दैनिक समाचार विश्लेषण- 17- मई 2022

By Kriti Gupta (BYJU'S IAS)|Updated : May 17th, 2022

समाचार पत्र विश्लेषण में यूपीएससी/आईएएस परीक्षा के दृष्टिकोण से 'द हिंदू' के सभी महत्वपूर्ण लेख और संपादकीय को शामिल किया जाता हैं।

Table of Content

A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

  आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।  

 

B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।  

 

C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

भारत में रेपो दर:

विषय:भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना,संवृद्धि, विकास और रोजगार।

प्रारंभिक परीक्षा: चलनिधि समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility); रेपो दर (Repo rate)

मुख्य परीक्षा: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के तरीके। 

पृष्ठ्भूमि:

  • हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने सर्वसम्मति से रेपो दर को 40 आधार अंकों से बढ़ाकर 4.40% करने का निर्णय लिया। 
  • इस कदम का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ती मुद्रास्फीति दरों को नियंत्रित करना था ताकि मैक्रो-वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने में मदद मिल सके।
  • इस विषय की विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित लेख पढ़े: 

https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-may05-2022/#RBI%20surprises%20with%2040%20bps%20rate%20increase,%20amid%20inflation%20%E2%80%98alarm%E2%80%99 

रेपो रेट:

  • रेपो दर RBI द्वारा किए जाने वाले मौद्रिक नीति उपायों में से एक है।
  • रेपो दर को उस निश्चित ब्याज दर के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिस पर RBI तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत सरकार और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के बदले बैंकों को रातों रात तरलता प्रदान करता है।

रेपो दर का कार्य:

  • ऋण मूल्य निर्धारण को प्रभावित करना:
  • चूंकि रेपो दर ब्याज की वह दर है, जिसपर RBI वाणिज्यिक बैंकों को पैसे उधार देता है, रेपो दर बैंकों के लिए अपने उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले ऋणों के लिए ब्याज दरें निर्धारण हेतु एक प्रमुख बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है। 
  • इसलिए रेपो दर का ऋण मूल्य निर्धारण से सीधा संबंध है। यह वित्तीय प्रणाली में क्रेडिट ऑफ टेक  और बाद में अर्थव्यवस्था में तरलता को प्रभावित करती है। 
  • अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति पर नियंत्रण:
  • कम रेपो दरें बैंकों को रिजर्व बैंक से अधिक उधार लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है। 
  • इसके विपरीत, उच्च रेपो दरें बैंकों को रिजर्व बैंक से उधार लेने को हत्तोसाहित करती हैं,जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है।
  • इस प्रकार, रेपो दर केंद्रीय बैंकों को बैंकिंग प्रणाली में धन की उपलब्धता को बढ़ाकर या घटाकर अर्थव्यवस्थाओं के भीतर तरलता या मुद्रा आपूर्ति की उपलब्धता को विनियमित करती है।

मुद्रास्फीति पर रेपो दर का प्रभाव: 

  • रेपो दर ब्याज दरों को प्रभावित करती है। उच्च रेपो दरें ऋण को अधिक महंगा और बचत को बढ़ा कर  खपत को कम करती हैं। इस प्रकार, उच्च रेपो दरें तरलता को कम करने हेतु मुद्रास्फीति के मांग पक्ष पर काम करती हैं। 
  • मुद्रास्फीति में मांग आधारित मूल्य में वृद्धि हो सकती है या आपूर्ति पक्ष के कारकों के परिणामस्वरूप इनपुट की लागत में वृद्धि सकती है या मांग और आपूर्ति दोनों पर दबाव हो सकता है। 
  • पारंपरिक आर्थिक मॉडल के तहत मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था में उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के बढ़ते मूल्य को कहा जाता है। इस मॉडल के अनुसार, मुद्रा आपूर्ति का विनियमन मुद्रास्फीति को धीमा कर सकता है।

रेपो दर को प्रभावित करने वाले कारक: 

  • भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वार्षिक 'मुद्रा और वित्त रिपोर्ट' में, वास्तविक अर्थव्यवस्था में रेपो दर परिवर्तन के संचरण में अंतराल प्रदर्शित किया है। 
  • रिपोर्ट में मौद्रिक नीति परिवर्तनों के प्रसार को प्रभावित करने वाले विभिन्न माध्यमों जैसे ब्याज दर, क्रेडिट या बैंक ऋण, विनिमय दर, परिसंपत्ति मूल्य तथा उम्मीदों का उल्लेख किया गया है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था और उसके दृष्टिकोण के आधार पर घरों और व्यवसायों की धारणाओं को समाहित करता है।

