A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
अमेरिका-ताइवान संबंधों की प्रकृति को समझना
विषय: विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: ताइवान मुद्दा और वैश्विक भू-राजनीतिक में इसका महत्व।
संदर्भ:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने पुष्टि की है कि चीन द्वारा ताइवान पर आक्रमण की स्थिति में अमेरिका ताइवान को सैन्य मदद प्रदान करेगा।
ताइवान मुद्दा:
चित्र स्रोत: Voanews
- ताइवान ताइवान जलडमरूमध्य के पार चीनी मुख्य भूमि के तट पर स्थित एक द्वीप है।
- चीनी गृहयुद्ध (1945-1949) में अपने कम्युनिस्ट समकक्षों से हार के बाद, चीन की तत्कालीन कुओमितांग (राष्ट्रवादी) सरकार ने ताइवान में अपनी सरकार बनाई।
- गृहयुद्ध के बाद कुओमितांग ने ताइवान में अपनी रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) नाम से सरकार स्थापित की और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने चीनी मुख्य भूमि पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) का गठन किया।
- चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना सरकार ताइवान को एक "पाखण्डी प्रांत" (Renegade Province) मानती है और इस क्षेत्र को चीन के साथ मिलाने का प्रयास कर रही है। हालाँकि, ताइवान में रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी सदस्यता और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में अपनी स्थायी सीट को सुरक्षित रखा हुआ है।
- शीत युद्ध के कारण ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों ओर के देशों के मध्य संबंध अत्यधिक ख़राब हो गए, क्योंकि चीन के पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने सोवियत संघ (USSR) के साथ और ताइवान के रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) ने अमेरिका के साथ संबंध स्थापित किए।
- 1970 के दशक के दौरान शीत युद्ध की बदलती भू-राजनीति ने USSR के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) और अमेरिका को एक साथ ला दिया। इसके कारण पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने संयुक्त राष्ट्र में चीनी राष्ट्र के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) का स्थान ले लिया।
- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने केवल उन देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए जिन्होंने इसके "एक चीन सिद्धांत" को स्वीकार किया, अर्थात जिन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) को ही चीन माना, न कि रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) को।
- इस बीच, ताइवान एक दलीय राष्ट्र से बहुदलीय लोकतंत्र बन गया तथा चीन ने अपनी आर्थिक व्यवस्था में सुधार किया और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, दोनों देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे के साथ उलझ गए। हालांकि, दोनों देश में अंतरराष्ट्रीय मान्यता हेतु प्रतिस्पर्धा हैं और स्वयं को सबसे खराब स्थिति का सामना करने के लिए तैयार कर रहे हैं।
चीन-ताइवान संघर्ष के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:
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ताइवान मुद्दे का महत्व:
- ताइवान में लोकतंत्र के विकास के साथ, वहाँ के लोगों की राय ताइवान की एक नई पहचान और संप्रभुता पर स्वतंत्रता-समर्थक रुख की ओर स्थानांतरित हो गई।
