादी ढांचा: सड़कें

मुख्य परीक्षा: सड़क सुरक्षा के संबंध में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता। 

संदर्भ:

  • सड़क हादसे में घातक चोट लगने/दुर्घटना पर न्यू लैंसेट अध्ययन।

विवरण:

  • लैंसेट अध्ययन बताता है कि चार प्रमुख जोखिम कारकों पर ध्यान केंद्रित करने वाले हस्तक्षेप, जैसे वाहन की तेज गति, नशे में गाड़ी चलाना, क्रैश हेलमेट और सीट बेल्ट का उपयोग न करना, दुनिया भर में हर साल होने वाली 13.5 लाख घातक सड़क चोटों में से लगभग 25% से 40% से बचने में मददगार साबित हो सकता है।
  • यह पहला ऐसा अध्ययन है जो 185 देशों में हस्तक्षेप के माध्यम से चार प्रमुख सड़क सुरक्षा जोखिम कारकों को संबोधित करने के प्रभाव का देश-विशिष्ट अनुमान लगाता है।
  • इसमें कहा गया है कि भारत में, गति की जांच से 20,554 लोगों की जान बचाने में मदद मिल सकती है। क्रैश हेलमेट को बढ़ावा देने से लगभग 5,683 लोगों की जान बचाई जा सकती है और सीट बेल्ट के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने से 3,204 लोगों की जान बचाई जा सकती है।

byjusexamprepImage source: The Hindu

भारत में दुर्घटना से संबंधित मौतों पर आंकड़े:

  • देश में दुर्घटना से हर साल लगभग 14 लाख लोग मारे जाते हैं और वैश्विक स्तर पर सड़क यातायात की चोटों के कारण लगभग 5 करोड़ लोग घायल होते हैं।
  • भारत में 10% मौतें सड़क दुर्घटना से होती है, जबकि दुनिया में वाहनों से होने वाली ऐसी दुर्घटना केवल 1% है। 
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के कारण कुल 1,31,714 मौतें हुई थी।
  • सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में लगभग 69.3% योगदान तय सीमा से अधिक गति (Over speeding) जिम्मेदार है। 
  • हेलमेट न पहनने से 30.1% मौतें होती हैं। 
  • सीट बेल्ट का प्रयोग न करने से  11.5% मौतें हुई। 
  • ग्लोबल बर्डन डिजीज, के 2017 के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण 2 लाख से अधिक मौतों का अनुमान है।

वैश्विक सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई का दशक:

  • वर्ष 2010 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011-2020 की दशकीय अवधि को सड़क सुरक्षा कार्रवाई के दशक के रूप में घोषित किया था। गतिविधियों को बढ़ाकर दुनिया भर में सड़क यातायात से होने वाली मौतों के पूर्वानुमान को स्थिर और फिर कम करना हैं।
  • सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई के दूसरे दशकीय वर्ष 2021-2030 तक के दौरान वर्ष 2030 तक कम से कम 50% सड़क यातायात मौतों और चोटों को रोकने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • लैंसेट की यह रिपोर्ट कहती है कि सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में वर्तमान चुनौतियाँ और COVID-19 महामारी का प्रभाव वैश्विक सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई के दूसरे दशक के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सबसे बड़ी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 से सम्बंधित विषय पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Motor Vehicles (Amendment) Act, 2019

सारांश:

  • सड़क यातायात की चोटों से होने वाली मौतों को दुनिया भर में सभी उम्र के लोगों के लिए मौत का आठवां प्रमुख कारण और 5-29 वर्ष के आयु वर्ग में पहला कारण माना जाता है। इसके लिए नीति निर्माताओं और वैश्विक सड़क सुरक्षा समुदाय को तत्काल हस्तक्षेप करने और प्रमुख सड़क सुरक्षा जोखिम कारकों को दूर करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।

 

E. संपादकीय-द हिन्दू 

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित 

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: भारत और पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंध।