सारांश: 

  • मौद्रिक नीति समिति द्वारा रेपो दर में वृद्धि का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित करना है। हालांकि, वास्तविक अर्थव्यवस्था में रेपो दर परिवर्तन संचरण में अंतराल को देखते हुए, परिवर्तन द्वारा प्रस्तावित नीतिगत उद्देश्य को प्राप्त करने में कुछ बाधाएं हो सकती हैं।

 

D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

 आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।  

 

E. संपादकीय-द हिन्दू  

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:

एक ऐसा युद्ध जो भारतीय भू-राजनीति को कमजोर कर रहा है:

विषय: भारत और  प्रवासी भारतीयों के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

मुख्य परीक्षा: भारत के भू-राजनीतिक हितों पर रूस-यूक्रेन संघर्ष के दीर्घकालिक प्रभाव। 

पृष्टभूमि:

  • अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी, रूस-यूक्रेन युद्ध तथा चीनी प्रभाव के तीव्र विस्तार ने वैश्विक भू-राजनीति में बड़ी अव्यवस्था पैदा कर दी है। इस लेख के माध्यम से यह विश्लेषण किया गया है कि कैसे इन घटनाओं का भारत की भू-राजनीतिक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। 

भारत के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध के निहितार्थ:

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष के शुरुआती चरणों के दौरान भारत अपने विकल्पों को अच्छी तरह से प्रबंधित करने में सक्षम था और दोनों पक्ष युद्ध में अपने फायदे के लिए भारत का समर्थन चाह रहे थे। भारत ने एक तटस्थ रुख अपनाया जिसने भारत को वैश्विक विषय का केंद्र केंद्र बना दिया।
  • हालांकि, दीर्घकालिक युद्ध निस्संदेह भारत के उपलब्ध विकल्पों को कम कर दीर्घावधि में उसक के हितों को प्रतिकूलरूप से प्रभावित करेगा। 

निम्नलिखित कारक भारत के हितों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। 

रूसी प्रभाव में कमी:

  • भारत, वर्तमान वैश्विक संतुलन हेतु उसके प्रमुख रणनीतिक साझेदार रूस पर निर्भर नहीं रह सकता है। ऐसा लगता है कि संघर्ष में जीत की कम संभावना ने रूस को आज भारत पर अधिक निर्भर बना दिया है। इसलिए, रूस अब भारत के क्षेत्रीय हितों की खोज में भागीदार नहीं होगा। साथ ही, इस बात की भी चिंता है कि दीर्घकालिक युद्ध से थका और कमजोर रूस चीन का एक कनिष्ठ भागीदार बन सकता है। 

चीन का बढ़ता प्रभाव :

  • रूस अपनी पश्चिमी सीमाओं पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप रूस का शक्ति संतुलन एशियाई क्षेत्र में ख़त्म हो जाएगा। इसका लाभ केवल चीन को मिलेगा जो पहले से ही इस क्षेत्र में अपनी मजबूती हेतु प्रयासरत है। चीन मजबूत आर्थिक संबंधों के माध्यम से मध्य एशियाई क्षेत्र में पैठ बना रहा है। 

पश्चिमी दुनिया का बदलता केंद्रबिंदु:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी भागीदारों के हितों को पूर्वी यूक्रेन की ओर मोड़ने से उनका ध्यान उनकी हिन्द-प्रशांत नीति तथा चीनी नियंत्रण की ओर सीमित हो जाएगा। इसके परिणामस्वरूप दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव कमजोर हो सकता है तथा  भारत को इस क्षेत्र में अनुकूल भू-राजनीतिक स्थिति निर्मित करने में मदद मिल सकती है। इससे चीन को इस क्षेत्र की भू-राजनीति में विस्तार की खुली छूट मिल जाएगी। 

भारत के लिए अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के निहितार्थ:

  • अफगानिस्तान और मध्य एशिया के प्रति भारत की उत्तर-पश्चिमी महाद्वीपीय रणनीति पर अफगानिस्तान से यू.एस. की जल्दबाजी में वापसी का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
  • तालिबान के उदय के परिणामस्वरूप, अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति लगभग पूरी तरह से शुन्य हो गई है। इसका मतलब है कि अफगानिस्तान में भारत के रणनीतिक हितों दरकिनार करना तथा मध्य एशियाई क्षेत्र में हमारे जुड़ाव को ऐसे समय में कम करना जब कि चीन इस क्षेत्र में पैठ बना रहा है। 