- हाल के वर्षों में ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों ओर के देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, क्योंकि ताइवान में सत्ताधारी शक्तिशाली डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (DPP) चीन को दरकिनार कर आर्थिक संबंधों में विविधता लाना चाहती है।
- ताइवान के इस कदम ने चीन को उकसाया है क्योंकि उसने ताइवान को इसकी अवस्थिति के कारण सदैव उच्च भू-राजनीतिक महत्व वाले क्षेत्र के रूप में देखा है। यह जापान और विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर के बीच पहली द्वीप श्रृंखला है
- इस क्षेत्र में मजबूत अमेरिकी सैन्य उपस्थिति है और वर्तमान चीनी सरकार को ताइवान को फिर से एकजुट करने के अमेरिका के आक्रामक तरीकों को लेकर चिंतित है।
- चीन जलडमरूमध्य में सैन्य अभ्यास और गश्त करना जारी रखे हुए है और हाल के वर्षों में चीन द्वारा ताइवान के वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (ADIZ) का रिकॉर्ड-तोड़ उल्लंघन किया गया है।
ताइवान पर अमेरिका का बदलता रुख:
- शंघाई सरकारी परिपत्र (1972) - अमेरिका ने "एक चीन सिद्धांत" के अतिरिक्त यह भी स्वीकार किया कि ताइवान चीन का एक भाग है।
- सामान्यीकरण सरकारी परिपत्र (1979) - इस दस्तावेज़ के अनुसार, अमेरिका ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) को मान्यता दी, और माना कि वह "चीन की उस स्थिति को स्वीकार करता है कि केवल एक चीन है और ताइवान चीन का भाग है"।
- इस दस्तावेज़ के माध्यम से अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने अनौपचारिक संबंधों की भी शुरुआत की।
- 1982 सरकारी परिपत्र - इस दस्तावेज़ ने चीन को राहत प्रदान की, जो वर्ष 1979 के ताइवान संबंध अधिनियम (TRA) के तहत यू.एस. द्वारा ताइवान को निरंतर हथियारों की आपूर्ति को लेकर चिंतित था। इस अधिनियम ने अमेरिका को ताइवान को "रक्षात्मक" हथियारों की आपूर्ति करने में सक्षम बनाया था।
हाल के वर्षों में ताइवान पर अमेरिका का रुख:
- जलडमरूमध्य के दोनों ओर के देशों के बीच संकट के मद्देनजर ताइवान के प्रति अमेरिका की स्थिति को "रणनीतिक अस्पष्टता" के रूप में माना गया है, जो 1979 के ताइवान संबंध अधिनियम (TRA) में परलक्षित होता है।
- ताइवान संबंध अधिनियम (TRA) के लागू होने के परिणामस्वरूप 1954 में हस्ताक्षरित यूएस-ताइवान आपसी रक्षा संधि समाप्त हो गई थी।
- ताइवान संबंध अधिनियम के अनुसार, यू.एस. ने माना था कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) के साथ द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना "इस बात पर निर्भर करती है कि ताइवान का भविष्य शांतिपूर्ण तरीकों से निर्धारित किया जाएगा"।
- अधिनियम के अनुसार, अमेरिका की नीति ताइवान में लोगों की सुरक्षा, या सामाजिक या आर्थिक व्यवस्था को खतरे में डालने वाले किसी भी प्रकार के बलप्रयोग या दबाव का विरोध करने के लिए उसकी क्षमता को मजबूत करना है।
- इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि क्या चीन द्वारा ताइवान पर आक्रमण करने की स्थिति में अमेरिका सैन्य रूप से शामिल होगा। हालाँकि, अमेरिका ने अपने रणनीतिक हितों को बनाए रखने के लिए "एक चीन सिद्धांत" की अपनी व्याख्या के साथ इस रणनीतिक अस्पष्टता (सैन्य रूप से शामिल होना या न होना) का उपयोग किया है।
- हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने जिन कारणों से यह कहा है कि अमेरिका ताइवान के बचाव में आएगा, वे भी स्पष्ट नहीं हैं।
- हालाँकि, अमेरिका ने हाल ही में अपनी दृढ़ता दिखाई है और इससे पता चलता है कि,
- अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों को किसी भी विपरीत परिस्थिति में साहसिक कदम उठाने को लेकर आश्वस्त किया था।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष के मद्देनजर अमेरिका ने चीन को कड़ा संदेश दिया है कि इस तरह की कार्रवाई से कड़ाई से निपटा जाएगा।
भारत-ताइवान संबंधों के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:
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सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
स्वास्थ्य:
मंकीपॉक्स वायरस: उत्पत्ति और प्रकोप
विषय: स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: मंकीपॉक्स रोग।
मुख्य परीक्षा: मंकीपॉक्स वायरस की प्रकृति और उपलब्ध उपचारों के बारे में विवरण।
संदर्भ:
- दुनिया भर में मंकीपॉक्स वायरस का हालिया प्रकोप।
विवरण:
- यूके, स्पेन और पुर्तगाल सहित 19 देशों में मंकीपॉक्स से संबंधित मामले दर्ज किए गए हैं।
- वर्तमान प्रकोप इसलिए ख़बरों में है क्योंकि अफ्रीका के बाहर के कुछ देशों (अफ्रीका में छिटपुट प्रकोप हुए हैं) में इसके मामले सामने आए हैं। गौरतलब है कि अफ्रीका के बाहर के इन देशों के लोगों ने उन क्षेत्रों की यात्रा भी नहीं कि थी, जहां यह बीमारी फैली हुई है।
मंकीपॉक्स रोग:
- मंकीपॉक्स रोग मंकीपॉक्स वायरस के कारण होता है।
- यह वायरस पॉक्सवायरस (poxvirus) परिवार से संबंधित है और इसे पहली बार वर्ष 1958 में बंदरों में खोजा गया था।
- मंकीपॉक्स रोग का पहला मानव मामला वर्ष 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में दर्ज किया गया था और मध्य तथा पश्चिमी अफ्रीका में सार्थक मृत्यु दर के साथ जानवरों से मनुष्य में और मनुष्य से मनुष्य में संचरण के कई मामले दर्ज किए गए हैं।
- चेचक के उन्मूलन के बाद से, मंकीपॉक्स मनुष्यों में संचरित होने वाला प्रमुख पॉक्सवायरस है, जिसके मामले वर्षों से लगातार बढ़ रहे हैं।
- चूंकि संचरण केवल निकट संपर्क के कारण होता है, इसलिए इसका प्रकोप सीमित है।
- इस रोग से प्रभावित अधिकांश लोगों के लिए इन्क्यूबेशन अवधि पांच से 21 दिन होती है और यह स्वयं ठीक हो जाता है।
- मध्य अफ्रीका में वर्तमान प्रकोप का कारण जानवरों के साथ निकट संपर्क को माना जा रहा है।
- चूँकि बंदरों को इसका एकमात्र मेजबान माना जाता है। हालाँकि इसका प्रमुख स्रोत ज्ञात नहीं है और यह माना जाता है कि कृन्तक और गैर-मानव प्राइमेट इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं।
क्या वायरस उत्परिवर्तित होता है?
- मंकीपॉक्स वायरस एक DNA वायरस है जिसमें लगभग 2,00,000 न्यूक्लियोटाइड बेस के बड़े जीनोम होते हैं और चूंकि यह एक DNA वायरस है, इसलिए SARS-CoV-2 जैसे RNA वायरस की तुलना में मंकीपॉक्स वायरस में उत्परिवर्तन की दर काफी कम है।
- चूँकि इसकी उत्परिवर्तन की दर बहुत कम है, इसलिए मंकीपॉक्स के संचरण के बारे में विवरण प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने पर जीनोमिक निगरानी की आवश्यकता नहीं होती है।
जीनोम अनुक्रम से क्या पता चलता है?