अफगानिस्तान में भारतीय चुनौती

मुख्य परीक्षा: भारत-अफगानिस्तान संबंध- महत्व और चुनौतियां   

संदर्भ:

  • हाल ही में अफगानिस्तान में आए रिक्टर पैमाने पर 5.9 तीव्रता के एक भूकंप के परिणामस्वरूप जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। इसका केंद्र अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर स्थित खोस्त के आसपास था। चूँकि अफगानिस्तान पहले से ही दशकों से युद्ध से त्रस्त था, ऐसे में यह भूकंप अफगानिस्तान के लोगों के लिए एक बड़ा झटका है।
  • अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप आने के 24 घंटों के भीतर ही भारत ने सहायता पहुंचने का काम किया है। भारतीय वायु सेना ने गेहूं और आवश्यक दवाओं के रूप में अफ़ग़ानिस्तान में कई टन राहत सामग्री पहुंचाई है।
  • अफगान अधिकारियों ने भारतीय सहायता का स्वागत किया है और देश भर में छोटी परियोजनाओं को फिर से शुरू करने का भी आह्वान किया है।
    • अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांत में भारत 400 से ज्यादा परियोजनाओं पर काम कर रहा है। 

अफगानिस्तान को राहत सामग्री प्रदान करने में चुनौतियां:

  • ऐसी ख़बरें आई हैं कि भारत द्वारा प्रदान की जा रही राहत सामग्री की जमाखोरी की जा रही है और उसे वापस पाकिस्तान भेजा जा रहा है।
  • अफगान बैंकिंग और वित्तीय प्रणालियों के पास पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है और तालिबान शासन के खिलाफ लागू प्रतिबंधों ने नकदी के रूप में आने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता को एकत्रित कर वितरित करने की अफगान बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की क्षमता को और भी सीमित कर दिया है। स्थिति ऐसी है कि कभी-कभी सहायता एजेंसियों को हस्तांतरण के लिए स्थानीय हवाला नेटवर्क का उपयोग करना पड़ता है।
  • धन और नकद हस्तांतरण का एक मुख्य लाभ यह है कि ऐसा धन अफगानिस्तान के भीतर खर्च किया जाएगा, जो अफगान अर्थव्यवस्था को गति प्रदान कर सकता है, लेकिन अफगानिस्तान की अपेक्षाकृत अविकसित अर्थव्यवस्था पुनर्निर्माण के लिए सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं होगी। ऐसी स्थिति से पाकिस्तानी उद्योगों और अर्थव्यवस्था को फायदा होने की संभावना है। पुनर्निर्माण के किसी भी भारतीय प्रयास से पहले इस वास्तविकता को ध्यान में रखना होगा।
  • अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति भारत के लिए चिंता का एक प्रमुख विषय बनी हुई है। हाल ही में काबुल में एक गुरुद्वारे पर इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) द्वारा किया गया हमला इसका स्पष्ट उदाहरण है। विशेष रूप से, हाल के दिनों में, अल-कायदा के साथ-साथ इस्लामिक स्टेट खुरासान भी भारत विरोधी हो गया है।

भारत के लिए सिफारिशें:

  • राहत सामग्री के पकिस्तान को भेजे जाने की खबरों के बावजूद, भारत को बिना किसी भेदभाव के सभी को राहत सामग्री का प्रभावी और समान वितरण सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए। इस संबंध में, मानवीय सहायता के प्रभावी वितरण के प्रयासों की निगरानी और समन्वय के लिए एक तकनीकी टीम भेजने का भारत का कदम स्वागत योग्य है।
  • भारत को अफगानिस्तान में सहायता पहुंचाने के लिए एक अलग मार्ग तलाशना चाहिए। इस संबंध में, वर्तमान में अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान के माध्यम से उपयोग किए जाने वाले मार्ग के बजाय ईरानी मार्ग के उपयोग किए जाने की संभावना का पता लगाया जाना चाहिए।
  • प्रभावित आबादी को तत्काल राहत प्रदान करना भारत की मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत को दीर्घकाल में देश की विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए अफगान उद्योगों को विकसित करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए।