सारांश: 

  • रूस-यूक्रेन युद्ध से वर्तमान में पैदा हुई भू-राजनीतिक उथल-पुथल, भारत के भू-राजनीतिक विकल्पों को सीमित करके उस पर प्रतिकूल दीर्घकालिक प्रभाव डालेगी। भारत के लिए भावी मुख्य चिंता यह होगी कि चीन को कैसे नियंत्रित किया जाए जो अपने प्रभाव को बढ़ाने हेतु प्रयासरत है

 

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शिक्षा:

तकनीकी उच्च शिक्षा बाजार विच्छेदित:

विषय: सामाजिक क्षेत्र एवं शिक्षा से संबंधित सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा: तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र की चिंताएं। 

पृष्टभूमि:

  • विगत तीन दशकों (1991-2020) में, भारत ने तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र में तीव्र प्रगति की है। 1991 से पहले जहां भारत में तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र में सरकारी संस्थानों का वर्चस्व था वही वर्तमान में तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र में निजी संस्थानों का भी वर्चस्व है। इस क्षेत्र में निजी संस्थानों की वृद्धि के साथ-साथ छात्रों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हुई है। 

तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र में चिंताएं: 

भेदभाव का उच्च स्तर:

  • विशेष रूप से, भारत में तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थान अत्यधिक विभेदित और उच्च श्रेणीबद्ध हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और कुछ उच्च गुणवत्ता वाले निजी संस्थान जिनकी मांग सर्वधिक है। हालांकि, इनका लाभ लगभग 40,000 छात्र ही उठा पाते हैं। जहाँ ये संस्थान क्षमता विस्तार के अनिच्छुक रहे हैं वहीँ निजी संस्थान अधिक फीस वसूलते रहे है।
  • खराब गुणवत्ता वाले अधिकांश संस्थानों में छात्रों की संख्या बहुत अधिक है जबकि उनकी फीस भी अधिक हैं। 

मांग से अधिक आपूर्ति और इसके निहितार्थ:

  • वर्तमान सीटों की संख्या लगभग 32.85 लाख है जबकि तकनीकी उच्च शिक्षा की कुल मांग 20 लाख से अधिक नहीं है। इस प्रकार आपूर्ति, भारत में तकनीकी उच्च शिक्षा की मांग से कहीं अधिक है। 
  • निजी संस्थानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनकी सीटों की उपयोग क्षमता दीर्घ काल से घट रही है तथा यह वर्तमान में (2020-21) 53.53% है। इसके परिणामस्वरूप कई तकनीकी संस्थान अपनी स्वीकृत सीटों को न भर पाने के कारण घाटे में हैं। 
  • इसलिए ये गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन निर्माण में असमर्थ हैं 

नियामक द्वारा हस्तक्षेप के लिए अवांछित:

  • नियामक, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने की कोशिश करने के बजाय वर्तमान में कुछ उपाय किए हैं जो अदूरदर्शी है। 
  • स्कूलों में सीनियर सेकेंडरी/इंटरमीडिएट स्तर पर विज्ञान और गणित के अध्ययन की शर्त को समाप्त करने और इंजीनियरिंग में स्नातक कार्यक्रम में छात्र-शिक्षक अनुपात को 15 से 20 तक बढ़ाने जैसे प्रस्तावों का उत्तीर्ण छात्रों की गुणवत्ता पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। 

सुझाव:

  • तकनीकी शिक्षा में व्यावसायीकरण को रोकने के लिए AICTE को आवश्यक कदम उठाने चाहिए। इसे ट्यूशन और अन्य शुल्क वसूलने के लिए मानदंड और दिशानिर्देश तय करने चाहिए। इस संबंध में फीस की उच्चतम सीमा सुनिश्चित करने के लिए AICTE का प्रस्ताव एक स्वागत योग्य कदम है। 
  • AICTE को तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र में पर्याप्त मानकों का रखरखाव भी सुनिश्चित करना चाहिए। 

सारांश: 

  • उच्च तकनीकी शिक्षा का बढ़ता व्यावसायीकरण और वित्तीय अस्थिरता के कारण निजी संस्थाए का दुष्चक्र में फंसाना भारत के एक जीवंत विकासशील राष्ट्र के निर्माण के दृष्टिकोण के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