- अफ्रीका और दुनिया के अन्य हिस्सों में किए गए जीनोम अनुक्रमों से पता चलता है कि वायरस के दो अलग-अलग उप-परिवार हैं;
- कांगो बेसिन/मध्य अफ़्रीकी उप-परिवार
- पश्चिम अफ़्रीकी उप-परिवार
- विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि पश्चिम अफ़्रीकी उप-परिवार की तुलना में मध्य अफ़्रीकी/कांगो बेसिन उप-परिवार की संचरण और विषाणु दर अधिक होती है।
- हालिया जीनोम अध्ययनों के अनुसार, दुनिया भर में पाए गए अनुक्रम समान हैं और लगभग सभी जीनोम पश्चिम अफ्रीकी उपपरिवार से संबंधित हैं, जिनके कारण मृत्यु दर मध्य अफ्रीकी उप-परिवार की तुलना में कम है।
- वर्तमान वायरस जीनोम 2017-2019 की अवधि के दौरान नाइजीरिया में फैले प्रकोप के दौरान पाए गए वायरस जीनोम के समान हैं, जिससे यह पता चलता है कि वर्तमान प्रकोप किसी नए संस्करण के कारण नहीं है, बल्कि अद्वितीय संचरण नेटवर्क (unique transmission network) से संबंधित है।
टीके की उपलब्धता:
- चूंकि वायरस और इसके संचरण पैटर्न के बारे में पर्याप्त डेटा मौजूद है, इसलिए टीका सहित प्रसार को रोकने के प्रभावी साधनों के बारे में पर्याप्त जानकारी है।
- चेचक/वैक्सीनिया का टीका इस रोग से सुरक्षा प्रदान करता है।
- चेचक के उन्मूलन के बाद वर्ष 1980 में इस टीके को बंद कर दिया गया था, लेकिन कई देशों द्वारा आपातकाल स्थिति में उपयोग हेतु इस टीके का भंडारण किया गया है।
- चूंकि युवा पीढ़ी को यह टीका नहीं लगाया गया है, इसलिए इस रोग का प्रसार युवा व्यक्तियों में अधिक है।
- इसके अलावा, अफ्रीकी देशों से इस बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी है, जिन्होंने अतीत में इसके प्रकोप को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया है।
- टीके की उपलब्धता के साथ, स्वास्थ्य, ज्ञान, अनुभव और बुनियादी ढांचे में अंतर को पाटने पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि भविष्य में होने वाले प्रकोपों को रोकने और प्रबंधित करने में मदद मिल सके।
सारांश:
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C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
E. संपादकीय-द हिन्दू
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:
सामाजिक मुद्दे:
भारत को गर्भपात के अधिकार में बदलाव करना चाहिए
विषय: महिलाओं से जुड़े मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: MTP अधिनियम एवं प्रावधान।
मुख्य परीक्षा: भारत में गर्भपात से संबंधित समस्याएं।
संदर्भ:
- गर्भपात अधिकारों पर यू.एस. में न्यायिक कार्यवाही।
इस मुद्दे पर संबंधित जानकारी के लिए निम्न आलेख पढ़े:
गर्भावस्था अधिनियम की चिकित्सा समाप्ति:
- 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 को अधिनियमित किया गया जिसे पुनः 2021 में संशोधित किया गया।
- इस अधिनियम के अनुसार अब भारत में 'गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति' विशिष्ट परिस्थितियों में ही वैध है।
MTP अधिनियम के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित लेख पढ़े:
https://byjus.com/free-ias-prep/medical-termination-of-pregnancy-bill/
चिंताएं:
- MTP अधिनियम के बावजूद, महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात कराने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- एक चौथाई से अधिक गर्भपात (27%) महिलाओं द्वारा स्वयं घर पर या अप्रशिक्षित लोगों द्वारा अस्वच्छ परिस्थितियों में हानिकारक तरीकों जैसे पेट में कोई हानिकारक चीज डाल कर या पेट पर दबाव डाल कर किया जाता है। 2014 में एक राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन के अनुसार, गर्भपात का भारत के मातृ मृत्यु में 10% हिस्सा है।
- गर्भपात और उसकी वैधता के बारे में जागरूकता की कमी अक्सर महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेल देती है।