सारांश:

  • अफगानिस्तान में आए भूकंप के बाद भारत की त्वरित प्रतिक्रिया प्रभावित अफगानिस्तानी आबादी को राहत प्रदान करने के अलावा, अफगानिस्तान में भारत की छवि के लिए भी शुभ संकेत है और यह काबुल में वर्तमान शासन के साथ कुछ हद तक जुड़ाव स्थापित करने में मदद कर सकता है।

 

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित 

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

संरक्षण के लिए एक प्रत्यक्ष दृष्टिकोण

मुख्य परीक्षा: पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान- महत्व और इसके सफल क्रियान्वयन में बाधाएं। 

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES):

  • जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवा का लाभार्थी या उपयोगकर्ता उस सेवा के प्रदाताओं को भुगतान करता है, तो यह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) के अंतर्गत आता है। यह प्रदर्शन अनुबंधों (performance contracts) की स्थापना के माध्यम से काम करता है।
  • जो लोग वांछित पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रदान करने में मदद कर सकते हैं, उन्हें उनके कार्यों, या सेवाओं की मात्रा और गुणवत्ता के आधार पर पुरस्कृत किया जाता है।
  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) नीतियां व्यक्तियों या समुदायों को उनके ऐसे कार्यों के लिए प्रतिफल प्रदान करती हैं जो जल शोधन, बाढ़ शमन, या कार्बन पृथक्करण जैसी पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के प्रावधान को बढ़ावा देते हैं।

महत्व:

पर्यावरण संरक्षण:

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली पर्यावरण द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के संरक्षण और वृद्धि का एक तरीका है। यह पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में योगदान देगा।

दोहरा लाभ:

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) स्थानीय भू-प्रबंधकों को संकटग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र के प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करने में मददगार साबित हो सकता है। इसलिए, इसमें संरक्षण और गरीबी उन्मूलन के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता है।

उचित वित्त पोषण सुनिश्चित करता है:

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में वित्त प्रवाह सुनिश्चित करने में मदद करती है। यह जैव विविधता संरक्षण और उनके अधिक टिकाऊ उपयोग को प्रोत्साहित करती है।

परिणाम आधारित:

  • साथ ही, इस प्रणाली में प्रत्यक्ष रूप से निवेश को परिणामों के साथ जोड़ने की क्षमता है और इसलिए इसे अधिक प्रभावी माना जा सकता है।

चिंताएं:

  • संरक्षण गतिविधियों के लिए वित्त जुटाने के लिए कर, शुल्क, जुर्माना जैसे तरीकों को सरकारी समर्थन और राजनीतिक इच्छाशक्ति प्राप्त है, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली के संदर्भ में ऐसा कुछ नहीं है।
  • पर्यावरणीय लाभों का मुद्रीकरण और अतिरिक्तता की कमी (सशर्त भुगतान के बिना कितनी पर्यावरण सेवा प्रदान की जाती) ‘पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली’ से संबंधित दो सबसे बड़े मुद्दे हैं।
  • वित्त के अभाव के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली को लागू करने और निगरानी करने के लिए एक ठोस संस्थागत तंत्र की कमी भारत में इसके सफल कार्यान्वयन में मुख्य बाधाएं हैं।
    • भारत के विपरीत, लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली का सफल क्रियान्वयन किया गया है।

सिफारिशें: 

  • पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता का अर्थशास्त्र  (TEEB) जैसी पहलों को अधिक प्रत्यक्ष PES प्रणाली की दिशा में पारिस्थितिकी तंत्र बहाली वित्तपोषण को प्राथमिकता देने में मदद करने के लिए मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली की प्रभावोत्पादकता को समझने में सहायता के लिए अधिक मूल्यांकनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है।
  • लोगों और पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के लिए निजी क्षेत्र से वित्त जुटाने हेतु संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल जैसी वैश्विक पहल से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान प्रणाली हेतु समय पर और पर्याप्त धन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