 

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

SDG लक्ष्य पर एक नजर:

विषय: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां एवं उनका हस्तक्षेप और उनके डिजाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

प्रारंभिक परीक्षा: सतत विकास लक्ष्य।

मुख्य परीक्षा: SDG कार्यान्वयन और सिफारिशों के संबंध में भारत का प्रदर्शन। 

सन्दर्भ:

  • नीति आयोग का द्वारा 2020-21 का सतत विकास लक्ष्य (SDGs) भारत सूचकांक जारी किया गया। 

विवरण: 

भारत का समग्र प्रदर्शन:

  • SDG कार्यान्वयन की दिशा में भारत के प्रदर्शन में समग्र सुधार हुआ है। हालांकि भारत का स्थान दो रैंक नीचे गिरा लेकिन भारत 66 अंक (0-100 स्केल) हासिल कर 'फ्रंट रनर' श्रेणी में रहा 
  • भारत ने SDG के 6,7, 11 और 12 लक्ष्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। 
  • SDG का लक्ष्य 6 'स्वच्छ पानी और स्वच्छता' के सन्दर्भ में, 7 'सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा' के सन्दर्भ में, 11 'टिकाऊ शहरों और समुदायों' के सन्दर्भ मे और 12 'टिकाऊ खपत और उत्पादन' के सन्दर्भ में है। 
  • 'लैंगिक समानता', 'शून्य भूखमरी एवं गरीबी', 'गुणवत्तापूर्ण शिक्षा', 'सभ्य कार्य’, ‘आर्थिक विकास', 'उद्योग, नवाचार, बुनियादी ढांचा' और 'जलवायु कार्रवाई' से संबंधित SDG में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक से कम रहा है। 
  • कुछ प्रगति के बावजूद, भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में भूखमरी और गरीबी प्रमुख चुनौतियां बनी हुई हैं। 

राज्यों का प्रदर्शन:

  • विशेष रूप से, किसी भी भारतीय राज्य ने सूचकांक में सबसे कम 'आकांक्षी' श्रेणी वाला प्रदर्शन नहीं किया है। SDG कार्यान्वयन में सभी राज्य 50 अंक से ऊपर स्कोर करने में सफल रहे। 

ओडिशा का प्रदर्शन:

  • ओडिशा ने दो SDG-13 और 14 के कार्यान्वयन के संबंध में अच्छा प्रदर्शन किया है, जो क्रमशः 'जलवायु क्रिया' और 'जलीय जीवन' से संबंधित हैं।
    • जलवायु कार्रवाई SDG के तहत, ओडिशा ने जलवायु कार्रवाई और आपदा जोखिम शमन को एकीकृत किया है और स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर जोर दिया है। 
  • जलीय जीवन SDG के तहत, ओडिशा ने समुद्री प्रदूषण और अवैध मछली पकड़ने की प्रथाओं को रोककर महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं। ओडिशा ने तट के पानी की गुणवत्ता में सुधार और मैंग्रोव क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की है। 
  • ओडिशा ने SDG लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बजटीय आवंटन को प्राथमिकता दी है।
  • 2021 में ओडिशा जलवायु बजट पेश करने वाला पहला राज्य बन गया। ओडिशा ने 2010 से जलवायु परिवर्तन पर एक राज्य कार्य योजना को लागू किया है। 
  • इसके अलावा, 2022 में, ओडिशा एक अलग SDG बजट प्रस्तुत करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया। 

सुझाव:

  • सभी SDG को साकार करने हेतु बृहद हितधारकों की भागीदारी और साझेदारी की आवश्यकता है। यह सरकारों, नागरिक समाज संगठनों और व्यवसायों के बीच सहयोग की मांग करता है। 
  • जिला, पंचायत और ग्राम स्तर पर SDG स्थानीयकरण प्रयासों को लागू करने की आवश्यकता है ताकि समुदाय द्वारा SDG के वास्तविक आंतरिककरण को सक्षम करने के अलावा क्षेत्र से कार्यान्वयन प्रतिक्रिया उपलब्ध हो सके। 

सारांश: 

  • जबकि SDG कार्यान्वयन के संबंध में भारत का समग्र प्रदर्शन उल्लेखनीय है। कुछ चुनिंदा SDG के कार्यान्वयन संबंधी चिंताएं बनी हुई हैं। भारत को 'परफॉर्मर' श्रेणी से 'फ्रंट रनर' श्रेणी में लाने के लिए इन पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