- अविवाहित और ट्रांसजेंडर लोगों को कलंक का सामना करना पड़ता है और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम होना पड़ता है, जिससे उन्हें असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेना पड़ता है। तथा बालिकाओं को, यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण विधेयक (POCSO), 2011 कानून की अनिवार्य के तहत अक्सर असुरक्षित गर्भपात प्रथाओं का सहारा लेना पड़ता हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में गुणवत्तापूर्ण गर्भपात सेवाओं की कमी गरीब और हाशिए के समुदायों के लिए गर्भपात सेवाओं तक पहुंच में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत में आधे से अधिक (53%) गर्भपात निजी क्षेत्र द्वारा जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में केवल 20% गर्भपात किए जाते है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में सुविधाओं की कमी होती है।
- MTP अधिनियम में महिलाओं की पसंद और शारीरिक स्वायत्तता की अनदेखी कर गर्भपात का निर्णय पूरी तरह से डॉक्टर की राय पर निर्भर है। पति या माता-पिता द्वारा गर्भपात के लिए जोर देना भी प्रजनन न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।
- स्वास्थ्य सुविधाओं में महिलाओं के साथ भेदभाव और गर्भपात के दौरान दर्द से राहत हेतु दवाएं उपलब्ध न होने की कई रिपोर्टें मिली हैं, जिसके कारण गर्भपात के कारण होने वाली मृत्यु दर ज्यादा है।
- लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या कानूनों के बावजूद बेरोकटोक जारी है।
- हाल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लिंग-चयनात्मक गर्भपात के कारण 2017 से 2030 के बीच 6.8 मिलियन कम लड़कियों का जन्म होने की संभावना है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
बढ़ते निर्यात से सावधान
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाना, विकास और रोजगार से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत का निर्यात।
मुख्य परीक्षा: भारत से निर्यात के संबंध में चिंता।
संदर्भ:
- हाल के वर्षों में भारत का निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। साथ ही, वर्तमान भू-राजनीतिक महौल ने भारत जैसे देशों के लिए निर्यात के अवसर सृजित किए हैं।
- इस संदर्भ में, लेखक द्वारा भारत से निर्यात हेतु एक अधिक अंशांकित दृष्टिकोण के पक्ष में तर्क दिया गया है।
भारत के निर्यात के संबंध में चिंता:
- विकसित देशों की बढ़ती खपत और इसके परिणामस्वरूप निर्यात में वृद्धि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
भारत का उत्सर्जन सन्निहित निर्यात:
- भारत कार्बन उत्सर्जन में शामिल उत्पादों के प्रमुख निर्यातकों में से एक है और अन्य देशों में देखी गई प्रवृत्ति के विपरीत, निर्यात में सन्निहित कुल कार्बन उत्सर्जन उत्पादों में लगातार वृद्धि हुई है। 1995 में, शुद्ध निर्यात 75.8 मिलियन टन था जो कि 2018 में बढ़कर 372 मिलियन टन हो गया।
- विकसित देशों द्वारा अपनाए गए कड़े पर्यावरणीय उपायों के कारण, प्रदूषण-गहन उद्योग विकसित देशों से कम पर्यावरणीय मानकों वाले विकासशील देशों में स्थानांतरित होते दिखते हैं। इसे अक्सर 'प्रदूषण हेवन परिकल्पना' कहा जाता है। विकासशील देश अंततः प्रदूषण का अड्डा बनते जा रहे हैं।
- भारत कार्बन उत्सर्जन युक्त उत्पादों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
पर्यावरण कुजनेट वक्र:
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जल गहन कृषि उत्पादों का निर्यात:
- चावल और चीनी जैसे कृषि और खाद्य उत्पाद भारत के कृषि निर्यात पर हावी हैं। यह भारत से पानी के आभासी निर्यात जैसा है, जिसका भारत के जल संकट के कारण देश की दीर्घकालिक स्थिरता और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
विकसित देशों द्वारा उठाया जा रहा पर्यावरण का मुद्दा:
- विकासशील देशों ने पर्यावरण कर की शुरूआत कर दी है तथा आयात पर भी ऐसे कर लगाने पर विचार कर रहे हैं। इससे भारत जैसे विकासशील देशों का निर्यात प्रभावित होगा।
- विशेष रूप से, अधिकांश विकसित देश कहीं और से उत्पादित प्रदूषित वस्तुओं के शुद्ध आयातक हैं, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों से।
सुझाव:
- विकसित देश जो कहीं और से उत्पादित प्रदूषित वस्तुओं का उपभोग कर रहे हैं, उन्हें वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आनुपातिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
- दीर्घकालिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए भारत की निर्यात क्षमता और व्यापार पर पड़ने वाले किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद कठोर पर्यावरणीय उपाय और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।
- निर्यात राजस्व में विस्तार के परिणामस्वरूप GDP में हुई वृद्धि का उपयोग पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जाना चाहिए।
सारांश:
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F. प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
1. ILO ने LGBTIQ+ कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए नीतियां बनाने को कहा
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने "कार्य की इस दुनिया में लेस्बियन (LESBIAN ), गे(GAY), बाईसेक्सुअल (BISEXUAL) और ट्रांसजेंडर (TRANSGENDER), इंटरसेक्स (INTERSEX) और क्वियर (Queer) (LGBTIQ+) व्यक्तियों को शामिल करने" के लिए एक दस्तावेज़ अपने सदस्य देशों और नियोक्ता संगठनों को जारी किया तथा LGBTIQ+ व्यक्तियों के समक्ष आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए सामाजिक सुरक्षा पहल शुरू करने का आग्रह किया।
- ILO का मानना है कि LGBTIQ+ व्यक्तियों को यौन अभिविन्यास, लिंग पहचान एवं लिंग अभिव्यक्ति के आधार पर उत्पीड़न, हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- ILO दस्तावेज़ जिसमें राष्ट्रीय नीतियों और श्रम कानूनों की समीक्षा करने की सिफारिश की गई है।
2. सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्क को 'पेशे' के रूप में मान्यता दी
- सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को वयस्क और अपनी मर्जी से बने यौनकर्मियों के खिलाफआपराधिक कार्यवाही न करने का निर्देश दिया। यह आदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सेक्स वर्क/कार्य को "पेशे" के रूप में मान्यता देता है और यह सुनिश्चित करता है कि यौनकर्मियों को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार) और कानून के समान संरक्षण हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है तो यौनकर्मियों को "गिरफ्तार या दंडित या परेशान या पीड़ित" नहीं किया जाना चाहिए, "चूंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है"
- अदालत ने यह भी कहा कि मीडिया को सावधान रहना चाहिए और ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित नहीं करनी चाहिए जिससे उनकी पहचान का खुलासा हो।
- न्यायालय ने आगे कहा कि अगर कोई नाबालिग वेश्यालय में या यौनकर्मियों के साथ रहती है तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि बच्चे की तस्करी की गई है।
3. भारत का पाम तेल आयात 11 साल के निचले स्तर पर पहुंचा:
- इंडोनेशिया द्वारा पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध तथा भारत द्वारा सोया तेल के शुल्क मुक्त आयात के फैसले के परिणामस्वरूप भारत में पाम तेल के आयात में 19% की गिरावट आई है।
- भारत ने स्थानीय खाद्य-तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए 20 लाख टन सोया तेल और सूरजमुखी तेल के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी है।
- सोया तेल का आयात 57% से बढ़कर रिकॉर्ड 4.5 मिलियन टन होने की उम्मीद है जो मलेशियाई पाम तेल की कीमतों पर दबाव डालेगा और सोया तेल के आयात को बढ़ावा दे सकता है जिससे यू.एस. सोया तेल वायदा कीमतों को समर्थन मिल सकता है।
H. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. स्वस्थ युवा की नींव पर मजबूत जीडीपी का निर्माण होता है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (GS II - शासन)
प्रश्न 2. 'प्रदूषण हेवन' (Pollution Haven) क्या हैं? क्या विकसित देशों के लिए अपने कचरे के निर्यात रोकने का समय आ गया है? चर्चा कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (GS III - पर्यावरण)
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