सारांश:

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) पर्यावरण संरक्षण हेतु समय पर पर्याप्त वित्त जुटाने के लिए एक बहुमूल्य अवसर प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, यह संरक्षणात्मक प्रयासों में अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करेगा।

 

F. प्रीलिम्स तथ्य:

1. न्यूस्पेस इंडिया (NewSpace India):

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी:

विषय: अंतरिक्ष के क्षेत्र में जागरूकता। 

प्रारंभिक परीक्षा: न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड।

संदर्भ:

  • इसरो के दूसरे समर्पित वाणिज्यिक मिशन न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NewSpace India Ltd) का शुभारंभ।

विवरण:

  • PSLV-C53 सिंगापुर के तीन उपग्रहों को लेकर जाएगा।

इन उपग्रहों में शामिल हैं:

  • DS-EO -  सिंगापुर का एक पृथ्वी प्रेक्षण उपग्रह। 
  • NeuSAR - SAR पेलोड ले जाने वाला सिंगापुर का पहला छोटा वाणिज्यिक उपग्रह। 
  • SCOOB-I उपग्रह - नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सिंगापुर से। 

न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NewSpace India Ltd. (NSIL)):

  • न्यूस्पेस इंडिया 2019 में स्थापित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की एक मांग-संचालित वाणिज्यिक शाखा है।
  • NSIL अंतरिक्ष विभाग (DoS) और कंपनी अधिनियम 2013 के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य करता है।
  • NSIL का मुख्य उद्देश्य भारतीय उद्योगों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तंत्र के माध्यम से अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए एक उच्च-प्रौद्योगिकी को विकसित करने और उभरते वैश्विक वाणिज्यिक लघु उपग्रह प्रक्षेपण सेवा बाजार के लिए सक्षम बनाना है।
  • एंट्रिक्स के बाद एनएसआईएल (NSIL) इसरो की दूसरी व्यावसायिक पहल है।

एनएसआईएल (NSIL) के प्रमुख कार्य:

  • NSIL ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के उत्पादन के लिए नोडल एजेंसी होगी और प्रक्षेपण वाहन के उत्पादन, संयोजन और एकीकरण की जिम्मेदार होगी।
  • भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) का निर्माण किया जायेगा।
  • यह वैश्विक उपग्रह ग्राहकों को प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
  • पृथ्वी अवलोकन/संचार के लिए उपग्रहों का निर्माण और ग्राहकों के लिए अंतरिक्ष कक्षा में वितरण सेवाएं प्रदान करना।  
  • अंतरिक्ष खंड क्षमता को पट्टे पर देने सहित सैटकॉम सेवाएं प्रदान करना।
  • भारतीय उद्योगों को प्रौद्योगिकी और स्पिन-ऑफ प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण।

 

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

1. एफपीआई, तेल फर्मों द्वारा डॉलर की खरीद से रुपया 79 के निचले स्तर पर:  

  • अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79 के नए निचले स्तर पर पहुंच गया हैं।
  • वर्ष 2022 की शुरुआत से ही रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 6.3 फीसदी कमजोर हुआ है।
  • रुपये के मूल्य में यह गिरावट विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय इक्विटी बाजार से पूंजी निकालने, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, बिगड़ते व्यापार संतुलन और डॉलर के मजबूत होने के कारण हुई है।

 

H. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1. इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न अनुप्रयोगों और संभावित जोखिम से अनुप्रयोगों की सुरक्षा के तरीकों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस III - विज्ञान और प्रौद्योगिकी) 

प्रश्न 2. पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) के लाभों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस III - पारिस्थितिकी और पर्यावरण)

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