F. प्रीलिम्स तथ्य:  

1.भारतीय और फ्रांसीसी नौसेना ने हिंद महासागर में संयुक्त गश्त की :

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

रक्षा:

विषय: सुरक्षा चुनौतियां और उनका प्रबंधन:

प्रारंभिक परीक्षा:सी ड्रैगन 22 अभ्यास (Exercise Sea Dragon 22) ; पी-8आई विमान

मुख्य परीक्षा: हिंद महासागर में भारत की सुरक्षा चुनौतियां और उनका मुकाबला करने के लिए भारत द्वारा उठाए जा रहे कदम।

  • हाल ही में भारत और फ्रांस की नौसेनाओं का फ्रांस के ला रीयूनियन द्वीप से दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर तक दूसरा संयुक्त निगरानी और गश्ती अभियान पूरा हुआ।
  • इस अभ्यास द्वारा दोनों नौसेनाओं के बीच अंतर संचालन के स्तर को बढ़ाने और उन्हें क्षेत्र में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में सेवा करने में मदद करने का प्रयास किया गया हैं।
  • इसी तरह भारतीय नौसेना के एक P-8I विमान ने डार्विन, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित ASW और सतह निगरानी अभ्यास में भाग लिया।

भारत-ऑस्ट्रेलिया सुरक्षा साझेदारी:

  • इसके अलावा जनवरी 2022 में, एक भारतीय नौसेना P-8I ने अमेरिका के गुआम में बहुराष्ट्रीय ASW अभ्यास सी ड्रैगन -22 में भाग लिया, जिसमें क्वाड देशों, कनाडा और दक्षिण कोरिया भी शामिल थे।
  • ये घटनाक्रम हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में समुद्री निगरानी और पनडुब्बी रोधी युद्ध सहयोग के विस्तार पर भारत के निरंतर ध्यान को रेखांकित करते हैं, विशेष रूप से आईओआर में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति की पृष्ठभूमि में।

 

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

1. आतंकवाद के मुद्दे पर SCO की दिल्ली में बैठक में चीन, पाक व रूस के अधिकारी शामिल:

  • शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के आतंकवाद-रोधी अधिकारियों ने शंघाई सहयोग संगठन के क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी ढांचे (SCO-RATS) की शुरुआत में दिल्ली में मुलाकात की। 
  • क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure -RATS) SCO का एक स्थायी निकाय है जो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए एक समन्वय केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • इस प्रकार, यह सुरक्षा के क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग विकसित करना चाहता है। 
  • RATS के दो कार्यकारी निकाय हैं,अर्थात् परिषद और कार्यकारी समिति।
  • भारत चालू वर्ष में SCO-RATS तंत्र के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहा है।
  • भारत 2023 में SCO शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

 

2. 'सहायक सहायता पहुँच से बाहर है'

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ द्वारा जारी "सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट" (Global Report on Assistive Technology)में कहा गया है कि 2.5 बिलियन से अधिक लोगों में से लगभग 1 बिलियन लोगों को सहायक उत्पादों जैसे व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र जैसे सहायक उपकरणों की आवश्यकता है,लेकिन उन तक इन सहायक उपकरणों की पहुंच नहीं हैं।
  • यह स्थिति निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोगों के लिए अधिक गंभीर है, जहां इन उपकरणों की पहुंच आवश्यकता के 3% से भी कम हो सकती है। इनकी सुलभता पहुंच में एक बड़ी बाधा है।
  • भारत में विकलांग लोगों की संख्या (दृश्य, श्रवण, भाषण, चलन और मानसिक विकलांग) लगभग 26.8 मिलियन हैं, जो कुल जनसंख्या (2011 की जनगणना) का 2.21% है। विकलांग लोगों में से 49% साक्षर हैं, 34% कार्यरत हैं और 75% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।

 

H. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1.  संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य क्या हैं? इन लक्ष्यों की दिशा में भारत द्वारा की गई प्रगति का आकलन करें और उन समस्याओं की पहचान करें जो अभी भी कायम हैं। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस पेपर 2/शासन)       

प्रश्न 2.  भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन के मुद्दे पर प्रकाश डालिए। अपनी अपशिष्ट जल शोधन क्षमता में सुधार करने में हमें किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है? (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस पेपर 3/पर्यावरण) 



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